उदयपुर, गोस्वामी तुलसीदास भारतीय आध्यात्म के शिखर पुरूष हैं। बचपन में रामबोला नाम से प्रारम्भ होकर भक्तिकाल में सगुण भक्ति धारा के सर्वोच्च पद तक पहुंचने तक की उनकी यात्रा मानव के भीतर निहित असीम सम्भावनाओं विस्तार का सुंदर उदारहण है। उन्होने अपनी रचनाओं से भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के जनमानस को प्रभावित किया है। यह विचार अखिल भारतीय साहित्य परिषद उदयपुर महानगर इकाई की ओर से तुलसीदास जयंती के उपलक्ष में आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने अपने संबोधन के दौरान व्यक्त किए।
हिरण मगरी सेक्टर 4 स्थित विद्यानिकेतन स्कूल के सभागार में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के कुलपति कर्नल एस एस सारंगदेवोत ने की। मुख्य अथिति डॉ देवेंद्र श्रीमाली, मुख्य वक्ता डॉ नवीन नंदवाना, विशिष्ट अतिथि परिषद जिला संयोजक ओम प्रकाश शर्मा, अनिल गुप्ता व गौरीकांत शर्मा थे। सरस्वती वंदना मनमोहन शर्मा मधुकर, गुरु वंदना सुमन स्वामी और परिषद गीत इंदिरा शर्मा व डॉ प्रियंका ने प्रस्तुत किया। संचालन तिलकेश जोशी ने किया। इस अवसर पर राजस्थान साहित्य अकादमी के सचिव बसंत सिंह सोलंकी, आशा पांडे ओझा, डॉ आशीष सिसोदिया, कुंजन आचार्य, डॉ मनीष सक्सेना, एम.जी वार्ष्णेय, जयदेव, सोनालिका, पूजा व्यास, बिरमाराम, दौलत शर्मा, सोहन ढिंढोर, भूपेंद्र शर्मा, गोपाल कनेरिया, अर्चना शेखावत, विजयलक्ष्मी शेखावत, अरुण त्रिपाठी, दीपक पालीवाल, नरेश शर्मा, सरस्वती जोशी, कैलाश जोशी सहित अन्य साहित्यकार एवं साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे।
मुख्य वक्ता डॉ नवीन नंदवाना ने तुलसीदास के जीवनकाल के समय की राजनैतिक व सामाजिक परिस्थितियां, उनकी रचनाओं के विविध पक्ष एवं उससे भारतीय जनमानस पर पड़े प्रभाव को रेखांकित किया। उन्होने कहा कि तुलसी समन्वय के कवि हैं। उन्होने रामचरित मानस जैसे कालजयी ग्रंथ के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर समन्वय स्थापित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। मुख्य अतिथि डॉ देवेंद्र श्रीमाली ने कहा कि तुलसी की रचनाओं के मर्म को आत्मसात करना ही उन्हे सच्ची श्रृद्धांजली देना है। उन्होने कहा कि तुलसी के काव्य में सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए कुछ ना कुछ उपलब्ध है। छोटे बालक से लेकर वृद्धावस्था को प्राप्त प्रत्येक व्यक्ति तुलसी के काव्य से प्रेरणा पाता है। उन्हे भारतीय आध्यात्म का शिखर पुरूष कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
कर्नल सारंगदेवोत ने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि तुलसी की रचनाएं शास्वत हैं। उनमें कालातीत होने का गुण विद्यमान है। यही वजह है कि तुलसी के रचे ग्रंथ उनके पांच सौ वर्ष बाद आज भी प्रासंगिक है। विशिष्ट अतिथि ओम प्रकाश शर्मा ने कहा कि तुलसी के रामचरित मानस में वर्तमान की कई अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान मिल जाएगा। अनिल गुप्ता व गौरीकांत ने तुलसी के बचपन की कई घटनाओं के माध्यम से उनकी जीवनयात्रा के बारे में जानकारी दी।
मानस की चौपाई-छंदों ने मोहा मन
कार्यक्रम में साहित्य रसिकों ने रामचरित मानस चौपाइयों, दोहों, छंदों और श्लोकों का सस्वर पाठ कर उपस्थित श्रोताओं का मन मोह लिया। बंसी लाल लोहार, पूर्णिमा गोस्वामी, चंद्रेश खत्री, अनिता भानावत, डॉ निर्मला शर्मा, लक्ष्मी लाल खटीक, दीपिका स्वर्णकार, मीनाक्षी पंवार, नितिन मेनारिया, चंद्रेश छतलानी, डॉ नम्रता जैन, अमृता बोकड़िया, सरिता राठौर, पूनम भू, हिमानी जीनगर, डॉ कामिनी व्यास रावल और कपिल पालीवाल ने अपनी प्रस्तुतियां दीं।