सततता के नए दृष्टिकोण में संस्कृति, पर्यावरण और जल के प्रति विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्कता है- डाॅ. वेंकटेश शर्मा 

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Published on : 01 Apr, 24 01:04

सततता के नए दृष्टिकोण में संस्कृति, पर्यावरण और जल के प्रति विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्कता है- डाॅ. वेंकटेश शर्मा 

उदयपुर,  भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के सामाजिक एवं मानविकी संकाय के अर्थशास्त्र विभाग एवं सतत शोध कल्याण संस्थान, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के सभागार में ‘सततता का नया दृष्टिकोण: अवसर एवं चुनौतियाँ ’ विषयक  दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ हुआ। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि डाॅ वेंकटेश शर्मा, मुख्य वन संरक्षक, राजस्थान ने उद्बोधन देते हुए कि सतत विकास प्राकृतिक प्रक्रिया है। लेकिन वर्तमान के वैज्ञानिक विकास और उभोक्तावादी संस्कृति के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित उपयोग हमारे समाने एक गंभीर चुनौती है। सततता के नए दृष्टिकोण में हमें इन तथ्यों को ध्यान रखना चाहिए। हमें आवश्यकता है कि हम वर्तमान के प्राकृतिक संसाधनों के यथार्थ को जानें तभी हम वास्तविक अर्थों में सतत विकास की अवधारणा को समझ सकते हैं। पर्यावरण वर्तमान की एक वैश्विक समस्या है। विशिष्ट अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी काॅलेज के प्रो सुनील बाबू ने कहा कि सततता के नए दृष्टिकोण में खुशहाली जैसे महत्वूपर्ण पक्ष को नजरअंदाज कर दिया गया है। वैज्ञानिक उन्नति और संसाधनों का पूर्ण दोहन करने के बाद भी विकास की अवधारणा में खुशहाली का मानक अभी भी बहुत कम है। विशिष्ट अतिथि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, उज्जैन के सेवानिवृत्त प्रो गणेश कावड़िया ने सततता के नए दृष्टिकोण के संबंध में अपने विचार रखते हुए कहा कि हमारा समग्र लक्ष्य विकास पर रहा है और इसे प्राप्त भी कर रहे हैं पर विकास की इस प्रक्रिया में खुशहाली का न होना चिंता का विषय है। और इस विकास के पीछे सततता बनी रहे यह भी ध्यान में रखे जाने की आवश्यकता है यही हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है। 

इस अवसर पर सोलर गांधी के नाम से प्रसिद्ध और कार्बनडाईऑक्साइड उत्सर्जन रोकथाम के संबंध में ग्यारह वर्ष की यात्रा पर निकले व चार साल की यात्रा के क्रम में उदयपुर पहुंचे मुंबई आईआईटी के प्रो चेतन सिंह सोलंकी ने कहा कि वर्तमान की प्रगति में कार्बनडाइऑक्साईड उत्सर्जन जैसी समस्या के बारे में जागरूकता का अभाव है। हमें इसके  उत्सर्जन की वर्तमान चुनौती का मुकाबला विकास की प्रक्रिया में करना है। उन्होंने कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए जानजागृति होना आवश्यक हैऔर ए एम जी ( अवाइड, मिनिमाइज और जेनरेट) के सूत्र के माध्यम से इस समस्या को हल करने का प्रयास कर सकते हैं। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण की चुनौती को गंभीर चुनौती मानते हुए कहा कि जब तक प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव नहीं करेगा की जलवायु परिवर्तन का कारण वह स्वयं है तब तक हम जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान नहीं कर सकते हैं।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए बीएन  विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट डाॅ महेन्द्र सिंह राठौड़ ने कहा कि वर्तमान संगोष्ठी का विषय जीवंत और ज्वलंत विषय है। वाद-संवाद की प्रक्रिया के रूप में आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी  से लाभदायक निष्कर्ष प्राप्त होंगे। यह सत्य है कि जीवन जीने के लिए सतत शोध आवश्यक है। सतत विकास एक महत्वपूर्ण चुनौती है। संसार परिवर्तनशील है यह जानते हैं लेकिन हमारे अविवेकपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से हमारा भविष्य संकटमय हो सकता है इस तथ्य को जानना अत्यंत आवश्यक है। हमें संसाधनों के समुचित उपयोग की दृष्टि का और प्रवृत्ति का विकास करना चाहिए तभी हम अपनी आनेवाली पीढीं का जीवन सुरक्षित रख सकते हैं।  विकास की प्रक्रिया में हमें संस्कृति और परंपराओं को भी ध्यान में रखना होगा। संगोष्ठी से प्राप्त निष्कर्ष का उपयोग भारत सरकार व राजस्थान सरकार के नीति निर्धारण में सहायक होंगे। विश्वविद्यालय के चैयरपर्सन  एवं संगोष्ठी के मुख्य संरक्षक कर्नल प्रो शिवसिंह सारंगदेवोत, कुलसचिव एवं संगोष्ठी सह सरंक्षक मोहब्बत सिंह राठौड़ ने शुभकामनाएं प्रेषित करते हुए बताया कि इस दो दिवसीय संगोष्ठी में शोधपरक चिंतन किया जाएगा। जिससे प्राप्त परिणामों एवं सुझावों की सामाजिक उपादेयता रहेगी।

इस अवसर पर भूपाल नोबल्स संस्थान के वित्तमंत्री शक्ति सिंह राणावत, विद्या प्रचारिणी सभा के सदस्य दिलीप सिंह दुदोड, डीन पी जी स्टडीज डाॅ प्रेमसिंह रावलोत, विज्ञान संकाय अधिष्ठाता डाॅ रेणु राठौड़, डॉ कमल सिंह राठौड़ सहित संकाय सदस्य, शोधार्थी आदि उपस्थित थे।  

प्रथम दिन दो तकनीकी सत्रों में पचास से अधिक शोधपत्रों का वाचन हुआ, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से  आए प्रतिभागियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत करते हुए सतत विकास के संबंध में अपने अनुभवों को साझा किया। इससे पूर्व सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी संकाय की अधिष्ठाता डाॅ. शिल्पा राठौड़ ने अतिथियों का स्वागत करते हुए संगोष्ठी की सफलता की कामना व्यक्त की। अर्थशास्त्र विभाग के सह आचार्य एवं संगोष्ठी समन्वयक डाॅ नरेश कुमार पटेल ने दो दिवसीय संगोष्ठी की रूपरेखा प्रस्तुत की। धन्यवाद ज्ञापन सतत शोध संस्थान की डाॅ एकता कटोड ने किया। कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन और सरस्वती वंदना के साथ प्रारंभ हुआ। उक्त जानकारी विभागाध्यक्ष डाॅ राजश्री चैहान ने दी। विभाग के सहायक आचार्य डाॅ नीमा चूण्डावत ने बताया कि संगोष्ठी के दूसरे दिन सौ से अधिक पत्रवाचन होंगे।  


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