हिरोषिमा नगर की त्रासदी: विश्व शान्ति का संदेश देती है 

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Published on : 06 Aug, 25 02:08

- डाॅ. जी. एल. मेनारिया

हिरोषिमा नगर की त्रासदी: विश्व शान्ति का संदेश देती है 

तक्षशिला विद्यापीठ संस्थान के निदेशक एवं ग्लोबल हिस्ट्री फोरम के संस्थापक अध्यक्ष डाॅ. जी.एल. मेनारिया ने आज हिरोशिमा दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में बताया कि मानवता की पैरवी करने वाले चिंतकों के लिए हिरोशिमा एवं नागासाकी जैसे औद्योगिक नगरों के विनाश की त्रासदी आज 80 वर्षों बाद भी इन दो शहरों का दर्द आम आदमी को झकझोर देता है। यह परमाणु तबाही मानवीय इतिहास के सारे रिश्तों पर कालिख भरा पन्ना है, जो पूरी दुनिया में कभी भुलाया नहीं जा सकता है।’’   

इतिहासकार डाॅ. जी.एल. मेनारिया ने कहा कि आज पूरा विश्व पुनः बारूद के ढेर पर बैठा है। उन्होंने बताया कि 6 अगस्त 1945 के दिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान विश्व प्रसिद्ध जापान के हिरोशिमा और नागासाकी जैसे शहरों के विध्वंस की त्रासदी हमें आज भी विश्व शान्ति का संदेश देती है। 

डाॅ. मेनारिया ने परमाणु बम के इतिहास की जानकारी देते हुए बताया कि सर्वप्रथम परमाणु बम अमरीका ने बनाया था। इस बम को बनाने की प्रेरणा सुविख्यात जर्मन वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटीन ने 2 अगस्त, 1939 को अमरीका के राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट को लिखे पत्र में दी थी, जिसे अब ‘‘अन्तर्रात्मा का पत्र’’ कहा जाता है। अमरीका ने प्रथम परमाणु बम बनाया और इसको 6 अगस्त 1945 को जापान के शहर हिरोशिमा पर परमाणु बम डाला गया जिसे गुप्त नाम ‘‘लिटिल बाॅय’’ याने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल के नाम से था, इस एक बम ने, क्षण भर में जापान के इस समृद्ध शहर को खण्डहर में बदल डाला। इससे पहले कि जापान संभल पाता, तीन दिन बाद ही जापान के एक अन्य शहर नागासाकी पर 9 अगस्त 1945 को एक परमाणु बम गिरा दिया गया, जिसका गुप्त नाम फेटमैन था जो अमरीकी राष्ट्रपति एफ.डी. रूजवेल्ट के नाम से था।   

इस संगोष्ठी में शहर के प्रबुद्धजनों में भीण्डर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य इतिहासकार डाॅ. जे.के. ओझा, ग्लोबल हिस्ट्री फोरम के सचिव डाॅ. अजातशत्रु सिंह शिवरती, तक्षशिला विद्यापीठ की प्राचार्य डाॅ. मीनाक्षी मेनारिया, राजस्थान राज्य प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान उदयपुर के डाॅ. राजेन्द्रनाथ पुरोहित, डाॅ. जी.पी. सिंघल, डाॅ. नीतू मेनारिया, डाॅ. रामसिंह इत्यादि ने अपने विचार व्यक्त किए। इस संवाद कार्यक्रम का संचालन डाॅ. मनोज भटनागर ने किया।

अंत में गुणवन्त सिंह देवड़ा ने आभार व्यक्त किया।    


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