समीक्षक : अक्षयक्षता शर्मा, जयपुर
पुस्तक के मुखपृष्ठ पर प्रतीकात्मक चित्र है जो विचार उत्पन्न होने के स्थान को दर्शाता हुआ मानव मन की अभिव्यक्ति का संकेतक है। शीर्षक बड़ा कौतुहल पूर्ण है। बड़ा अवश्य है किन्तु शीर्षक के संबंध में वर्तमान में प्रचलित प्रवृत्ति के अनुरूप होने से अखरता नहीं।बार बार पुस्तक पढ़ने से नई बात निकलकर आती है, संस्मरण की महत्वाधायी सीख को रेखांकित करता हुआ यह शीर्षक पुस्तक के महत्व को दर्शाता है। नए बोध का प्रकाश पुस्तक से नहीं देहाकृति से निकलता हुआ प्रदर्शित है क्योंकि पुस्तक पढ़ने पर और उसकी बात समझ लेने पर ज्ञानकोष से बात निकलकर आती है। समस्त ज्ञान वहीं संचित रहता है। बाहरी प्रयत्न (पठन,श्रवण आदि) से उस ज्ञान का अहसास होता है।इस रूप में यह चित्र और शीर्षक सार्थक एवं प्रेरक है।
वर्तमान में पुस्तक पढ़ने की रुचि जागृत करना व बढ़ाना आवश्यक है। लगता है लेखक इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।
136पृष्ठों की यह पुस्तक लेखक डॉ.प्रभात सिंघल के 32 बेशकीमती संस्मरणों का संग्रह है। कृति के अंतिम 34 पृष्ठ लेखक के कृतित्व एवं व्यक्तित्व को 17 साहित्यकारों, प्रशासनिक अधिकारियों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों के शब्दों में उजागर किए हुए हैं।
पुस्तक के लेखक डॉ.प्रभात सिंघल ने अपने इन संस्मरणों में अपनी भावनाओं, खुशियों व संघर्षों का ईमानदारी से वर्णन किया है। वर्णनात्मक, भावात्मक व रोचक आत्मकथात्मक शैली से अपने जीवनी प्रधान, घटना प्रधान , जीवन के सामान्य अनुभवों पर आधारित तथा यात्रा प्रधान संस्मरणों को विशिष्ट बनाया है। कहीं अनावश्यक विस्तार नजर नहीं आता। पालनहार,बचपन के दिन, आदि वासियों के बीच, खुशियां नाच रही थीं,मुरझाए फूल खिल उठे, लोकार्पण जैसे संस्मरणों में व्यक्तिगत जीवन के अनुभवों को संजोया है तो होप सोसायटी, ग्राम सचिवालय, अभियान आदि संस्मरणों द्वारा सार्वभौमिक विषयों को भी छुआ है। संस्मरणों को व्यक्तिगत दृष्टिकोण से लिखा गया है ताकि पाठकों को लेखक के अनुभवों व भावनाओं को गहराई से समझने में मदद मिले।कथात्मक चाप का अनुसरण किया गया है जिससे सुसंगतता बनी हुई है। जुड़ाव भी है।चिन्तन और आत्मनिरीक्षण भी है।
इसमें शीर्षक देने की कला भी लक्षित होती है। सभी शीर्षक कुशलतापूर्वक दिए गए हैं। इनमें कहीं तुक मिलती है तो कहीं सूक्ति का आकर्षण है। संपूर्ण लेखन में भाषा सरल सहज एवं विषयानुकूल है।यथास्थान उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग हुआ है। कहावतों व सूक्तियों का भी प्रयोग किया गया है।
यह पुस्तक लेखक के जीवन के दीर्घकालीन बहुमूल्य अनुभवों की खान है। यह अनेक प्रकार से उपयोगी है। इसमें संग्रहीत संस्मरणों की उपयोगिता को उनके निम्न निष्कर्षों से समझा जा सकता है -
पालनहार - संयुक्त परिवार में बच्चों का जीवन अधिक आनन्दमय होता है । उन्हें अधिक लोगों से दुलार और प्रेरणा मिलती है। इससे व्यक्तित्व में कई विशेषताएं समाहित हो जाती हैं।
