समीक्षक डॉ. अपर्णा पाण्डेय
"भारत " उस देश का नाम है जो निरंतर "ज्ञान के प्रकाश में रत "है। पर्यटन शब्द सुनते ही हमारे मन में एक विशेष प्रकार का भाव पैदा होता है, जिसमें अधिकांशतः सैर- सपाटा,या इष्ट मित्रों के साथ घूमने का कार्यक्रम हो सकता है, परंतु जब वह आध्यात्मिक भाव से जुड़ जाता है तो पर्यटन का अर्थ केवल घूमना फिरना नहीं वरन् कला, संस्कृति , स्थापत्य, , शिलालेखों आदि के माध्यम से ऐसी जानकारी संकलित करना होता है, जो हमें अपने गौरवशाली अतीत से जोड़ती है । उसकी भव्यता और सौंदर्य से परिचित कराती है।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की यह पुस्तक ऐसी ही गूढ़ गंभीर कृति है , जो हमें राजस्थान के दर्शनीय स्थलों से बहुत बारीकी से परिचित कराती है। फिर चाहे वह पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर हो या अजमेर की चिश्ती की दरगाह, दिलवाड़ा का जैन मंदिर। सर्वधर्म समभाव को अपनी आत्मा में रखने वाला भारत वसुधैव कुटुम्वबकम के भाव को किस जीवंतता के साथ जीता है, इसे यदि देखना हो ,तो भारत का आध्यात्मिक दृष्टि से पर्यटन अवश्य ही करना चाहिए,। ये न सिर्फ़ हमारे ज्ञान का संवर्धन करता है वरन् हमारे पुरखों की भव्य विरासत से भी हमें परिचित कराता है।
आस्था और विश्वास हमारी श्रद्धा से जुड़े हैं। हमारे मन की गति और विचार ही आस्था का संचार करते हैं। धर्म और अध्यात्म हमारी आस्था का ही प्रबल पक्ष है। आस्था की वजह से ही सभ्यता और संस्कृति के प्रारंभ से हम मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च आदि अन्य पूजा स्थलों से जुड़े हैं। एक दूसरे के धर्म और आस्था स्थलों के प्रति श्रद्धा ही देश में आपसी सद्भाव और भाईचारा बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। हमारी आस्था का ही प्रतीक है कि हम केवल अपने पूजा स्थलों पर ही नहीं जाते वरन वृक्ष , सूर्य, चंद्रमा, जल, पृथ्वी ,अग्नि की पूजा कर अपने प्रकृति पूजक होने का अहसास कराते हैं। लोक देवी देवताओं के प्रति हमारी श्रद्धा ने ही उन्हें ईश्वर का दर्जा दिया है। काल कोई भी रहा हो हर युग में राजाओं, श्रेष्ठियों, भामाशाहों,ने धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया। सरकारें भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने और यात्रियों की सुविधा विकास के लिए अपना योगदान करती हैं।
"राजस्थान के आस्था स्थल " पुस्तक में अपनी बात में लेखक लिखते हैं, " सभी के अपने-अपने धर्म, पूजा पद्धति, मान्यताएं एवं पूजा स्थल है। पुराने समय से ही प्रत्येक धर्म में तीर्थ स्थलों एवं धार्मिक यात्राओं का विशेष महत्व रहा है। हमारे धर्मगुरुओं, संतों एवं महात्माओं ने कठोर तपस्या कर अनेक स्थलों को धार्मिक दृष्टि से अमर कर दिया और ऐसे स्थलों के दर्शन करना पुण्यकारी माना जाता है। आधुनिक समय में जबकि संचार और यातायात के त्वरित साधन सुलभ होने लगे हैं ऐसे में धर्मिक यात्राएँ करना काफी आसान और सरल हो गया है जबकि हमारे पूर्वज महिनों तक पैदल यात्रा कर धर्म स्थानों तक पहुँचते थे। यूं तो सम्पूर्ण भारतवर्ष में सभी जातियों एवं वर्गों के धर्म स्थल उनकी आस्था का केन्द्र हैं परन्तु वीर प्रसूता एवं मरुधरा भूमि राजस्थान में आस्था स्थलों की धार्मिक महत्ता के साथ-साथ उनकी अनूठी कारीगरी और स्थापत्य शिल्प के कारण विदेशी भी इन स्थलों और इनसे सम्बन्धित प्रमुख उत्सवों को देखने के लिए आते हैं। 