नासिक में जुटे देशभर के संस्कृत विद्वान् तीन दिवसीय उत्कर्ष महोत्सव का भव्य शुभारम्भ

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Published on : 08 Jun, 25 16:06

10 वर्षीय संस्कृत संवर्धन की योजना पर की चर्चा*

नासिक में जुटे देशभर के संस्कृत विद्वान् तीन दिवसीय उत्कर्ष महोत्सव का भव्य शुभारम्भ


नासिक, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के तत्वाधान में तीन दिवसीय ‘उत्कर्ष महोत्सव’ का भव्य शुभारंभ नासिक परिसर में हुआ। महोत्सव के पहले दिन "आगामी 10 वर्षों की संस्कृत संवर्धन योजना" विषय पर परिसंवाद का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर के संस्कृत विश्वविद्यालयों के कुलपति, विद्वान और शोधकर्ता उपस्थित रहे।

इस अवसर पर कवि कुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलगुरु पंकज टी चांदे ने संस्कृत शिक्षा की वर्तमान स्थिति और भविष्य की दिशा पर विचार रखते हुए कहा कि “संस्कृत शिक्षा में आधुनिकता लाना अत्यावश्यक है। वेद अध्ययन के साथ-साथ कंप्यूटर और अंग्रेज़ी भाषा को जोड़ते हुए संस्कृत की उपयोगिता आम जनता तक पहुँचानी चाहिए।” उन्होंने सुझाव दिया कि देशभर के संस्कृत विश्वविद्यालयों का एक संगठन गठित होना चाहिए, जिसका नेतृत्व केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलगुरु प्रो. श्रीनिवास वरखेडी को सौंपा जाए।

संस्कृत शिक्षा में आत्मनिर्भरता और व्यावसायिक उपयोग की आवश्यकता
चांदे ने कहा कि सरकार द्वारा स्वीकृत अनुदान अधिकांशतः विश्वविद्यालयों को नहीं मिल पाता है। “सरकार पर पूरी तरह निर्भर न रहते हुए, संस्थाओं को आत्मनिर्भर बनना होगा। यदि संस्कृत पढ़ने के बाद आर्थिक संभावनाएं उत्पन्न होंगी तो छात्र संख्या में भी वृद्धि होगी।” उन्होंने बताया कि स्वीकृत पदों में से केवल 5 से 10 प्रतिशत ही भरे जा रहे हैं, जिससे संस्कृत विभाग बंद होने की नौबत आ रही है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग संस्कृत में भी संभव
उन्होंने यह भी कहा कि “संस्कृत को बचाना है तो संगठित होना अनिवार्य है। केवल संस्कृत जानने वाला ही संस्कृति का रक्षक है, यह हठ छोड़ना होगा। संस्कृत में भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का प्रवेश हो रहा है और इसका प्रयोग सावधानी से किया जाना चाहिए।” *प्रो. वरखेडी ने विद्यार्थियों में संस्कृत के प्रति रुचि बढ़ाने पर दिया ज़ोर*
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेडी ने कहा, “जैसे संगीत में लय होती है, वैसे ही शास्त्र और छात्र के बीच समन्वय आवश्यक है।” उन्होंने ऐसे विद्यार्थियों को तैयार करने की आवश्यकता पर बल दिया जो आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थानों में भारतीय ज्ञान परंपरा को पढ़ा सकें। उन्होंने शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों और शास्त्रीय पाठ्यक्रमों के सुदृढ़ीकरण पर भी ज़ोर दिया।

*देशभर के कुलगुरुओं और विद्वानों की भागीदारी*
इस परिसंवाद में देशभर के लगभग 18 संस्कृत विश्वविद्यालयों और संस्थाओं के कुलपति प्रो. जी.एस.आर. कृष्णमूर्ति (तिरुपति), प्रो. मुरलीमनोहर पाठक (नई दिल्ली), प्रो. मदनमोहन झा निदेशक शैक्षणिक परिसर प्रो. रावेरी गायत्री मुरलीकृष्ण कुलसचिव केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय प्रो. सुकांत सेनापति (गुजरात), प्रो. प्रल्हाद जोशी (असम), प्रो. हरेराम त्रिपाठी (रामटेक), प्रो. प्रसाद जोशी (पुणे), आचार्य रामसलाही द्विवेदी, प्रो. श्रीधर मिश्र, प्रो. रमाकांत पांडे, प्रो. सुदेशकुमार शर्मा, प्रो. वाई.एस. रमेश प्रो शिवशंकर मिश्र प्रो ज्ञान रंजन पंडा सहित कुलगुरु व प्रतिनिधि उपस्थित रहे। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नासिक परिसर के निदेशक प्रो.नीलाभ तिवारी ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। निदेशक शैक्षणिक परिसर प्रो मदन मोहन झा ने बताया की इस अवसर पर तीनों केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयों का विभिन्न शैक्षणिक विषयों और शैक्षिक नवाचारों को लेकर एमओयु हुआ।

*संस्कृत सेवाव्रती पुरस्कार से नित्यानंद मिश्र सम्मानित*
कार्यक्रम के दौरान संस्कृत के प्रसिद्ध लेखक नित्यानंद मिश्र को ‘संस्कृत सेवाव्रती पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। पुरस्कार स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, “संस्कृत की उपासना मेरा धर्म है। सभी का कर्तव्य है कि वे संस्कृत की सेवा करें और उससे प्रेम करें।”

परिसंवाद में विविध विचारों का आदान-प्रदान किया गया। इस अवसर तीनों केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की उत्कर्ष प्रदर्शनी के माध्यम से किये जा रहे विभिन्न नवाचारों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गयी।
परिसंवाद के द्वितीय सत्र में अनेक विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन प्रो. कुलदीप शर्मा ने किया। इस अवसर पर प्रो. मधुकेश्वर भट्ट केन्द्रीय योजना निदेशक, डॉ. गणेश टी. पंडित परीक्षा नियंत्रक,प्रो पवन कुमार, डॉ. अमृता कौर, डॉ. के.सांबशिव मूर्ति सहित देशभर के संस्कृत विद्वान् उपस्थित रहे।

 


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