बचपन के दिन - सभी बच्चे एक निश्चित लीक पर चलें,यह सहज नहीं होता। उन्हें असहजता की ओर धकेला जाए तो वे ऐसी हरकतें करते हैं जिन्हें अनुशासनहीनता कहा समझा जाता है। प्रायः अनुशासनहीन समझ बच्चों को दण्ड दिया जाता है। डरपोक तो सुधर जाते हैं या कुंठित हो जाते हैं। बहादुर बच्चों पर सकारात्मक असर नहीं पड़ता। होमवर्क इतना अधिक नहीं होना चाहिए कि बच्चों की इसमें अरुचि हो जाए। बच्चों के लिए खेलकूद और विश्राम की गुंजाइश न रहे। गृहकार्य सरल एवं सुरुचिपूर्ण होना चाहिए। (प्रायः पाठ दोहराना व याद करना होमवर्क नहीं माना जाता। जिनकी लिखने में रुचि नहीं होती ,वे इसमें रुचि ले सकते हैं। यह मेरा अपना अनुभव है।)
अमिट स्याही - जिनके संस्कार अच्छे होते हैं,वे लोग अपने सम्पर्क में अच्छे मित्रों, सहयोगियों व अधिकारियों के सद्गुणों से प्रभावित होकर उन्हें आत्मसात् कर लेते हैं।
सारथी - उपलब्धि हासिल करने के लिए मेल-जोल करना आवश्यक है। एकाकी रहकर यह संभव नहीं। समाज सभी के सहयोग से चलता है। नौकरी में सफलता पाने के लिए मिलजुलकर रहना पड़ता है। व्यावसायिक कार्यों में कई बार मददगारों की जरूरत पड़ती है। टीम भावना होनी चाहिए।
स्वयं में मिलनसारिता होने पर व्यावसायिक जीवन में ऐसे भी सहयोगी मिल जाते हैं जो जीवन-सारथी का काम करते हैं और जीवन के अभिन्न अंग बन जाते हैं। वे सही सलाह देते हैं और दु:ख के समय हर संभव मदद कर इच्छित कार्य में आने वाली बाधाओं को दूर करते हैं।उनका स्नेह जीवन की अमिट पूंजी बन जाता है।
सार्थकता -अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाने के लिए परिश्रम की प्रवृत्ति, मेल-जोल की भावना, औचित्य की परख, सहयोगी प्रवृत्ति,दूसरे के श्रम व योग्यता के प्रति सम्मान होना आवश्यक है। ये गुण जिनमें होते हैं,उनका पद पर होना सार्थक होता है।
एक कर्मनिष्ठ व्यक्ति अपना दायित्व पूरी तरह निभाकर बड़े संतोष का अनुभव करता है। उसे लगता है कि अमुक पद पर उसका रहना सार्थक हुआ।
मल्हार उत्सव- कार्यों की पहल करने में आत्मबल और श्रमबल से काम लेना चाहिए।जो मन से कार् करने के लिए तैयार रहता है, उसे लोगों से सहयोग भी मिल जाता है।
जीवन का हिस्सा - जो व्यक्ति गुरु मंत्र पकड़ लेता है, अपने शुभेच्छु की बात मान दृढ़ता से उस पर अमल करता है वह शनै:शनै: तरक्की करता हुआ उच्चतम मंजिल हासिल कर सकता है।
सपने हुए अपने- दृढ़ इच्छा शक्ति से सपने हकीकत बन जाते हैं। जीवन के हर मोड़ पर कुछ हटकर करने का उत्साह रखना चाहिए।
आदिवासियों के बीच- विपरीत परिस्थितियों से न घबराकर उन्हें जीतने का प्रयास करना चाहिए। हिम्मत से काम लेकर आस-पास के लोगों से मिलकर काम निकलवाना चाहिये। हिम्मत के साथ प्रयत्न करने पर किसी न किसी का सहारा और मार्गदर्शन अवश्य मिलता है। नौकरी में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हिम्मत और जरूरत नम्रता और चतुराई सिखा देती है। स्वयं का काम मेहनत और ईमानदारी का हो तो सम्मान और सहयोग मिलेगा। स्वयं को अभिव्यक्त करने का प्रयत्न जरूरी है।आप कितने भी अच्छे हैं पर स्वयं को अच्छा दिखा नहीं पाएंगे तो जीवन में विफल होंगे।आप बहुत कुछ करना चाहते हैं या करने की क्षमता रखते हैं तो यह बात छिपी हुई नहीं रहनी चाहिए।
सुषुप्त सपनों की नई उड़ान - मन में लगन होती है तो आदमी कष्ट की परवाह न कर डटकर श्रम करता है। ऐसे व्यक्ति को रास्ते की रुकावट दूर करने में किसी की प्रेरणा व मदद मिल जाए तो सोए हुए सपने भी नई उड़ान भरते हैं। नौकरी मौके से सुयोग से मिलती है। इसका अवसर खोना नहीं चाहिए अन्यथा फिर कब मिलेगी, इसका ठिकाना नहीं रहता।
