पिता दिवस पर समर्पित— मेरे शिक्षक, मेरे पापा के नाम विकास कुमार उज्जैनियां, मुंबई (महाराष्ट्र)

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Published on : 13 Jun, 25 09:06

ऐसा नहीं कि बस आज का दिन,
हर पल में बसी है आपकी छवि और छिन।
ज्ञान की लौ से जीवन जगमगाया,
आपने ही पापा, जीना सिखाया।
मेरे हर दिन को संवारने वाले,
हर मुश्किल में राह दिखाने वाले।
कक्षा से घर तक जो देते रहे पाठ,
आपकी हर बात बनी जीवन की ठाठ।
जब ज़िंदगी के प्रश्न कठिन लगते,
आपके शब्द उत्तर बनकर झलकते।
कभी डरता हूँ, कभी सहम जाता हूँ,
आपकी याद में अक्सर भीग जाता हूँ।
ख़ुशियों के हर मोड़ पर आपकी कमी खलती है,
आपकी डाँट में छुपी मोहब्बत अब समझ में आती है।
यूँ तो मज़बूत बनाया आपने हर मोड़ पर मुझे,
फिर भी अकेलेपन में ढूंढता हूँ सिर्फ़ आपको ही।
आपकी किताबें, वो नोट्स के पन्ने,
अब बन गए हैं मेरे जीवन के ध्वज पतंगे।
कुर्सी पर बैठा वो शांत सा चेहरा,
आज भी मुझे देता है हौसला गहरा।
जो शब्दों से गढ़ते थे सपनों की डोरी,
आपकी सिखाई हर बात लगती है ज़रूरी।
पापा, आप हैं तो मैं हूँ मजबूत,
आप ही मेरी पहचान, मेरी जड़, मेरी छूट।
ऐसा नहीं कि बस आज का दिन हो खास,
आपके बिना तो अधूरा है हर एक एहसास।
पिता भी, गुरु भी, मेरे प्रेरक आप,
आपसे ही है मेरे जीवन का प्रताप।


साभार :


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