'राजस्थान के आस्था स्थल' पुस्तक में राजस्थान के सभी धमों के प्रमुख आराध्य स्थलों को शामिल कर उनकी जानकारी देने का प्रयास किया गया है।"
पुस्तक में राजस्थान के सभी धर्मों के 104 आस्था स्थलों को शामिल किया गया है। इनकी विशेषताएं, इनसे जुड़ी कथाएं, लोक विश्वास, महत्व , स्थापत्य आदि पर रोचक शैली में जानकारी दी गई है। भाषा शैली सरल और सुग्राहीय है। विवरण में कई संदर्भों का भी उपयोग किया गया है। करीब 80 फीसदी लेखन स्वयं लेखक द्वारा देखे गए आस्था स्थलों के अनुभव और स्वयं के अध्ययन पर आधारित हैं। नव निर्मित स्थलों के साथ - साथ
पुरातत्व महत्व के स्थलों को भी शामिल किया गया है।
" देश के समस्त तीर्थों में पुष्कर को तीर्थराज की संज्ञा से विभूषित किया गया है। यहां जगत पिता ब्रह्मा जी का दुनिया में अकेला विख्यात मंदिर है। पुष्कर नागा पहाड़ की गोद में रेतीले धरातल पर बसा है। चारों तरफ हरी-भरी पहाड़ियां हैं तथा अनेक जलकुण्ड हैं। यहां रत्नगिरी, पुरुहुता तथा प्रभुता की पर्वत श्रृंखलाएं मौजूद हैं। पदम पुराण से ज्ञात होता है कि ब्रह्मा जी के हाथ से नीलकमल का पुष्प इस क्षेत्र में गिरा और पुष्प की पंखुडियां तीन स्थानों पर गिरने से वहा जल धाराएं फुट निकली। इन तीनों स्थानों को ज्येष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर कहा गया। इस स्थल को पवित्र करने के लिए यहां कार्तिक माह में यज्ञ किया गया और इसी कारण आज भी पुष्कर में कार्तिक स्थान का अपना महत्व है। पुराणों में इसे सिद्ध क्षेत्र माना गया है।
रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी पुष्कर की महत्ता बताई गई है। पुष्कर की खुदाई में प्राप्त हुए सिक्कों से महाभारत के माने जाते हैं। पुष्कर में कृष्ण, कुंती, पाण्डवों एवं भृतहरि से संबंधित लोककथाएं भी प्रचलित हैं। पुष्कर का जैनियों एवं बौद्धों की नगरी होने के भी प्रमाण मिले हैं। बताया जाता है कि विश्वामित्र ने पुष्कर में ही गायत्री मंत्र की रचना की थी। पुष्कर सरोवर की गणना मानसरोवर, बिंदु सरोवर, नारायण सरोवर, पम्पा सरोवर के साथ पांच पवित्र सरोवरों में की जाती है। यहां अगस्त्य मुनि, महर्षि विश्वामित्र, गालव ऋषि, मार्कण्डेय मुनि, ऋषि जसदग्रि ने यहां तपस्या की थी और यह क्षेत्र तपोभूमि के नाम से विख्यात हो गया। नागा पहाड़ी पर अगस्त्य मुनि की गुफा आज भी स्थित है। अर्धचन्द्राकार पवित्र पुष्कर सरोवर प्रमुख धार्मिक स्थल पर 52 घाट बने हैं, जिन पर 700 से 800 वर्ष प्राचीन विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर बनाए गए हैं। प्रातःकाल की वेला में जब सूर्योदय होता है तथा गोधूलि की वेला में जब सूर्यास्त होता है, पुष्कर का दृष्य अत्यंत ही मनोरम होता है। इस दृष्य को देखने के लिए घाटों पर सैलानियों और श्रद्धालुओं का जमावड़ा देखा जा सकता है। कार्तिक पूर्णिमा पर अंतरराष्ट्रीय पशु मेला सैलानियों के आकर्षण का प्रबल केंद्र है। विश्व के कोने - कोने से पर्यटक पुष्कर में ही जैसलमेर की रेत के आनंद का मजा ले सकते हैं।
