भारतीय पुस्तकालय विज्ञान के जनक डा एस आर रंगानाथन की 133 वी जयंती पर “ फ़्रोम बुक्स टू बोटस : दी इवोलविंग रोल ऑफ लाएब्रेरीयन्स इन दी एज ऑफ चेट जीपीटी, ओपेन एज्यूकेशन रिसोर्सेज एण्ड इंडीयन नॉलेज सिस्टम “ पर पेनल डीस्कशन कार्यक्रम का आयोजित
कोटा | राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय कोटा मे डा एस आर रंगानाथन कान्वेंशनल हाल मे भारतीय पुस्तकालय विज्ञान के जनक डा एस आर रंगानाथन की 133 वी जयंती पर “ फ़्रोम बुक्स टू बोटस : दी इवोलविंग रोल ऑफ लाएब्रेरीयन्स इन दी एज ऑफ चेट जीपीटी, ओपेन एज्यूकेशन रिसोर्सेज एण्ड इंडीयन नॉलेज सिस्टम “ पर पेनल डीस्कशन कार्यक्रम का आयोजित किया गया |
इस पेनल डीस्कशन मे मुख्य सूत्रधार डा दीपक कुमार श्रीवास्तव संभागीय पुस्तकालय अध्यक्ष राजकीय सार्वजनिक पुस्तकालय कोटा, डा मनीषा मुदगल एसोशिएट प्रोफेसर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान ओ.पी.जे. एस विश्वविधालय, चुरू ,डा प्रशांत भारद्वाज असीसस्टेंट प्रोफेसर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान जय मीनेश विश्वविधालय, कोटा , डा नीलम काबरा असीसस्टेंट प्रोफेसर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान केरियर पॉइंट विश्वविधालय, कोटा , मुकेश गौर वरिष्ठ पुस्तकालय अध्यक्ष एक्सीलेंट विधि महाविधालय कोटा , योगेंद्र सिंह तंवर निदेशक ठाकुर कारण सिंह मेमोरियल ग्राम पुस्तकालय अरलिया जागीर कोटा एवं रामनिवास धाकड़ परामर्शदाता राजकीय सार्वजनिक पुस्तकालय कोटा रहे |
इस अवसर पर विकास समिति सदस्य बिगुल जैन सेवानिवृत उप मुख्य अभियंता तापीय परियोजना द्वारा पुस्तकालयाध्यक्षों का सम्मान किया गया | कार्यक्रम के मुख्य अतिथि चंद्रप्रकाश मेघवाल पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी शिक्षा विभाग कोटा , अध्यक्षता बहादुर सिंह सिकरवार पूर्व अधीक्षण अभियंता जयपुर विद्धुत वितरण निगम लिमिटेड एवं विशिष्ट अतिथि सिवांगी सिंह सिकरवार , नरेंद्र शर्मा , चन्द्रशेखर सिंह समेत कई पाठक रवीद्र मीणा , सौभाग्यमल मीना रहे |
डा दीपक ने कहा कि - पुस्तकालय सदियों से ज्ञान के भंडार और समाज के बौद्धिक विकास के केंद्र रहे हैं। समय के साथ, इनकी भूमिका केवल पुस्तकों के संग्रह और वितरण तक सीमित नहीं रही, बल्कि सूचना के सभी रूपों के संगठन, संरक्षण और सुलभ उपलब्धता तक विस्तारित हुई। 21वीं सदी के तीसरे दशक में यह भूमिका और भी बहुआयामी हो गई है, विशेषकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), चैटजीपीटी जैसे संवादात्मक बॉट्स, मुक्त शैक्षिक संसाधन (OER) और भारतीय ज्ञान प्रणाली (IKS) के उभार के कारण।
