अरावली में वैध खनन बहाल करने की माँग

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Published on : 30 Jun, 25 15:06

उद्योग, रोजगार और न्याय की पुकार लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुँचा इंडियन सोपस्टोन प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन

अरावली में वैध खनन बहाल करने की माँग

जयपुर। इंडियन सोपस्टोन प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ने राजस्थान सरकार द्वारा अरावली क्षेत्र में सभी खनन कार्यों पर लगाई गई रोक के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एक अंतरिम याचिका (Interlocutory Application) दायर की है। एसोसिएशन का कहना है कि यह निर्णय वैध रूप से स्वीकृत एवं विस्तार प्राप्त खनन पट्टों पर भी लागू कर दिया गया है, जिससे हजारों श्रमिकों की रोज़ी-रोटी छिन गई है और औद्योगिक स्थिरता पर खतरा मंडराने लगा है।

एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री और खान मंत्री से तत्काल हस्तक्षेप की अपील करते हुए कहा है कि राज्य सरकार को सर्वोच्च न्यायालय में स्पष्ट पक्ष रखना चाहिए कि वैध खनन पट्टों को निर्बाध संचालन की अनुमति दी जाए।

एसोसिएशन के अनुसार, Forest Survey of India की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि अरावली का कुल क्षेत्रफल 40,000 वर्ग किमी है, जिसमें से केवल 925 वर्ग किमी (2.31%) क्षेत्र ही खनन पट्टों के अधीन आता है। उसमें भी वास्तविक खुदाई क्षेत्र और कम है, तथा अधिकांश खनन गैर-वनीय भूमि पर पूरी कानूनी स्वीकृतियों के साथ किया जा रहा है। ऐसे में सभी खनन कार्यों पर रोक लगाना सतत विकास की भावना के विरुद्ध है।

यह भी आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की एकतरफा व्याख्या करते हुए वैध लाइसेंसधारी पट्टों पर भी कार्य रोक दिया है, जबकि आदेश के पैरा 14 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वैध परमिट/लाइसेंस के तहत खनन कार्यों पर कोई रोक नहीं होगी।

एसोसिएशन ने "पिक एंड चूज़" नीति का आरोप लगाते हुए बताया कि कुछ प्रभावशाली उद्यमियों को संचालन की अनुमति दी गई, जबकि समान परिस्थिति में मौजूद अन्य पट्टाधारकों को बिना कारण कार्य से वंचित कर दिया गया है। यह न केवल असंवैधानिक है, बल्कि राज्य की खनिज नीति और औद्योगिक निवेश की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।

उल्लेखनीय है कि एसोसिएशन के 40 से अधिक सदस्य राज्य के विभिन्न हिस्सों में सोपस्टोन, डोलोमाइट, कैल्साइट, चाइना क्ले जैसे औद्योगिक खनिजों के खनन से जुड़े हैं, जिनसे ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में 5,000 से 10,000 लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार मिलता है।

एसोसिएशन ने इसे केवल कानूनी लड़ाई न मानते हुए आर्थिक न्याय, रोज़गार की गरिमा और राज्य की औद्योगिक नीति की प्रतिष्ठा से जुड़ा मुद्दा बताया है और उम्मीद जताई है कि मुख्यमंत्री इस मामले में हस्तक्षेप कर न्याय दिलवाएंगे।

 


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