शून्य से संघर्ष

( 666 बार पढ़ी गयी)
Published on : 29 May, 25 16:05

विकास कुमार उज्जैनियां छात्र, मुंबई (महाराष्ट्र)

 

शून्य पे बैठा मैं हर रोज,
मन में उठते हज़ारों बोझ।
कहा सबने – "कोशिश कर",
पर हर बार लगी एक ठोकर।
सोचा था मंज़िल मिल जाएगी,
पर राह में नींद सी छा गई।
थोड़ी सी आलस, थोड़ी भूल,
सपनों को कर डाली शूल।
कह दूँ सबको – "मैंने किया",
पर खुद से नज़रें न मिला सका।
सच ये है, मैं डर गया,
थोड़े आराम में बह गया।
जो हारे, पर लड़े ज़मीन तक,
वो मुझसे कहीं अधिक नेक।
कम से कम उन्होंने तो कोशिश की,
मैंने तो हिम्मत ही खो दी।
अब भी वक़्त है, जाग जाओ,
शून्य से आगे बढ़ जाओ।
मत बनो खुद के दुश्मन तुम,
कायरता से न कहो "अब बस तुम"।


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.