एक धरोहर तो रहने दो - अच्छे कार्य करने पर कद्र होती है लोग चाहते हैं। ऐसे व्यक्ति के लिए संघर्ष तक करते हैं। मुरझाए फूल खिल उठे - नौकरी की शुरुआत में नौकरी पेशा झिझकता है। कठिनाई महसूस करता है। लेखक इस हाल में सीख देते हैं कि कठिनाइयों से घबराना नहीं चाहिए। जीवन के डगर पर चलते -चलते रास्ते आसान हो जाते हैं। अपने जीवन का उदाहरण देते हुए नए कारिंदे के लिए आपकी बहुमूल्य सीख है कि धैर्य,इच्छा शक्ति,लगन व परिश्रम से अपना भाग्य स्वयं लिखना चाहिए।
परिश्रम का सुफल मिलने की खुशी का वर्णन लेखक ने दिल खोलकर किया है । यह नौकरी पेशा को श्रम के लिए उत्साहित करने और संबल देने के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अभाव में जीवन दुष्प्रभावित हो सकता है।
आपने वे आदर्श व्यक्तित्व भी दर्शाए हैं जो दूसरों की प्रगति में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
ग्राम सचिवालय - जिम्मेदारी समझने वाला काम करने की इच्छा रखने वाला व्यक्ति समस्याओं के निराकरण खोज ही लेता है।वह नई व्यवस्थाएं बनाने में भी कुशल हो जाता है।
एक कर्मठ अधिकारी किस प्रकार विकास कार्य करता है , योजनाएं बनाता है और उन्हें लागू करता है; इसे लेखक ने बखूबी समझाने का प्रयास किया है। आपका कहना है कि तत्परता से नवाचार किए जाएं तो देश में पंचायती राज के सपनों को सही अर्थों में साकार किया जा सकता है।
नई बात निकलकर आती है - जहां एक ओर लोग स्व से आगे देख ही नहीं पाते, वहां ऐसे भी लोग हैं जो अपने श्रम से अधिकाधिक लोगों के उपकार की बात सोचते मात्र नहीं,कर दिखाते हैं। सतयुग के चरित्र आज भी हैं जिन्हें बढ़ाने की जरूरत है।
लेखक ने पुरुषोत्तम पंचोली जी की महत्वाधायी सीख को उजागर कर प्रेरणा फूंकने का सराहनीय प्रयास किया है -'एक अच्छी किताब का कोई अंत नहीं होता। जो भी पढ़ें और कितनी ही बार पढ़ें,नई बात निकलकर आती है।’ इस बात से लेखक की संवेदना जागी। ऐसे होते हैं संवेदनशील व्यक्तित्व जो अच्छी बातों को स्याही सोख की तरह सोखते हैं। उसे बनाए रखने का यत्न करते हैं।
इम्तहान भी लेती है - स्पष्टवादिता के गुण दोष बताए हैं। आपका कहना है कि स्पष्टवादिता से अंततोगत्वा अच्छा फल मिलता है। साफ दिल होने की छवि बनती है। संतोष भी मिलता है। हां, किसी की नाराज़गी भी सहनी पड़ती है। आदमीयत खत्म लगती है लेकिन वह अभी जिंदा है।
समाज भी आंकता है मोल- कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति कभी नहीं सोचता कि वह बहुत काम कर रहा है। उसे तो लगता है कि वह केवल अपना कर्तव्य निभा रहा है। उसे चिंता रहती है कि उसमें कमी न रह जाए।वह स्वयं ही अपनी कमियां खोजकर अपने कर्तव्य को पूर्णता देना चाहता है। उसका स्वयं पर दबाव रहता है। किसी के गलती निकालने की आशंका उसे जल्दी तनावग्रस्त कर देती है। लेकिन वह व्यक्ति समाज द्वारा सम्मानित होता है।
अभियान - अपनी कार्य योजनाओं को सफल बनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इस बात को समझाने के लिए लेखक ने सफल जिला कलेक्टर तपेन्द्र कुमार की कार्यशैली और श्रमशीलता पर प्रकाश डाला है।
ठान लो तो -जीवन में असली रंग परिश्रम ही दिखाता है। इससे जी चुराने पर अपमान सहना पड़ता है। बचपन से श्रम की आदत न डालने से तथा पढ़ाई पर ध्यान न देने से जीवन में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जीवन पिछड़ता दिखाई देने पर जो अपनी भूल महसूस कर सही राह पर चल पड़ता है वह मंजिल पा लेता है, बशर्ते कड़ी मेहनत करने की ठान लें। विद्यार्थियों के लिए रुचि का विषय चयन आवश्यक है।
