किरच - किरच होते मानवीय रिश्तों की गहन पड़ताल करती कहानियां

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Published on : 05 Jun, 25 05:06

किरच - किरच होते मानवीय रिश्तों की गहन पड़ताल करती कहानियां

" बिधे हुए रिश्ते" कहानी संग्रह विजय जोशी की ऐसी कृति है जिसमें कहानीकार ने इस संग्रह को "समय और युग के सापेक्ष तिनके - तिनके बीनकर बनाये घरोंदों में बसे अपनों के मध्य रिश्ते तलाशते एवं तराशते हुए बाशिंदों के सम्बन्धों को उत्प्रेरक बनाने एवं बिखरी हुई संवेदनाओं को समेटने में जुटे हुए लोगों को" समर्पित किया है। वर्ष 2006 में प्रकाशित यह विजय का चौथा कहानी संग्रह है।
            रिश्ते, जिन पर संयुक्त परिवार व्यवस्था का प्रभाव रहा , वैयक्तिक, पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते घनिष्ठ, प्रगाढ़ एवं स्थायी रहे वे बढ़ते उद्योगीकरण और नगरीकरण से बिखरने लगे और शिथिल हो गए। आज सारा का सारा पारिवारिक ढांचा चरमरा गया है और आपसी प्रेम, प्यार, त्याग के रिश्ते, अर्थ प्रधान हो कर स्वार्थ पर आधारित हो गए। संयुक्त परिवार दरकने लगे और वैयक्तिक परिवारों ने जन्म लिया। बुजुर्गो के साथ रहने की अपेक्षा स्वतंत्रता की भावना बलवती होती जा रही है। स्थित यहां तक पहुंच गई की नौकरी की जरूरत ने पुत्र को माता-पिता से भी बहुत दूर कर दिया।
           इन्हीं  पारिवारिक परिस्थितियों और भावनाओं को लेकर कहानीकार ने अपनी कथाओं का तानाबाना बड़े ही कौशल और संवेदनशीलता के साथ रोचक तरीके से बुना है।  संग्रह की कहानियों में किरच - किरच  होते पारिवारिक और मानवीय संबंधों के साथ तेजी से बदलते जीवन मूल्यों को पात्रों की मानसिकता के वास्तविक चित्रण के साथ उभारा गया है।
 ' सिसकती वादियाँ ' आतंक के साए में भटकती युवा पीढ़ी का यथार्थ प्रस्तुत करती कहानी है तो  ' कागज' समाज और प्रशासन में घुले - मिले विसंगतियों के प्रसंगों को उजागर करती है। ' युगबोध ' कहानी भाग्य के भरोसे न रहकर कर्म करने का संदेश देती दिशाबोधक कहानी है। सफ़र ,अक्षरों के साये में, बिखरे हुए रंग, सांझ के संग, आखिर किसके लिए, टूट गए सन्नाटे तथा बिंधे हुए रिश्ते पारिवारिक बिखराव, सामाजिक विसंगतियों को उभारती मार्मिक कहानियाँ हैं जो आदर्शोन्मुख दृष्टिकोण से समस्याओं के समाधान का संकेत देती हैं।         
        इस संग्रह पर " बिन्धे हुए रिश्तों का चित्रलेखी स्पेक्ट्रोस्कोप शीर्षित भूमिका में डॉ. प्रेमचंद विजयवर्गीय ने माना है कि - " इस संग्रह में दसों ऐसी कहानियाँ हैं जो विविध रिश्तों के केवल बिंधे होने की गाथा कहती है। शीर्षक कहानी " बिंधे हुए रिश्ते" पारिवारिक संदर्भों की यथार्थ कहानी है। यह कहानी संदेश देती है कि श्वसुर की उदारता पुत्र व पुत्रवधू के भाव और विचार में परिवर्तन लाकर रिश्तों में पड़ी दरार को फिर से भर सकती है। 
