उदयपुर। साध्वी विपुल प्रभा श्रीजी ने कहा कि चातुर्मास काल में हम मोक्ष प्राप्ति की आराधना कर रहे हैं जो कि दुर्लभ है। संसार भी दुर्लभ है फिर भी निभा रहे हैं लेकिन मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयास नही कर रहे हैं। धर्म कैसे करना है, खुश कैसे रहना है यह पता नहीं है। अभी तो ये भी मालूम नहीं है कि हम खुश भी हैं या नहीं। बहाना ढूंढते हैं प्रसन्न रहने का। खुश रहने के लिए स्वभाव में रहना सीखना पड़ेगा। हमारा मूल स्वभाव है। हम स्वभाव कम बल्कि विभाव दशा में रहते हैं। जब मूल स्वभाव में आ जाएंगे तो प्रसन्न रहने लगे जाएंगे।
सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में प्रवचन में साध्वी श्रीजी ने कहा कि हर कोई हर किसी से उम्मीद रखता है। इसलिए सिर्फ सभी एक दूसरे को चला रहे हैं। पता चल जाता है कि अब अपने आप नही चल रहा। प्रसन्नता स्वतः अंदर से उतर कर आती है। जो आप देख रहे हो वो एक सपना है। सपने दो तरह के होते हैं। बंद आंखों से और खुली आँखों से देखने वाला। खुली आँखों से जो देख रहे हैं उसे सपना मान नहीं रहे हैं। बंद आंखों से जो देखा उसकी चर्चा करते हैं। खुली आँखों से जो देख रहे हैं वो हम सपना नाही सत्यता मान चुके हैं। भौतिक, सांसारिक सुख सुविधाओं को सत्य मान लिया है जबकि ये भी एक सपना ही है। सत्य तो सिर्फ परमात्मा है। बंद आंखों से देखे सपने के लिए पुरुषार्थ कर लेंगे लेकिन जो दिख रहा है उससे परे परमात्मा मिलन के लिए पुरुषार्थ नही करेंगे।
साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि जीवन में रील को रियल बनाने की कोशिश कर रहे हैं। रियल को तो अब तक देख ही नही रहे हैं। रियल यह कि राजा तो भी ठीक, रंक तो भी ठीक। जो चाहिए वो मिला तो भी खुश, नहीं मिला तो भी खुश। साध्वी कृतार्थ प्रभा श्री जी ने गीत प्रस्तुत किया।