उदयपुर, राजस्थान के महामहिम राज्यपाल एवं कुलाधिपति श्री हरिभाऊ किसनराव बागडे ने मंगलवार को महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एम.पी.यू.ए.टी.), उदयपुर में आयोजित प्रगतिशील किसान संवाद कार्यक्रम में भाग लेते हुए किसानों, वैज्ञानिकों एवं विद्यार्थियों को संबोधित किया। कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय के नूतन सभागार, राजस्थान कृषि महाविद्यालय में किया गया।
राज्यपाल महोदय ने सबसे पहले वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की और उनके अद्वितीय योगदान को नमन किया। उन्होंने महाराणा प्रताप शोध पीठ का निरीक्षण किया और वहां चल रहे शोध कार्यों की सराहना की।
प्राचीन कृषि ज्ञान पर बल
अपने संबोधन में राज्यपाल महोदय ने कहा कि महाराणा प्रताप के शासनकाल में भी कृषि को प्राथमिकता दी गई थी। उन्होंने पंडित चक्रपाणी मिश्र द्वारा लिखित विश्ववल्लभ ग्रंथ का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे प्राचीन कृषि ग्रंथों के संरक्षण एवं संवर्धन की आवश्यकता है, जिससे पारंपरिक और समसामयिक ज्ञान का समन्वय हो सके।
कृषकों को ‘अन्नदाता’ की संज्ञा
राज्यपाल ने किसानों को ‘अन्नदाता’ बताते हुए कहा कि देश की आत्मनिर्भरता और समृद्धि में किसानों का योगदान अतुलनीय है। उन्होंने कहा कि बढ़ती जनसंख्या और घटती कृषि भूमि की चुनौती को देखते हुए उत्पादन वृद्धि, नई तकनीकों और नवाचारों की आवश्यकता है।
छात्रों को प्रेरणादायक संदेश
छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई, स्वामी विवेकानंद जैसे उदाहरण देते हुए राष्ट्रप्रेम, आत्मबल और निरंतर प्रयास का महत्व बताया। उन्होंने कहा कि “कोशिश करने वालों की हार नहीं होती” और विद्यार्थियों को शिक्षा को व्यवहारिक और चुनौतीपूर्ण जीवन के लिए सक्षम बनाने की बात कही।
कुलपति की प्रस्तुति एवं पुस्तक विमोचन
कार्यक्रम में कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने विश्वविद्यालय की उपलब्धियाँ साझा करते हुए बताया कि विश्वविद्यालय ने स्कोपस इंडेक्स 81, 58 पेटेंट, और 81 एमओयू के साथ श्रेष्ठता हासिल की है। राज्यपाल महोदय ने इस अवसर पर “श्री अन्न” कॉफी टेबल बुक का विमोचन भी किया।
उपस्थिति और समापन
कार्यक्रम में डॉ. उमा शंकर शर्मा, इंजी. सुहास मनोहर, डॉ. वी.डी. मुद्गल, विश्वविद्यालय प्रबंधन के सदस्य, अधिष्ठाता, निदेशक, विभिन्न केवीके से आए किसान, वैज्ञानिक, छात्र और गणमान्य अतिथि मौजूद रहे। संचालन डॉ. विशाखा बंसल और डॉ. विक्रमादित्य दवे ने किया, तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मनोज कुमार महला ने किया।