       युगबोध' कहानी में सिद्धार्थ वास्तु और ज्योतिष के चक्कर में तात्कालिक परिणामों को पाने के लालच में अवसाद से घिरा रहता है। वह वार के अनुसार कपड़ों का चयन करता है। अखबार में पढ़-पढ़ कर घर के सामानों को प्रत्येक सप्ताह व्यवस्थित करता है। इस से उसकी पत्नी शिवानी को कार्यों में व्यवधान उत्पन्न होता है। वह अपने पति को समझाती है कि 'आदमी जब तक कर्म नहीं करेगा सारी ज्योतिष और वास्तु के नियम धरे रह जाते हैं।' अंत में सिद्धार्थ को युगबोध का आभास होता है वह कर्मशील बनने का प्रयास करता है। 
      'अक्षरों के साए में' कहानी एक प्रगतिशील नारी के विविध पक्षों को उजागर करती हुई उसके द्वारा नारी के पितृ पक्ष और ससुराल पक्ष के बीच दरकते रिश्ते को बचाने के प्रयत्न की प्रेरक कहानी है। सरिता अपने ससुराल में बढ़िया जिन्दगी जी रही है, परन्तु उसके भाई अजय का एक पत्र अपने जीजाजी पुखराज को और सरिता के साथ सभी परिवार वालों को व्यथित कर देता है। इसमें अजय आरोप लगाता है कि जीजाजी का व्यवहार दोनों परिवारों के पारदर्शी संबंध बनाने में सही नहीं है। तब उसकी बहिन सरिता उसे पत्र का जवाब देती है और बताती है कि शब्दों के सहारे रहकर व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता, उसे व्यवहारिक होना पड़ता है। वह एक लम्बा पत्र लिखकर अपने वैवाहिक जीवन का सच उजागर कर अपने भाई को अनर्गल बातचीत न करने के लिए हिदायत देती है। वर्तमान परिवेश में दो परिवारों को एक बनाए रखने में  सरिता जैसी नारी के आदर्श रूप को रेखांकित करती यह कहानी समाज की महत्ती आवश्यकता को प्रतिपादित करती है।
       "आखिर किसके लिए" कहानी जीवन के कटु अनुभव के परिवेश की सहज अभिव्यक्ति है जो आज की बुजुर्ग पीढ़ी के साथ-साथ युवा पीढ़ी को भी अपने-अपने कर्तव्यों की सीख प्रदान करती है। कहानी में पारिवारिक संदर्भों में उपजी टीस को उभार कर सामने लाया गया है। रामविलास जी शहर में तीनों बेटों  के रहते हुए भी बुढ़ापे में अकेले के अकेले रहते हैं। वे काम वाली केसर बाई से बतियाते हुए वे अपने इस दर्द को उजागर करते हैं। साथ ही उसे अवसरवादी एवं स्वार्थी बेटों को अपनी समस्त जमा पूँजी न देने की हिदायत देकर अपने मन के भीतर रिसती टीस पर मरहम लगाने का प्रयास करते हैं।
      'टूट गए सन्नाटे' कहानी का संदेश है कि 
संतान हीन पति-पत्नी आपसी सहमति से गोद लेने की प्रक्रिया अपना कर बच्चा न होने पर उपजे परिवेश को समाप्त कर समाज में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करें। कहानी के पात्र नेहा और अमित बच्चा नहीं होता है।  इसलिए वे दोनों घुटे-घुटे रहते हैं। वे कई जतन करते हैं, तब भी उनके औलाद नहीं होती। एक दिन नेहा की सहेली विशाखा बच्चा गोद लेने की सलाह देती है। इसमें नेहा का ममत्व करवटें लेने लगता है और अमित की सहमति से एक बच्ची और फिर बच्चा गोद लेकर वे अपने घर के साथ मन के भी सन्नाटे को दूर करते हैं। इस कहानी में नेहा और अमित के बच्चा गोद लेने न लेने के अन्तर्द्वन्द्व को प्रभावी तरीके से उजागर किया गया है।