अजमेर में ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह सामुदायिक सद्भाव का अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मुस्लिम आस्था स्थल है। बड़ी से बड़ी शख्शियत यहां मजार पर चादर चढ़ना अपना सौभाग्य मानती है। रजब माह में यहां आयोजित होने वाला उर्स वैश्विक महत्व का होता है। दरगाह के कुछ ही दूरी पर ढाई दिन का झोपड़ा संरचना मुस्लिम स्थापत्य का खूब सूरत आस्था स्थल है। अजमेर में ही जैनियों का स्थल सोनी जी की नसिया चैतालय को देखने भी बड़ी संख्या में सभी धर्मों के लोग और पर्यटक पहुंचते हैं। ( पृष्ठ 12 से 27)
डूंगरपुर जिले के गलियाकोट में संगमरमर से बना पीर सईद फखरुद्दीन का मकबरा उनकी इंसानियत की खिदमत की आस्था का केंद्र है। मोहर्रम के 27 वें दिन आयोजित सालाना जलसे में आने वाले लाखों श्रद्धालु यहां से आपसी भाईचारे और सद्भाव का संदेश देते हैं।
जैसलमेर जिले में पाकिस्तान की सीमा पर स्थित तनोट गांव में स्थित तनोटराय माता का मंदिर हमारे आश्चर्य को बढ़ा देता है जब दर्शक को पता चलता है 1965 के भारत - पाक युद्ध में यहां करीब तीन हज़ार बंब गिराए गए और माता का बाल भी बांका नहीं हुआ। अनेक बंब फटे ही नहीं , जिन्हें यहां देखने के लिए मंदिर के सर बने संग्रहालय में रख दिया गया है। इस मंदिर का प्रबंध सीमा के जवानों द्वारा किया जाता है। यहां एक युद्ध स्मारक भी बना दिया गया हैं। यहां आने वाले पर्यटक सेना की अनुमति से ऊंट पर घूमने का आनंद भी लेते हैं।
झुंझुनू जिले के नारहड गांव की मस्जिद सांप्रदायिक सोहार्द की ऐसी मिसाल है जहां हिन्दू - मुस्लिम मिल कर तीन दिन तक जन्माष्टमी का पर्व एक साथ मनाते हैं। यहां एक हिंदू पुजारी भी नियुक्त है। प्रतिदिन सुबह अजान के साथ घंटे घड़ियाल भी बजाए जाते हैं। सालाना उत्सव में कई राज्यों से लोग यहां आ कर बाबा के दर्शन करते हैं। ( पृष्ठ 126 )
सिरोही जिले में माउंट आबू पर्वत पर देलवाड़ा मन्दिर की छतों पर झूमते, लटकते कमल आकृक्ति के गुम्बज, गुम्बज का पेंडेंट नीचे की ओर आते हुए संकरा होता हुआ एक बिन्दु बनाता है जो कमल की तरह प्रतीत होता है। जगह-जगह पर अम्बिका, पद्मावती, शीतला, गढ़ी सरस्वती, नृत्य करती नायिकाएं, हाथी-घोड़े, हंस, वाद्य बजाते वादक, स्तम्भों एवं तोरण द्वारों पर बनी कलात्मक कृतियां, छत पर बनी 16 विद्या की अलंकृत देवी मूर्तियां तथा चमकदार और संगमरमर की कोमलता से की गई शिल्पकारी की पारदर्शी उत्कृष्टता देलवाड़ा के जैन मन्दिरों में देखते ही बनती है। यहां की नयनाभिराम शिल्प एवं मूर्तिकला किसी भी प्रकार