वरड़ा गांव के स्कूल में 'नो बैग डे' पर रचनात्मकता का उत्सव, विद्यार्थियों ने सीखा स्केचिंग और कहानी लेखन*

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Published on : 27 Jul, 25 06:07

वरड़ा गांव के स्कूल में 'नो बैग डे' पर रचनात्मकता का उत्सव, विद्यार्थियों ने सीखा स्केचिंग और कहानी लेखन*

 

उदयपुर,शहर के समीप स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, वरड़ा में शनिवार को 'नो बैग डे' के उपलक्ष्य में एक प्रेरणादायक और रचनात्मक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दिन विद्यार्थियों ने किताबों और बस्तों से अलग हटकर सृजनात्मक गतिविधियों में भाग लिया, जिससे उनकी छिपी प्रतिभाएं सामने आ सकें।

 

कार्यक्रम का संयोजन सृजनधर्मी शिक्षक हेमन्त जोशी द्वारा किया गया, जिन्होंने बच्चों की रुचियों और रचनात्मक क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए गतिविधियों की रूपरेखा तैयार की। इस अवसर पर विशेष रूप से आमंत्रित आर्किटेक्ट और स्केच आर्टिस्ट सुनील लड्ढा, कहानीकार रजत मेघनानी, रंगकर्मी सुनील टांक और आर्किटेक्ट प्रियंका कोठारी ने बच्चों के साथ संवाद करते हुए उन्हें नई सोच और कल्पनाशक्ति की दिशा में प्रेरित किया।

 

रचनात्मकता के रंग में रंगे बच्चे

 

कार्यक्रम की शुरुआत कारगिल विजय दिवस की जानकारी के साथ हुई, जिसमें भारत की सैन्य विजय गाथा और वीर सैनिकों के बलिदान को याद करते हुए बच्चों में देशभक्ति की भावना का संचार किया गया।

 

इसके पश्चात विद्यार्थियों को स्केचिंग और कहानी लेखन की गतिविधियों में भाग लेने का अवसर मिला।

 

सुनील लड्ढा ने स्केच आर्ट के माध्यम से बच्चों को चित्रांकन की मूल तकनीकें सिखाईं और उन्हें बताया कि किस तरह एक सामान्य दृश्य को भी कला का रूप दिया जा सकता है।

 

रजत मेघनानी ने कहानी लेखन की कार्यशाला ली, जिसमें उन्होंने बच्चों को कल्पना, भावनाएं और संदेश को शब्दों में ढालने के सरल और रोचक तरीके बताए।

 

रंगकर्मी सुनील टांक ने नाट्य विधा के बारे में जानकारी दी।

 

प्रियंका कोठारी ने बच्चों को डिजाइन और रचनात्मक सोच के बीच के संबंध को समझाते हुए आर्किटेक्चर के क्षेत्र की जानकारी दी और उन्हें डिजाइन थिंकिंग से परिचित कराया।

 

 

*प्रतिभा को मंच देने का प्रयास*

 

इस आयोजन का उद्देश्य न केवल विद्यार्थियों को रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ना था, बल्कि उनकी छिपी हुई प्रतिभाओं को पहचानना और निखारना भी था। 'नो बैग डे' का उपयोग एक सीखने की खुली प्रयोगशाला के रूप में किया गया, जिसमें किताबों की जगह बच्चों की कल्पना और अनुभवों को महत्व दिया गया।

 

विद्यालय परिवार एवं अभिभावकों ने भी इस अभिनव पहल की सराहना की और बच्चों में आए सकारात्मक बदलाव को अनुभव किया। 

 

इस अवसर पर संगीता चौधरी, भूमिका भावसार, सुनील कोठारी और विद्यालय के शिक्षक शिक्षिकाएं मौजूद रहे

 

 


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