" यात्रा प्रारंभ होते ही मनीला और अनुपमा ने दो समूह बना लिए और अंत्याक्षरी शुरू कर दी। मुझे भी अच्छा लगा, जो बच्चे हमेशा लैपटॉप, मोबाइल से चिपके रहते हैं, आज हमारे पुराने समय की तरह गानों को याद कर रहे हैं और आनंदित हो रहे हैं। उनकी अंत्याक्षरी हमारी तरह अंतिम शब्द पर केंद्रित नहीं थी, बल्कि एक अनोखे तरह से तरह-तरह विविध विषय देकर खेली जा रही थी। अंत्याक्षरी में दो पीढ़ियां गाने का आनंद ले रही थी। रोजमर्रा की दिनचर्या में यह परिवर्तन सुखद लग रहा था।"
"सौराष्ट्र से सोमनाथ" पुस्तक के ये अंश दर्शाते हैं कि लैपटॉप, मोबाइल से चिपके रहने वाले बच्चें जब सफर में यूं मनोरंजन करते हैं तो सभी को कितना सकून मिलता है। सलूंबर निवासी देश की ख्यातनाम बाल साहित्यकार डॉ . विमला भंडारी जब भी अपना यात्रा वृतांत खिलती हैं, साथ गए बच्चों की रुचियों पर अवश्य अपने लेखन में रेखांकित करती हैं। उनकी पुस्तक " अमेरिका से मुलाकात" में बच्चों का पुस्तक प्रेम दर्शाया गया था। पूरे सफर में बच्चों के सपने, अठखेलियां, किस्से साथ - चलते हैं और संपूर्ण यात्रा वृतांत इतनी सरल और ग्रहीय भाषा में होता है कि प्रतीत होता है जैसे बच्चों के ज्ञान वर्धन के लिए लिखी गई है। यद्यपि बड़ों के लिए भी उतना ही रोचक , ज्ञानवर्धक होती है, जिनके अनुभव किसी को भी यात्रा के लिए प्रेरित करते हैं। यह यात्रा वृतांत जैसे - जैसे पढ़ता गया लग रहा था इस यात्रा की मेरी स्मृतियां भी ताजा हो रही हैं। निश्चित ही इन स्थानों को देखने की उत्कंठा पाठकों में पैदा करने में पुस्तक सफल रही है।
इस पुस्तक में लेखिका ने 23 से 27 दिसंबर 2021 को सौराष्ट्र की पांच दिवसीय यात्रा को 64 पृष्ठों में सचित्र रोचक तरीके से वर्णित किया है। एक पीढ़ी ये स्वयं तथा दूसरी और तीसरी पीढ़ी के साथ की गई यात्रा को इन्होंने 3जी यात्रा की संज्ञा से विभूषित किया है। तीन पीढ़ियों की यह यात्रा उदयपुर से शुरू होकर राजस्थान की सीमा के समीप गुजरात में स्थित शक्तिपीठ अम्बामाता ( पृष्ठ 8 ),भेंट द्वारका, ( पृष्ठ 13 ) , वेरावल बंदरगाह पर स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग ( पृष्ठ 30 ), सप्त पुरियों में एक शहर द्वारिका ( पृष्ठ 39 ), माधोपुर बीच, सोमनाथ ज्योतिलिंग, सोमनाथ बीच, ( पृष्ठ 44 ),, शेरों के लिए विख्यात गिर अभयारण्य ( पृष्ठ 69 ),गिरनार पर्वत पर स्थित अम्बे माता मंदिर ( पृष्ठ 82 ) का भ्रमण कर अहमदाबाद और उदयपुर होते हुए सलूंबर पहुंचने पर पूर्ण होती हैं।
सौराष्ट्र की देव भूमि पर कृष्ण, शिव के दो ज्योतिर्लिंग, देवी दुर्गा माता, भालता तीर्थ आदि मंदिरों में पूजा - अर्चना, अभिषेक कर दर्शन लाभ लेना, इनसे संबंधित पौराणिक कथाएं और दर्शन में आने वाली समस्याएं, मंदिरों में मोबाइल लेजाना वर्जित होने से चित्र नहीं ले पाने की कसक, छोटे बच्चे की बिछड़ने की चिंता इनकी यात्रा की स्मृतियां संजोई हैं।