रणकपुर के जैन मन्दिरों से कम नहीं है, साथ ही ये मन्दिर किसी अजूबे से भी कम नहीं है। मन्दिरों के कला वैविध्य के दर्शन हमें छत, द्वार, तोरण एवं सभा मण्डप में होते हैं, जिनका अद्भुत शिल्प एक दूसरे से भिन्न है। दर्शक इनकी बेजोड़ कारीगरी देखकर आश्चर्यचकित हो जाते है और मन्दिरों की जादुई कला के सम्मोहन में खो जाते हैं। इन मन्दिरों में हमें जैन संस्कृति का वैभव एवं भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं।
उदयपुर जिले के कुराबड़ गांव के समीप जगत का अंबिका मंदिर में सरस्वती, नृत्य भाव में गणपति, महिषासुरमर्दिनी, नवदुर्गा, वीणाधारिणी, यम, कुबेर, वायु, इन्द्र, वरूण, प्रणय भाव में युगल, अंगडाई लेते हुए व दर्पण निहारती नायिका, शिशु क्रीडा, वादन, नृत्य आकृक्तियां एवं पूजन सामग्री सजाये रमणी आदि कलात्मक प्रतिमाओं का अचंभित कर देने वाली मूर्तियों का खजाना और अद्धितीत्य स्थापत्य कला को अपने में समेटे जगत का अम्बिका मंदिर राजस्थान के मंदिरों की मणिमाला का मोती कहा जा सकता है। मूर्तियों का लालित्य, मुद्रा, भाव प्रभावोत्पादकता, आभूषण, अलंकरण, केशविन्यास, वस्त्रों का अंकन और नागर शैली में स्थापत्य का आकर्षण का शिखरबंद मंदिर खजुराहो और कोणार्क मंदिरों की श्रृंखला में खड़ा दिखाई देता है। मंदिर के अधिष्ठान, जंघाभाग, स्तम्भों, छतों, झरोखों एवं देहरी का शिल्प-सौन्दर्य देखते ही बनता है। पुरातत्व महत्व के इस मंदिर को देखने वर्ष भर सैलानी पहुँचते हैं।
आस्था स्थलों की इन कतिपय बानगी के साथ-साथ राजस्थान के रणकपुर ,फालना, चांदखेड़ी , ऋषभदेव, नारेली जैन तीर्थ, तिजारा जैन मंदिर आदि जैन मंदिर, सीकर के पास खाटूश्याम, सालासर बाला जी, जीण माता, रानी सती, गोविंद देव जी, गलता, मोती डूंगरी के गणेश जी, बिड़ला मंदिर,जयपुर, शिलादेवी और जगत शिरोमणि मंदिर, आमेर, नाकोडा जी, किराडू, लोकदेवी करणी माता देशनोक, बीजासन माता इंद्रगढ़, सुंधामाता, जालौर, मेनाल और बिजौलिया के मंदिर, भीलवाड़ा, त्रिपुरा सुंदरी, बांसवाड़ा, भण्डेवरा, बारां, सेठ सांवलिया , कालिका माता मंदिर, बडोली मंदिर, चित्तौड़गढ़, बेणेश्वरधाम, डूंगरपुर, मेंहदीपुर बालाजी, दौसा, ओसियां, चामुंडा मंदिर, जोधपुर, रामदेवरा, मंदिर समूह किला जैसलमेर, सूर्य मंदिर, चंद्रभागा मंदिर समूह, कोलवी की बौद्ध गुफाएं , झालावाड़, मदन मोहन, केलादेवी शक्ति पीठ, करौली, मथुराधीश, चरण चौंकी, कंडुआ मंदिर, कोटा,
मीरा मंदिर, दधिमाता मंदिर और तरकीन दरगाह, नागौर, श्रीनाथ जी, द्वाकाधीश जी और चारभुजा जी, राजसमंद, त्रिनेत्र गणेश जी, महावीर जी,चौथमाता मंदिर, सवाईमाधोपुर,
गुरुद्वारा साहिब बुढ़ाजोहड़, गोगामेड़ी ,श्रीगंगानगर, डिग्गी कल्याण जी और जामा मस्जिद, टोंक तथा जगदीश मंदिर, इकलिंगजी, बोहरा गणेश आदि प्रमुख मंदिर भी शामिल किए गए हैं।
निसंदेह राजस्थान के आस्था स्थलों को जानने के लिए यह एक उपयोगी पुस्तक है। विवरण के साथ-साथ आस्था स्थलों और मूर्तियों के चित्र रोचकता प्रदान करते हैं। आवरण पृष्ठ आकर्षक है।