डा मनीषा ने कहा कि - पहले पुस्तकालयाध्यक्ष का कार्य पुस्तकों का चयन, वर्गीकरण, सूचीकरण और पाठकों को संदर्भ सेवाएं देना था। डिजिटल क्रांति के बाद, ई-पुस्तकें, ऑनलाइन डेटाबेस और ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म ने पुस्तकालयों के दायरे को वैश्विक बना दिया।अब सूचना का संरक्षक से आगे बढ़कर पुस्तकालयाध्यक्ष सूचना का नेविगेटर और ज्ञान के रणनीतिक प्रबंधक बन चुके हैं।
डा प्रशांत ने कहा कि - चैटजीपीटी जैसी तकनीक ने सूचना प्राप्ति और संदर्भ सेवाओं में गति और व्यक्तिगत अनुभव जोड़े हैं। पुस्तकालयाध्यक्ष इन बॉट्स को उपयोगकर्ताओं के लिए प्रभावी ढंग से एकीकृत करने, सही स्रोतों की पुष्टि करने और नैतिक उपयोग सुनिश्चित करने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। एआई-सक्षम खोज, स्वचालित अनुशंसा प्रणाली और प्राकृतिक भाषा प्रोसेसिंग ने उपयोगकर्ताओं के साथ इंटरैक्शन को अधिक सहज और त्वरित बनाया है।
डा नीलम ने कहा कि - मुक्त शैक्षिक संसाधन ने शिक्षा को सीमाओं से मुक्त किया है, जिससे हर कोई उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षिक सामग्री मुफ्त में प्राप्त कर सकता है।पुस्तकालयाध्यक्ष अब मुक्त शैक्षिक संसाधन का चयन, संकलन और स्थानीय भाषाओं में अनुवाद करके ज्ञान के लोकतंत्रीकरण में योगदान दे रहे हैं। इससे आजीवन सीखने की अवधारणा को नई गति मिली है।
मुकेश गौर ने कहा कि – भारतीय ज्ञान प्रणाली में हमारे पारंपरिक ज्ञान, शास्त्र, लोक साहित्य, आयुर्वेद, योग, वास्तुशास्त्र, संगीत और कला की समृद्ध विरासत शामिल है। पुस्तकालयाध्यक्ष इन संसाधनों का डिजिटलीकरण, वर्गीकरण और वैश्विक मंचों पर प्रस्तुतीकरण कर रहे हैं, जिससे यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों तक संरक्षित रह सके। आधुनिक शोध के साथ पारंपरिक ज्ञान का एकीकरण “ग्लोकल” दृष्टिकोण को सशक्त बना रहा है।
योगेंद्र सिंह तंवर ने बदलती भूमिका में चुनौतियाँ के बारे मे अवगत कराते हुये कहा कि – सूचना की सत्यता: एआई और इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री की प्रमाणिकता जांचना।तकनीकी दक्षता: लगातार बदलते डिजिटल टूल्स में महारत हासिल करना। कॉपीराइट और नैतिकता: डिजिटल युग में बौद्धिक संपदा अधिकार और डेटा गोपनीयता का पालन।
समान अवसर: डिजिटल डिवाइड को पाटना, ताकि सभी वर्गों को समान सूचना उपलब्ध हो।
चन्द्र प्रकाश मेघवाल ने कहा कि – भविष्य की दिशा की बात करे तो पुस्तकालयाध्यक्ष अब “ज्ञान क्यूरेटर” और “इंफॉर्मेशन कोच” के रूप में देखे जाएंगे। ए.आई के साथ साझेदारी करके, वे उपयोगकर्ताओं के लिए और अधिक व्यक्तिगत, तेज और सटीक सेवाएं प्रदान करेंगे। IKS और OER के मेल से भारत की शिक्षा प्रणाली वैश्विक ज्ञान मंच पर मजबूत स्थान बना सकती है।
बिगुल जैन ने कहा कि- पुस्तकों से बॉट्स तक की यात्रा केवल तकनीकी परिवर्तन नहीं है, यह मानव बुद्धि और मशीन इंटेलिजेंस के बीच सहयोग की कहानी है। पुस्तकालयाध्यक्ष इस पुल के निर्माता हैं, जो अतीत की ज्ञान-परंपरा को भविष्य की डिजिटल दुनिया से जोड़ते हैं।