होप सोसायटी - काम कर दिखाने की लगन हो तो अंत: प्रेरणा और सहयोग से कार्य साधे जा सकते हैं।काम करवाने की तरकीबें ये हैं - स्वयं मुस्तैद रहो।उचित समय पर उचित बात कहने की क्षमता रखो। बात ऐसे कहो कि व्यक्ति मना न कर पाए।
साहित्य चेतना को लगे पंख - हमें पता नहीं होता कि कितने लोगों की हमारे कार्यो पर नजर है पर लोग नज़र रखते हैं।वे विशिष्ट और सज्जन हुए तो हमारे श्रम का सुफल मिलने का रास्ता खुलता है।
होय वहीं जो राम रची राखा - ज्योतिष के चक्कर में उलझना नहीं चाहिए। भाग्य के संबंध में किए गए अनुष्ठानों के नतीजे सदा अच्छे ही नहीं होते।
परम संतोष - रिटायर हूं का भाव असंतोष पैदा करता है। आत्मबल गिराता है। सक्रिय रहकर वृद्धावस्था में भी कार्य करते रहें तो आत्मबल, संतोष और हर्ष से जीवन को सहारा मिलता है।
स्फूर्ति और ऊर्जा के लिए- यात्राओं और लेखन से नई स्फूर्ति मिलती है। सहयोग , सहभागिता, सामाजिक समरसता, हिम्मत हौसला निर्णय क्षमता, प्रबंधन जैसे गुण प्रबल होते हैं। अंतिम छ: संस्मरण यात्रा वृतांत हैं।यात्रा- वृत्तांत में लेखन में विशेष निखार आया है। घूमना लेखक को जितना पसंद है उतना ही यात्रा के आनन्द को अभिव्यक्त करना भी।अत: वर्णन सूक्ष्म व प्रभावोत्पादक बन पड़ा है। यात्रा के दौरान उपजे हर्ष को व्यक्त करने में आपने जी खोलकर रख दिया है। हृदय के भावों को उड़ेलते आपके यात्रा वृत्तांत यात्रा के लिए पाठकों का आह्वान करते प्रतीत होते हैं। आपने कितने ही दृश्य चित्र खींचे हैं।
सहजता से किए इस लेखन द्वारा आपने बहुत कुछ कह दिया है। आपने यात्रा की तैयारी, यात्रा के दौरान किए गए चातुर्य पूर्ण प्रयासों पर अच्छा प्रकाश डाला है। इससे लगता है आप यात्रा के लिए पाठकों को मात्र उत्प्रेरित नहीं करते वरन् इसके लिए उन्हें पूरी तरह तैयार भी करना चाहते हैं। यात्रा संबंधी सावधानियां बताकर आपने पाठकों में कुशलतापूर्वक यात्रा कर पाने के योग्य समझ पैदा करने की कोशिश की है।
यह पुस्तक लेखक के भव्य व्यक्तित्व पर प्रकाश डालती है। इसके संस्मरणों द्वारा लेखक की जो विशेषताएं प्रकट हुई हैं उनकी पुष्टि परिशिष्ट में प्रकाशित 17 संस्मरणों से हुई है। अतःसंस्मरणों के पठन से लेखक के संबंध में जो धारणा बनेगी वह परिशिष्ट से प्रबल होगी। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद पाठकों में लेखक के प्रति आस्था जागृत होकर दृढ़ होगी।वे प्रेरित होंगे।
प्रस्तुत पुस्तक साहित्यरसिकों ,नए रचनाकारों व सामान्य पाठकों के लिए तो उपयोगी है ही, अधोलिखित पाठकों के लिए तो वरदान सिद्ध होगी-
*देश के भावी कर्णधार जो अपने भावी जीवन के सपने बुनते हुए उन्नत जीवन की राहें खोज
रहे हैं।
*जो जीवन में पिछड़ गए हैं या हताश हैं।
* इस पुस्तक को पढ़ने के लिए उत्प्रेरित किए गए आलस्य व जड़ता से ग्रस्त लोग।
* नौकरीपेशा तथा नौकरी में कठिनाई महसूसने वाले लोग ।
* जनसंपर्क विभाग में कार्य करने के अभिलाषी।
* यायावरी के शौकीन।
*वृद्धावस्था में आत्मबल को देने वाले व्यक्ति
पर्यटन का महत्व न समझने वाले व्यक्ति
मैं कृतिकार प्रभात सिंघल को नमन कर उनके सुस्वास्थ्य , दीर्घायुष्य व परमसौख्य की कामना के साथ लेखन को विराम देती हूॅं।