सन् 1958 में जन्मे, स्वर्गीय कन्हैयालालजी ‘मुकुल’ एवं स्वर्गीय श्रीमती मोहिनी देवी के सुपुत्र यादवेंद्र द्विवेदी का जीवन राष्ट्रसेवा, साहित्य सृजन, शिक्षण-प्रशिक्षण और मानवीय मूल्यों के संरक्षण हेतु पूर्णतया समर्पित रहा है। एम.ए. एवं एम.एड. की उच्च शैक्षिक योग्यता प्राप्त करने के बाद उन्होंने 1975 से ‘जीवोत्थान’ नामक सेवायात्रा का आरंभ किया, जो आज भी निरंतर यथा सुविधानुसार पूर्णतया निःशुल्क एवं निःस्वार्थ रूप से जारी है। उनका व्यक्तित्व इतना व्यापक है कि उसमें लाखों में एक या अनेकानेक महान व्यक्तियों के गुण एक साथ दृष्टिगोचर होते हैं। आदर्श नागरिक, संत, मुनि, तपस्वी, विविध प्राच्य एवं आधुनिक विषयों के ज्ञाता, साहित्य सृजन में निपुण, परोपकारिता में अग्रणी और राष्ट्रहित में सर्वस्व अर्पित करने वाले इस बहुआयामी व्यक्तित्व की उपलब्धियों को संक्षेप में लिख पाना संभव ही नहीं है।
द्विवेदी जी की विशेष अभिरुचियों में प्राच्य और आधुनिक विषयों के प्रचार-प्रसार, शिक्षण-प्रशिक्षण, मार्गदर्शन, स्वाध्याय बोध, जनोपयोगी साहित्य सृजन तथा बहुभाषी लेखन शामिल हैं। हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी के साथ-साथ वे गुजराती, मेवाड़ी, मारवाड़ी, वागड़ी, मालवी, राजस्थानी, उर्दू सहित अनेक भाषाओं और बोलियों में दक्ष हैं। वे आशु साहित्यकार होने के साथ-साथ गणित, विज्ञान और कंप्यूटर जैसे विषयों में भी पारंगत हैं। उनके साहित्यिक योगदान में 145 से अधिक मौलिक पुस्तकें और ई-पुस्तकें शामिल हैं, जिनमें कई कृतियाँ विश्व साहित्य में प्रथम प्रयास के रूप में मानी जाती हैं। ये सभी कृतियाँ पूर्णतया निःशुल्क राष्ट्रजनहित में संपादित, प्रकाशित और वितरित की गई हैं, जिनमें से कई को भारतीय बुक ऑफ रिकॉर्ड्स तथा विश्व स्तरीय बुक ऑफ रिकॉर्ड्स से सम्मानित किया गया है। इसके अतिरिक्त वे लगभग एक हजार विशेषांकों के लेखक, संपादक और प्रकाशक भी रहे हैं, जो गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, संविधान दिवस, भाषा दिवस और अन्य राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पर्वों व आयोजनों पर प्रकाशित हुए।
साढ़े चार दशकों से अधिक समय से उन्होंने शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, समाजसेवा और राष्ट्रोत्थान के क्षेत्र में निःस्वार्थ योगदान दिया है। उन्होंने जन्म से पूर्व से लेकर मृत्यु उपरांत तक मानव जीवन की विविध परिस्थितियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सहयोग प्रदान किया है। वेद-वेदांग, आयुर्वेद, भारतीय संस्कृति, मानवीय उच्च आदर्श, राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के संवर्धन में उनका कार्य अद्वितीय रहा है। वे व्यक्तिगत मार्गदर्शन, पत्राचार, मोबाइल, विविध हेल्पलाइन्स, ऑनलाइन विचार अभिव्यक्ति और विशेष आयोजनों के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला चुके हैं।
उनकी सेवाओं का विस्तार इतना व्यापक है कि इसमें स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की योजनाएँ, पर्वोत्सव, साहित्यिक विमोचन, शिक्षण शिविर, विधिक साक्षरता, कृषि एवं बचत संबंधी जनजागरण, महिला और बाल कल्याण, दिव्यांग सहायता तथा राष्ट्रप्राणीहित के विभिन्न कार्यक्रम शामिल हैं। इन आयोजनों और पुस्तकों का शुभारंभ समय-समय पर माननीय राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, मंत्री, मुख्य सचिव, न्यायाधीश, उच्च प्रशासनिक अधिकारी, सांसद, विधायक, जिला प्रमुख, और अनेक गणमान्य व्यक्तियों द्वारा किया गया है।
द्विवेदी जी को अब तक स्थानीय, राज्यस्तरीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 125 से अधिक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। इनमें संस्कृत साधना सम्मान, संस्कृत विद्वान सम्मान, राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार, शिक्षक रत्न, भारतीय बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में सम्मान, दो बार वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और दो बार वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स से प्रशस्ति तथा विभिन्न संस्थागत और सरकारी प्रशस्तियाँ शामिल हैं। उनके कार्यों में सांप्रदायिक सद्भाव, विधिक साक्षरता, ज्वलंत समस्याओं के समाधान में मानवीय सहयोग, और जीवन के हर चरण में सहयोग प्रदान करना शामिल है।
आज भी यादवेंद्र द्विवेदी 24 घंटे सक्रिय हेल्पलाइन्स, आधुनिक माध्यमों और जनसंपर्क के द्वारा ज्योतिष, आयुर्वेद, प्राचीन व आधुनिक विषयों का ज्ञान जन-जन तक पहुँचाने में लगे हुए हैं। उनका मानना है कि सच्चा पुरस्कार वही है जो जनता की आत्मा से निकली शुद्ध प्रशंसा के रूप में मिले, और यही भाव उन्हें राष्ट्रहित में निरंतर कार्यरत रखता है। उनका जीवन एक प्रेरणास्रोत है, जो समर्पण, सेवा, ज्ञान और त्याग के उच्चतम आदर्शों को साकार करता है।