         ' कागज़ ' कहानी में सरकारी अफसरों की तानाशाही का कच्चा-चिट्ठा खोला गया है। अशोक जब मीटिंग में जाता है तो अफसर कंवरलाल उसे मानसिक तौर पर प्रताड़ित करते हैं। आज के समय में अवसरवादी लोगों के रिश्तों से पनप रहे सन्दर्भों पर चोट करती इस कहानी में सरकारी, गैर सरकारी कार्यालयों में पनप रही संस्कृति का यथार्थ चित्रण है। 'सफर' कहानी में अपनी धर्मपत्नी के अनैतिक व्यवहार से व्यथित यात्री की कहानी है; जो अपने ही घर वालों के स्वार्थीपन से उकता कर पागल-सा जीवन जीने को मजबूर हो जाता है। गोपाल ट्रेन में सफर करते हुए जीवन के कटु सत्य के विराट स्वरूप को बतलाता है। 'सिसकती वादियाँ' आतंककारी माहौल का दिग्दर्शन कराती कहानी है जिसमें परिस्थिति के दवाब में युवा छात्र सुल्तान के आतंककारी बनने और उसके अन्तर्द्वन्द्व को बताया गया है।           'बिखरे हुए रंग' कहानी में परिवार के अन्दर पनप रहे पुरातनी और नये विचारों के द्वन्द्व को उभारा गया है। आराधना नयी सोच के साथ अपनी परम्परा का निर्वहन करने वाली युवती है; परन्तु उसका पति सुमित अपने परिवार के ढकोसलों के तले दबा रहकर पत्नी की बात नहीं सुनता। आराधना जब अपने पीहर जाती है तो उसके पापा अभिषेक बाबू उसे जीवन में समन्वय बैठाकर चलने की बात कहते हैं और आधुनिक परिवेश में परम्परागत संस्कारों के साथ तालमेल बिठाकर चलने की शिक्षा भी देते हैं। तब आराधना अपनों के बीच बिखरे पड़े वैचारिक द्वन्द्वों के रंगों को समेट कर उनकी पहचान को नये सिरे से कायम रखने का प्रण करती है। 'साँझ के संग' कहानी में अंजना अपनी लड़की सपना के विवाह को लेकर चिंतित रहती है। कई उपाय और प्रयास के पश्चात् भी उसके विवाह में विलम्ब अंजना और दिनेश को व्यथित करे रखता है। सपना का अवसाद से घिर जाना स्वाभाविक था। रिश्तों के टूटने के कारण और उससे उपजे सन्दर्भों को उजागर करती हुई यह कहानी अति आधुनिकतावादी और अय्याशी प्रवृत्ति वाले लड़कों से अपनी बेटियों का सगाई सम्बन्ध न करने की चेतावनी देती है।         
           समग्र रूप से कहें तो इन कहानियों में जिन बिखरते रिश्तों को प्रस्तुत किया गया है, वे हैं- विवाहिता लड़की के पितृ पक्ष और ससुराल पक्ष के, पुत्र के प्रति अपने ही परिजनों के, पत्नी के अनैतिक आचरण, सनकी पति और व्यवहारिक पत्नी के बीच विवाह पूर्व सगाई के टूटते रिश्ते, विद्यार्थी से आतंकवादी बने युवक और भ्रमणार्थ कश्मीर गये युवक के बीच आतंकी कार्यवाही के बीच बना मित्रता का रिश्ता, पीड़क अधिकारी और कर्मचारी में तथा अवसरवादी लोगों के बीच का रिश्ता, सेवानिवृत्त पिता के प्रति तीनों पुत्रों की उपेक्षा का, संतानहीन स्त्री और गोद लिये बच्चे-बच्ची के बीच का, उपेक्षा करने वाले पुत्र-पुत्रवधु के प्रति पिता की उदारता, पुरातनवादी पति और आधुनिकतावादी पत्नी के द्वन्द्व के रिश्ते को समन्वयवादी दृष्टि से सुलझाते पत्नी के पिता का।"
               राजस्थान पत्रिका , जयपुर (रविवारीय) 18 दिसम्बर 2005 के अंक में इस संग्रह की समीक्षा करते हुए डॉ. मीनाक्षी श्रीवास्तव ने लिखा है - " बिंधे हुए रिश्ते में विजय जोशी एक सजग, सचेत और संवेदनशील कहानीकार के रूप में व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का यथार्थ चित्रांकन करते हैं। इन कहानियों में जीवन यात्रा में बनते-बिगड़ते मानवीय संबंधों, तीव्र गति से बदलते जीवन मूल्यों तथा उनके द्वारा उद्घाटित संवेदनाओं, पात्रों के मनोभावों तथा मानसिक स्थितियों का वास्तविक चित्र अंकित किया गया है। कथाकार समाज में बिखरते हुए रिश्तों के दर्द को महसूस कर उन्हें सहेजना चाहता है। 