जैन मुनि सुधैय महाराज की सल्लेखना पूर्वक देवलोकगमन

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Published on : 13 Apr, 24 06:04

सम्यक प्रकार से काया और कषायांे का कमजोर होना ही सल्लेखना - आचार्यश्री सुन्दरसागर जी

जैन मुनि सुधैय महाराज की सल्लेखना पूर्वक देवलोकगमन


भीलवाड़ा -  आज हाउसिंग बोर्ड सुपार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में विराजित आचार्य सुन्दर सागर जी महाराज के शिष्य मुनि सुधैय सागर ने गुरूवार को रात्रि 10.27 पर समाधि मरण प्राप्त हुआ, इनके ग्रस्थ जीवन का नाम आर.के. कॉलोनी निवासी रमेश सेठी था, इन्होंने आचार्यश्री सुन्दरसागर जी से दीक्षा ग्रहण की। अन्तिम समय में यम सल्लेखना को धारण किया तथा अपने भव को सुधारने के साथ-साथ पर भव को भी बड़े विनयता, सरलता के साथ सुधारा तथा जगत के सभी जीवों से क्षमा याचना करते हुये सभी को क्षमा भाव प्रेषित किया।
             समिति के अध्यक्ष राकेश पाटर्नी ने बताया कि मुनि के देवलोकगमन की डोल यात्रा बड़े ही भाव भक्ति के साथ हजारों श्रावक-श्राविकों की उपस्थिति में बैण्ड-बाजों के साथ हाउसिंग बोर्ड के सुपार्श्वनाथ मंदिर जी से निकाली जो कांवाखेड़ा में विधि विधान, मंत्र मंत्रोचारण के साथ आचार्य सुन्दर सागर ससंघ के सानिध्य में अन्तिम क्रिया सम्पन्न हुई।
             इस अवसर पर आचार्यश्री ने अपने उद्बोधन में बताया कि सल्लेखना मृत्यु को निकट जानकर अपनाये जाने वाली एक जैन प्रथा है। समें जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है। दिगम्बर जैन शास्त्र अनुसार उसे सल्लेखना कहा जाता है। काय और कषाय का कृष करना सल्लेखना है। बाहरी शरीर को और भीतरी कषायों को पुष्ट करने वाले कारणांे को घटाते हुए कृश करना सल्लेखना है। श्रावक और मुनियों को साधना करने में असमर्थ दिखने लगता है तो अपनी आत्मा में लीन होने का प्रयास करने लगता है, इसका अर्थ सम्यक प्रकार से काया और कषायांे का कमजोर होना ही सल्लेखना है। जीवन का अगर कोई सार है तथा व्रतों का अगर कोई फल है तो वह सल्लेखना पूर्वक समाधिमरण करना ही है। धर्मसभा का संचालन पं. पारस जैन ने किया।
             मीडिया प्रभारी भाग चन्द पाटनी ने बताया कि मंदिर में नित्य कार्यक्रम - प्रातः 6.30 बजे अभिषेक एवं शांतिधारा, प्रातः 8.30 बजे नियमित प्रवचन आचार्यश्री, प्रातः 10 बजे आहार चर्या, दोपहर 3 बजे स्वाध्याय तत्व चर्चा, सांय 6.30 बजे शंका समाधान, सांय 7 बजे जिनेन्द्र आरती एवं गुरू भक्ति वैयावृति होगें।


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