उदयपुर। संस्कृतभारती के क्षेत्रीय शिक्षण प्रमुख राजेन्द्र शर्मा ने भारतीय संस्कृति और कालगणना के महत्व पर जोर देते हुए कहा है कि उत्सव कैसा भी हो, चाहे वह अंग्रेजी का नया साल ही क्यों न हो, हमारी गतिविधियों में अपनी संस्कृति नजर आनी चाहिए, संस्कृति के विपरीत आचरण से बचना चाहिए। हर उत्सव को भारतीय परंपराओं के अनुरूप मनाना चाहिए।
वे बुधवार को यहां आलोक स्कूल फतहपुरा में चल रहे चित्तौड़ प्रांत के प्रांत स्तरीय आवासीय भाषा प्रबोधन वर्ग को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, "भारतीय कालगणना अत्यंत प्राचीन है और इसका नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर मनाया जाता है। हम इसे नवसंवत्सर के रूप में मनाते हैं, जो भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि वैश्विक स्तर पर अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 1 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है, लेकिन इसका उत्सव हमारी भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं है। हमें इसे मनाने में उत्साह तो दिखाना चाहिए, लेकिन हमारी परंपराओं और संस्कृति के विरुद्ध कोई भी आचरण नहीं करना चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं को जश्न के नाम पर भूलकर हमें अपनी संस्कृति के अनुरूप ही आचरण करना चाहिए। यह संदेश शिविर के छात्रों और शिविरार्थियों को विशेष रूप से दिया गया, ताकि वे अपनी संस्कृति से जुड़कर सही दिशा में आचरण करें।
यह प्रबोधन वर्ग संस्कृतभारती द्वारा आयोजित किया जा रहा है, जिसमें 12 जिलों के 180 छात्र-छात्राएं भाग ले रहे हैं, जिनमें 50 बालिकाएं भी शामिल हैं। यह शिविर 5 जनवरी तक चलेगा और पिछले पांच वर्षों के बाद उदयपुर में हो रहा है। शिविर में संस्कृत संभाषण, योगाभ्यास, गीता और रामायण का अध्ययन, और भाषा क्रीड़ा जैसी गतिविधियों के माध्यम से छात्रों को संस्कृत का अभ्यास कराया जा रहा है। बुधवार को क्रीड़ा सत्र में बच्चों को संस्कृत भाषा को सरलता समझने के उदृेश्य से संस्कृत के खेल खेलाए गए।
पत्राचार प्रमुख व आयोजक मंडल के मंगल कुमार जैन ने बताया कि शिविर में संस्कृत के माध्यम से भारतीय संस्कृति को समझने और उसे व्यवहार में उतारने के लिए विभिन्न प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जा रहे हैं। गीता के शिक्षाओं पर विशेष सत्र आयोजित किए गए हैं, जिसमें शिविरार्थियों से गीता के गूढ़ अर्थों पर भी चर्चा की जा रही है। इस शिविर का उद्देश्य बच्चों में संस्कृत के प्रति रुचि और भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान जागृत करना है, ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़कर अपने जीवन को और अधिक समृद्ध बना सकें।