'सांझ के संग', 'आखिर किसके लिए', 'टूट गए सन्नाटे', 'सिसकती वादियाँ', 'कागज' तथा 'बिंधे हुए रिश्ते' पारिवारिक संदर्भों को प्रस्तुत करने वाली मार्मिक कहानियाँ हैं। समग्र रूप से ये कहानियाँ पारिवारिक बिखराव, सामाजिक विसंगतियों, पुरातन और आधुनिकता के द्वन्द्व को प्रकट करने वाली कहानियाँ हैं। कथाकार आदर्शोन्मुख दृष्टिकोण से समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत करता है। मानवीय संवेदनाओं के आईने के रूप में ये कहानियाँ पात्रों के चरित्र-विधान, मनोवैज्ञानिकता, वैचारिक द्वन्द्व तथा युगीन परिवेश के कलात्मक संयोजन का सुन्दर नमूना है। कथा-संग्रह पाठकों के लिए पठनीय और संग्रहणीय है।"
          साहित्य चंद्रिका पत्रिका जयपुर, मई 2006 अंक में ' इक्कीसवीं शताब्दी के नवबोध की कहानियाँ : बिन्धे हुए रिश्ते' शीर्षक से प्रो. राधेश्याम मेहर ने कहानियों के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए लिखा है कि - "विषम वैश्विक परिस्थितियों से घिरे शताब्दी के इस कठिन काल में कहानीकार विजय जोशी का सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह 'बिंधे हुए रिश्ते' युगीन नव बोध के स्पर्श से महत्वपूर्ण हो उठता है जिसमें युवा होती तरूण पीढ़ी अपनी तमाम आशा-आकांक्षाओं और भटकन के साथ-साथ, अपने से बड़ी बुजुर्ग पीढ़ी के सत्य समाधानों के साथ चित्रित है। इन कहानियों का कथ्य ऐसा लगता है मानों पश्चिम के सहज-सुहाने आकर्षण से खिंचे-बिंधे भारतीय जन-मानस पर विजय जोशी की पैनी विचार दृष्टि का प्रकाश ही 'बिंधे हुए रिश्ते' का नवबोध है।"
       कोटा के आश्रय भवन में  25 नवंबर 2006 को आयोजित कहानी संगोष्ठी में "रिश्तों के अलगाव से उत्पन्न वेदना की मार्मिक अनुभूति : बिन्धे हुए रिश्ते " शीर्षक से पाठित आलेख में डॉ.  गीता सक्सेना ने कहा -"  इस संग्रह की कहानियाँ आधुनिक जीवन बोध से अनुप्रापित, मानवीय मूल्यों की वकलात करती पात्रों के द्वन्द्व, अन्तर्द्वन्द्व को उकेरती मनोवैज्ञानिक धरातल पर वैचारिक सम्प्रेषण और मानवीय संवेदनाओं का चित्रण करती है। भाषा और शिल्प की दृष्टि से कहानियाँ सहज, सरल और सवैध है। कहानियों में प्रयुक्त भाषा कथानक देशकाल, वातावरण संवाद एवं पात्रों के अनुकूल है। जिस परिवेश का चित्रण कथाकार द्वारा किया गया है भाषा भी उसी के अनुरूप साँचे में ढलती गई है। कहानी संग्रह रिश्तों के विविध रंगों को दर्शाता एक विस्तृत चित्र है जिसमें कथाकार का कलात्मक रूप भी अपनी पूर्ण भव्यता के साथ निखरा है। "
अन्त में डॉ. प्रेमचन्द विजयवर्गीय की यह बात सार्थक लगती है कि -" बिंधे हुए रिश्तें की कहानियों को पढ़ कर कह सकते हैं कि कहानियों में वस्तु संयोजन, पात्रों की मानसिकता, मनोवैज्ञानिकता, उनका चरित्र-विधान, वैचारिक विविधता और द्वन्द्वात्मकता के बीच सामंजस्य  और समन्वय के लिए प्रयास के साथ - साथ  रिश्तों के बिखराव और टूटन को जन्म देती युगीन परिवेश, परिस्थिति और वातावरण  सबका प्रभावी कलात्मक संयोजन किया है।"
 


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