जिन-जिन रास्तों से हो कर सफर तय किया उनके प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन, नीले आसमान के नीचे समुद्री लहरों का आसमान को छूना, बच्चों का होटलों के स्विमिंग पूल और समुद्री बीच के मजे भी लुभाते हैं। गिर के जंगल, वहां के शेर और आसपास के नैसर्गिक वातावरण का चित्रण वन्य जीवों, जंगलों और प्रकृति के प्रति प्रेम उत्पन्न करता है। एक स्थान पर कैंप फायर के दौरान अफ्रीका के सिद्धि समुदाय के लोगों की चर्चा और बाबा हजरत की आराधना में किए जाने वाले सिद्धि धमाल नृत्य का वर्णन करते हुए अपनी राजस्थानी संस्कृति के नृत्यों के बारे में भी जिक्र करना नहीं भूलती हैं। ( पृष्ठ 78 )
लेखिका ने अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्या को भी जोड़ते हुए डॉक्टर से बराबर चेकअप कराने का जिक्र करते हुए यात्रा का आनंद लिया। बैंट द्वारिका तक जेटी से समुद्र यात्रा का रोचक वर्णन करती हैं, " धीरे-धीरे रंग-बिरंगी नौकाओं से भरी जेट्टी प्रकट होने लगी थी। गुजरात के कच्छ की खाड़ी में यह एक छोटा सा पथरीला टापू है, जो सात मील लंबा है। यहां कई बड़े सुंदर और भव्य मंदिर हैं।
हमने नाव के टिकट लिए और नाव में सवार हो गए। नाव जब तक यात्रियों से लबालब भरी नहीं, तब तक चली नहीं। हमारे भारत में जान बहुत सस्ती है, किसी को कोई फिक्र ही नहीं। नाव वाला सवारी बढ़ाता रहा। अरब सागर के इस समुद्र में सफेद पक्षी आए हुए थे। कुछ लोगों ने चावल की फूली का दाना बिखेरा, तो वह नाव के ऊपर मंडराने लगे, पर भरी नाव में आनंद लेना मुश्किल हो रहा था। नाव धीमी गति से आगे बढ़ रही थी। एक ओर 'बेट द्वारका' मंदिर के द्वीप को जोड़ने के लिए पुल का निर्माण हो रहा था। आने वाले समय में यात्रियों को पुल द्वारा द्वीप पर पहुंचने का लाभ मिलेगा।"( पृष्ठ 16 )
भेंट द्वारिका में समुद्री यात्रा के बाद किनारे उतर कर इनके लिए लंबा चलना मुश्किल था ये लिखती हैं, " सांस फूल रही थी और बीपी बढ़ा हुआ था। अतः मुझे दामाद परीक्षित जी ने एक ठेला-लारी में बिठा दिया। वैसे तो मैं ठेला-लारी मैं हरगिज नही बैठती, परंतु अभी ठेला-लारी में बैठना मुझे उचित लगा क्योंकि रास्ता हलकी चढ़ाई वाला था। शकुंतला जी, मेरी समधन जी से भी मैंने बैठने का आग्रह किया पर उन्होंने मना कर दिया। पैदल चलने की कह, सब आगे बढ़ गए। यहां तो हलकी-हलकी धूप आ रही थी। ठेला-लारी वाला मुझ अकेली को तेजी से चलाते हुए मंदिर तक लेकर चला जा रहा था। भंडारी साहब उसके साथ-साथ तेज कदम चल रहे थे, जैसे कोई उनकी निधि छीनकर ले जा रहा हो और वह बेबस हो उसका पीछा करने के लिए। जीवन का यह एक ऐसा भावुक क्षण था, जहां 'आई लव यू' शब्दों की जरूरत नहीं थी। वह खुद-ब-खुद प्रकट हो रहा था, वृद्धावस्था की ओर अग्रसर होते हुए। यही भारतीय संस्कृति के वैवाहिक पद्धति की खूबी और चरमोत्कर्ष है। यहां प्रेम, अजर और अमर है, जो जन्म-जन्मांतर तक खत्म नहीं होता। यहां जीवन साथी नहीं बदले जाते। यहां साथी से साथ निभाया जाता है। कितनी सुरक्षित है यह व्यवस्था, किंतु वर्तमान में यह सुदृढ़ ढांचा चरमराने लगा है। आधुनिक शिक्षा और पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में। तलाक और उसके बाद पुनर्विवाह, जीवनसाथी बदल लेने का चलन हमारे भारतीय समाज में भी अपने डैने पसारने लगा है।" ( पृष्ठ 17 ) गुगल सर्च की यात्रा में काफी मदद मिली इसलिए कई बार इन्होंने इसकी चर्चा की है।
