श्रीमद् भागवत पुराण के प्रखाण्ड विद्वान और भागवत भूषण से विभूषित थे स्वर्गीय  पं. धरणीधर शास्त्री जिन्हें 18 हजार श्लोक कंठस्थ थे

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Published on : 04 Mar, 25 05:03

श्रीमद् भागवत पुराण के प्रखाण्ड विद्वान और भागवत भूषण से विभूषित थे स्वर्गीय  पं. धरणीधर शास्त्री जिन्हें 18 हजार श्लोक कंठस्थ थे

गोपेन्द्र नाथ भट्ट 

श्रीमद् भागवत के प्रखाण्ड विद्वान और भागवत भूषण से विभूषित एवं अन्तर्राष्ट्रीय वैष्णव परिषद के पूर्व अध्यक्ष उदयपुर (राजस्थान) के निवासी स्व.पं. धरणीधर शास्त्री की सोमवार को बाहरवीं पुण्य तिथि हैं ।

भट्टमेवाडा समाज उदयपुर के अध्यक्ष रहें पंडित धरणीधर शास्त्री जी ने राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र ,उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं प. बंगाल आदि विभिन्न प्रदेशों में श्रीमद् भगवत पुराण की असंख्य कथाओं का वाचन कर पुष्टिमार्ग और भारतीय संस्कृति की अक्षुण्ण परम्पराओं को आगे बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पंडित धरणीधर शास्त्री जी को 18 हजार श्लोक कंठस्थ थे। आज के कथा वाचकों की की तरह उन्होंने कभी अपनी कथाओं का प्रचार प्रसार और प्रदर्शन नहीं किया।वर्ष 2005 में उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउंडेशन, उदयपुर  की ओर से अरविंद सिंह मेवाड़ के हाथों हारित ऋषि सम्मान से सम्मानित किया गया था ।

झीलों की नगरी उदयपुर के गुलाबबाग रोड पर सरस्वती कुटुम्ब में रहने वाले पंडित धरणीधर शास्त्री जी का जन्म उदयपुर में ही हुआ था। उन्होंने यहीं स्नातक की डिग्री प्राप्त की। शिक्षा के बाद उन्होंने अध्यापक की नौकरी की।उनके पिता पं यमुनावल्लभ शास्त्री वेद-पुराणों के निष्णात ज्ञाता थे। उन्होंने गुजरात में अनेक बार श्रीमद् भागवत पुराण की कथाओं का वाचन किया और अहमदाबाद के माणक चौक के पास सात स्वरूप की हवेली में श्रीमद् भागवत पुराण का गुजराती में अनुवाद लिखा। धर्मावलंबियों ने इस पुस्तक के कई संस्करण प्रकाशित कराएँ और आज भी ये पुस्तक नाथद्वारा और गुजरात सहित अन्य स्थानों पर उपलब्ध हैं ।

धार्मिक पारिवारिक पृष्ठ भूमि के कारण पंडित धरणीधर शास्त्री जी का रुझान शुरू से ही वेद-पुराणों और आध्यात्म की ओर ही रहा। अपने पुत्र का धर्म के प्रति रुझान देखकर पिता पं यमुनावल्लभ शास्त्री ने भी उन्हें प्रोत्साहन दिया और उन्हें घर पर ही श्रीमद् भागवत का अध्ययन करवाया। पंडित जी कथा करते-करते इतने प्रसिद्ध हो गए कि उन्हें पहले अंतरराष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद उदयपुर का और बाद में प्रदेश अध्यक्ष चुना गया। उन्होंने अनेक बार विभिन्न प्रदेशों और देश के सभी धार्मिक स्थलों के भ्रमण किए । संस्था द्वारा पद दिए जाने के बाद उन्होंने पुष्टि मार्गीय सम्प्रदाय के उत्थान एवं विकास और समाज उत्थान के कई कार्य किए। इनमें से प्रमुख कार्य वल्लभ सम्प्रदाय की विभिन्न पीठों के तिलकायतों को धार्मिक शिक्षा दिया जाना है। उनके द्वारा किए गए कार्यों के बल पर ही वे आजीवन अंतरराष्ट्रीय पुष्टिमार्गीय वैष्णव परिषद के अध्यक्ष रहे।

अस्थल मंदिर, उदयपुर के महंत महामंडलेश्वर स्व.मुरली मनोहर शरण शास्त्री उनके बचपन के मित्र थे। इसी के चलते उन्होंने वर्षों तक अस्थल मंदिर उदयपुर में हर तीसरे वर्ष आने वाले पुरुषोत्तम मास के दौरान कई वर्षों तक श्री मद भागवत कथाए की। उनकी कथा वाचन में इतना आकर्षण था कि एक बार उनके मुखारविंद से कथा सुनने वाला उनका भक्त बन जाता था। 

86 वर्षीय की उम्र में मार्च 2013 में पंडित धरणीधर जी शास्त्री का उदयपुर में निधन हो गया । उन्होंने जीवन पर्यन्त हर एकादशी से पूर्णिमा के मध्य नाथद्वारा में श्री नाथ जी के दर्शन करने जाना नहीं छोड़ा तथा अपने निज निवास पर 100 वर्ष से भी प्राचीन ठाकुर जी की अस्पृश्य में रह नियमित सेवा की । इस परंपरा का आज भी उनके पुत्र हरीश शर्मा और नरोत्तम शर्मा निर्वहन कर रहें हैं ।


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