उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादावाड़ी में प्रवचन में साध्वी विपुल प्रभा श्रीजी ने कहा कि अपने अंदर भाव जगाने के लिए खुद को मेहनत करनी होगी। संयम पथ अपनाना होगा। किसी ओर के भरोसे नहीं, खुद को जागना होगा। साधना की तो कुछ प्राप्त किया। परमात्मा ने मौन धारण किया तब तक जब तक कि कैवल्य ज्ञान न प्राप्त हो जाये। हर क्षण महत्वपूर्ण है। पल भर याज पलक भर झपकी। जिस क्षण में जी रहा हूँ, जागृत अवस्था में हर क्षण निकलना चाहिए, ऐसा जब हो जाये तब ज्ञान प्राप्ति मानते हैं।
उन्होंने 4 क्षण बताएं, पहला द्रव्य क्षण जिसमें पांचों इंद्रियों, वीतराग ये सब इस में आते हैं। क्षेत्र क्षण यानी आर्य कुल में हमारा जन्म हुआ। तीसरा काल क्षण जिस काल में जन्म हुआ। पहले और दूसरे और छठे काल हमारे काम के नहीं हैं। पहले दूसरे में धर्म नही था। छठे में धर्म नहीं होगा। तीसरे काल में परमात्मा का जन्म हुआ। आदिनाथ भगवान को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। चौथा भाव क्षण यानी आर्य कुल मिला। परमात्मा की वाणी मिल गई। तीन तो हमें मिल गए लेकिन चौथे क्षण यानी भाव हमें जगाने हैं। अभी पांचवां आरे में अगर भाव नही जागे तो सब व्यर्थ हो जाएगा। कुछ पाने के लिए कुछ मेहनत करनी होगी।
साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि चार महीने में अभी तो सप्ताह निकला है। बहुत समय है कभी भी तपस्या कर लेंगे। ज्यादा नाही तो पर्युषण में कर ही लेंगे। जो क्षण गया, वो वापस नही आएगा। जिसने स्वयं को साध लिया वो कहीं भी हो लेकिन ध्यान हो जाएगा।साध्वी कृतार्थ प्रभा श्री जी ने गीत प्रस्तुत किया।