वातायन में लेखिका अपनी साहित्य लेखन की यात्रा शुरू होने की बात बताते हुए लिखती हैं, " मनुष्य घुमंतू प्राणी है, साथ ही सामाजिक प्राणी भी है। यही कारण है कि आजकल सोशल साइट्स पर क्रिएट पोस्ट के अंतर्गत लोग एक नहीं, बल्कि कई-कई फोटो अपलोड करके शेयर करते हैं। ये तसवीरें ऐसे स्थानों की होती हैं, जो बहुत कुछ बोलती है, मूक होकर भी मुंह खोलती हैं। फोटो देखने वालों के दिमाग में कई सारी जिज्ञासाएं उत्पन्न करती हैं। मसलन कहां का फोटो है, यह कौन सा स्थान है? यहां कैसे-कैसे जाया जा सकता है? आप कैसे पहुंच गए? कई तरह की ऐसी बातें, जो देखने वाले के मन में हलचल मचाकर उलझन पैदा करती हैं। यात्राओं में लोगों की रुचि कितनी है और यात्रा साहित्य भी एक रुचिकर विधा है, यह समझने योग्य समझ में आने लगा है और मैंने भी इसे गुजरकर ही जाना। '3G तीरथ के चितेरे रंग', तीन पीढ़ियों के साथ चलने की कहानी है। तीन पीढ़ी, जैसे तीन विचार, अनुभव और समय के अतीत, वर्तमान और भविष्य की कहानी हो। पढ़ने के बाद आप जरूर मुझसे सहमत होंगे, ऐसा मेरा अटल विश्वास है।"( पृष्ठ 3 )
जयपुर के डॉ. राजेश कुमार व्यास दो शब्द में लिखते हैं, " विमला भंडारी बौद्धिक बोझिलता से मुक्त यात्रा की सहज अनुभूतियों से हमें जोड़ती है। उनका यह लिखा इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें स्थान, वहां के इतिहास, पौराणिक, सामाजिक संदर्भों के साथ उससे पार दृश्य में निहित संवेदनाओं को भी गहरे से अनुभूत किया जा सकता है।" ( पृष्ठ 4 )
यात्रा वृतांत समाप्ति के उपरांत अपनी दूसरी पुस्तक " लंदन से रोम तक" का समीक्षा खंड भी जोड़ा है, जिसमें 10 समीक्षाएं हैं। प्रसिद्ध समालोचक और अनुवादक ओडिशा में तालेचर के दिनेश कुमार माली की समीक्षा विस्तार लिए पुस्तक पर रोशनी डालती है। ( पृष्ठ 95 ) इनके साथ - साथ लेखकीय मुकुट में एक नगीना :अनिल जायसवाल ( पृष्ठ 109), लंदन से रोम की स्वप्निल यात्रा : डॉ. जाकिर अली रजनीश( पृष्ठ 111), पैरों में पंख लगने जैसा यात्रा वृत्तांत : डॉ. शील कौशिक ( पृष्ठ 113 ),विस्तृत आकाश देती हैं यात्राएं : सुमन बाजपेयी ( पृष्ठ 116 ), जागी आंखों का सपना : प्रबोध कुमार गोविल ( पृष्ठ 118 ), उपन्यास सा आनंददायी यात्रा वृत्तांत : संजीव जायसवाल 'संजय' ( पृष्ठ 119 ), यूरोप यात्रा के लिए पथ प्रदर्शक पुस्तक : डॉ. फकीरचंद शुक्ला ( पृष्ठ 120 ), किस्सागोई शैली में लिखा गया यात्रा वृत्तांत : सुधा जुगरान( पृष्ठ
122 ), ज्ञान और रोचकता का खजाना :
कपिल चौखड़ा ( पृष्ठ 123 ) समीक्षा खंड के सुमन खिल रहे हैं। यथा स्थान यात्रा के चित्र दिए गए हैं और आवरण पृष्ठ आकर्षक बना है।