श्रीगंगानगर, श्रीधर्मसंघ संस्कृत महाविद्यालय परिसर, श्रीगंगानगर में शनिवार को श्रावणी, उपाकर्म, ऋषिपूजन, प्रायश्चित्त दशविध स्नान, तर्पण एवं हेमाद्रि संकल्प का विधिवत आयोजन सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ वैदिक आचार्यों एवं छात्रों द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। इस अवसर पर पवित्र श्रावणी उपाकर्म के अंतर्गत ऋषिपूजन किया गया, जिसमें वैदिक ऋषियों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की गई। तत्पश्चात दशविध स्नान एवं तर्पण द्वारा पितृ एवं देवताओं का आह्वान कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
विशेष रूप से वैदिक मंत्रों का पाठ वेदपाठी श्री जितेन्द्र शुक्ल जी द्वारा किया गयाए श्रावणीए उपाकर्मए ऋषिपूजनए प्रायश्चित्त ;दशविधद्ध स्नानए तर्पण और हेमाद्रि संकल्पकृहर एक कर्म का अर्थए धार्मिक महत्व और सामान्य विधि क्रमवार उद्बोधन कर सम्पूर्ण वातावरण को वैदिक ऊर्जा से भर दिया। जिसमें उन्होंने विधिवत पूजन करवायागया। उपाकर्म के तहत (अवनि-अवित्तं) एक वार्षिक वैदिक अनुष्ठान है, खासकर उन पुरुषों द्वारा जिनका उपनयन (यज्ञोपा-वीत/यज्ञोपवीत) हो चुका है। इस दिन यज्ञोपवीत का नवीनीकरण किया जाता है, वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है तथा ऋषियों को आह्वान करके दान-दान्य आदि किए जाते हैं। आम विधि कार्यक्रम के तहत (संक्षेप) प्रातः संकल्प, स्नान, (विधिवत्त) नये यज्ञोपवीत का धारण/पुराना बदलना, ऋषिपूजन और यजक-मनन, गायत्री/अन्य मूल मंत्रों का जाप (कुछ परम्पराओं में 1008 बार), तर्पण/दान एवं प्रसाद-वितरण किया गया।
ऋषि-पूजन
ऋषि-पूजन से तात्पर्य वैदिक ऋषियों को श्रध्दा से प्रणाम करना और उनकी परम्परा को सम्मान देना है, यह वेदज्ञान की गुरु-परंपरा और ज्ञान के प्रति कृतज्ञता दिखाता है। उपाकर्म में विशेष रूप से ऋषियों को आह्वान करके तिल, जल, पुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित किए जाते हैं।
प्रायश्चित्त
समस्त पापों (दोषों) का प्रायश्चित (शोधन) शारीरिक व मानसिक शुद्धि हेतु स्नान-विधि का विशेष रूप। शारीरिक-शुद्धि आधार पर दस प्रकार के स्नान या अभिषेक का क्रम होता है। दस प्रकार, भस्म, मिट्टी, गोबर, गोमूत्र, गो-दुग्ध (दूधद्ध), गो-दधि (दही), गो-घृत, सर्वौषधि/हल्दी (या औषधि), कूश (कुश घास) और मधु (शहद), यह क्रम और सामग्री पारम्परिक शास्त्रीय निर्देशों के अनुरूप है और इसका लक्ष्य बाह्य-आंतरिक दोनों तरह से शुद्धि का अनुभव कराना है।
तर्पण
तर्पण जल (तिल मिलाकर) की वेदिक अर्पणा जो पितरों (पितृ) तथा देवताओं को संतुष्ट करने हेतु की जाती है। यह पितृकर्मों और अनेक संस्कारों के प्रमुख अंग है।
हेमाद्रि
हेमाद्रि संकल्प संकल्प-सूत्र एक विस्तृत संस्कृत संकल्प-प्रस्ताव होता है जिसे उपाकर्म/प्रायश्चित्त और कुछ अन्य कर्मकाण्डों में उच्चारित किया जाता है। इसमें ब्रह्म-आह्वान, काल, स्थान, कुल/गोत्र, उद्देश्य (उपाकर्म/प्रायश्चित्त) आदि का स्पष्ट उल्लेख कर स्वयं को अनुष्ठान हेतु समर्पित करने का औपचारिक विधान आता है।
ब्रह्मचारी कल्याण स्वरुप जी महाराज ने सभी को सामूहिक उद्बोधन करते हुए कहा वेद और ऋषियों को नमन करते हुए उनके द्वारा बताई गई विधा ब्रह्म महूर्त में उठ संध्या वंदन, वेद पाठ आदि कर्म को नित्य करने के लिए संकल्पित किया और आश्वस्त किया की यदि द्विजाति नित्य ब्रह्म महूर्त में उठ संध्या वंदन और वेद पाठ करे तो निश्चित ही उसके जीवन में मंगल ही मंगल होगा उसे किसी भी प्रकार से दरिद्रता व अनिष्ट नहीं हो सकता।
राष्ट्र के निर्माण में भी उसका श्रेष्ठ योगदान होगा क्योकि जब वह स्वयं शुद्ध होगा तो राष्ट्र निर्माण भी शुद्ध होगा। अंत में ब्रह्मचारी कल्याण स्वरुप जी महाराज ने सभी श्रद्धालुओं को अपना आशीर्वाद देते हुए भोजन प्रसाद के लिए आग्रह किया।
इस अवसर पर वेदपाठी जितेंदर शुक्ल, अंकुर वत्स्य (देवप्रयाग), मुकुंद त्रिपाठी, राजेश भरद्वाज, अंगद मिश्रा, कार्तिकेय ओझा, आदित्य मुण्डेपी, ऋषभ पानत्री, प्रिंस शर्मा सहित अनेक गणमान्य उपस्थित रहे