(MOHSINA BANO)
उदयपुर। आज मनुष्य बाहृय जगत को देख रहा है लेकिन अपने स्वयं को नहीं देख पा रहा। उसका यही दृष्टिदोष उसके दुःख का कारण है। जिसने अपने को जान लिया, वह सम्माननीय हो गया।'
'यह बात नारायण सेवा संस्थान के मानव मंदिर में आयोजित 'अपनों से अपनी बात' श्रृंखला में संस्थान अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने कही। उन्होंने कहा कि समाज में उसी व्यक्ति का आदर होता है, जो दूसरों के लिए त्याग करता है। ईर्ष्या, राग-द्वेष, लोभ -लालच, धन और अभिमान को जिसने अपने से परे धकेल दिया, वहीं सजग व्यक्ति है और ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी ठोकर नहीं खा सकता।
प्राय: होश में रहने की बात कही जाती है, ध्यान से उठने,बैठने, चलने और रहने की नसीहत दी जाती है। आखिर ये ध्यान क्या है? जागरूक रहते हुए वर्तमान में जीना ही ध्यान है। लेकिन हम देख रहे हैं कि जीवन में 'ध्यान' गौण हो गया है, जिसके परिणाम स्वरूप नाना प्रकार के दुःख, दुर्घटनाएं और रोग हावी रहते हैं। योग और ध्यान के साथ दिनचर्या शुरू की जाए तो कोई रोग, दुःख निकट आ ही नहीं सकता ।
अक्षय तृतीया के संदर्भ में उन्होंने कहा कुछ कि कि मान्यता है कि इस दिन जो भी संकल्प लिया जाए वह पूर्ण होता है। अतएवं यह दिन जीवन के अहम फैसलों के लिए भी शुभ है। यह पुरुषार्थ और त्याग कर पर्व है। इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम का प्राकट्य हुआ था। नर -नारायण व हयग्रीव अवतार भी इसी तिथि से जुड़े हैं। अक्षय तृतीया को ही भगत शिव ने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त किया था। यह दान-पुण्य का प्रमुख पर्व भी है।
कभी-कभी व्यक्ति अपनी वाणी के कारण भी संकट में आ जाता है। वाणी पर संयम आवश्यक है। व्यक्ति को अपने मन को नियंत्रण में रखने के लिए भी 'ध्यान' करना चाहिए। अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि कर्म जन्म -जन्मान्तरों तक व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ते।
इस कार्यक्रम में देश के विभिन्न भागों से पोलियो सर्जरी एवं कृत्रिम हाथ-पैर लगवाने के लिए आए दिव्यांग एवं उनके परिजन भाग ले रहे हैं।