चुनरी

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Published on : 30 Mar, 24 10:03

डॉ. प्रेरणाश्री गौड़

चुनरी

कांता काकी सब्जी मंडी में सब्जी का ठेला लगाती है। उसकी सब्जियां उतनी बढ़िया होती हैं, जितनी उसकी बोली। जब भी कोई गरीब उसके ठेले से सब्जी लेता है, तो वह हरी धनिया और मिर्ची मुफ्त में दे देती है। 
         कुंदन जब दस वर्ष की थी, तब से अपनी मां शीला के साथ कांता काकी के ठेले से सब्जी लेती रही है।
         शीला घर-घर बर्तन माजने का काम करके अपना और कुंदन का पेट भरती है। कुंदन जब एक वर्ष की थी, उस समय शीला का पति उसे छोड़कर चला गया। तब से शीला अपनी बेटी कुंदन के साथ अकेली रहती है। यह बात कांता काकी जानती है क्योंकि वह भी उसी बस्ती में रहती है।
          अब कुंदन अठारह वर्ष की हो गई है। शीला ने कुंदन की शादी के लिए कुछ पैसे पहले से इकट्ठे कर रखे हैं। जब से कांता काकी को पता चला है कि कुंदन का विवाह तय हो गया है तब वह खुश हैं। 
शीला “राम-राम कांता काकी।”
कांता काकी “राम राम शीला।”
शीला “अपनी कुंदन को ब्याह तै कर दियो है दो दिन को भोजन काकी मेरे यहां करनो है।”
कांता काकी “कुंदन बिटिया को ब्याह है, तू ना भी बुलाती तब भी मैं आती, मैं तो जरूर आऊंगी और खूब भरपेट खाऊंगी।”
          शीला अपने घर की तरफ निकल आती है, तो कांता काकी संदूक में रखे पैसे टटोलती है। संदूक से पांच सौ रुपए लेकर बाजार की तरफ जाती है।
          सेठ धनपत की दुकान में प्रवेश करती है। और अच्छी सी चुनरी दिखाने के लिए उससे कहती है।
कांता काकी “बढ़िया चुनरी दिखा दे भाई।”
          कई चुनरिया देखने के बाद में कांता काकी को गोटे पत्ती वाली चुनरी पसंद आती है।
कांता काकी “भाई मुझे तो गोटे पत्ती वाली चुनरी पसंद आई है इसकी कीमत बता दे।”
सेठ धनपत “बाई जी इसकी कीमत हजार रुपया है, रेट बिल्कुल फिक्स है, एक टका भी कम ना होगा।“
          कांता काकी मन ही मन सोचने लगती है मेरे पास तो रोकड़ पांच सौ ही है, फिर अंगुली में पहनी हुई चांदी की अंगूठी को देखते हुए सेठ से कहती है।
“सेठ जी मेरे पास तो पांच सौ रोकड़ है, और या चांदी की अंगूठी है इसको वजन कर लो और यह रख लो।”
सेठ धनपत “बाई जी रोकड़ पैसा दो, और चुनरी ले जाओ।”
कांता काकी “सेठ जी, मेरी लाडली छोरी को ब्याह है और उके खातिर या चुनरी पसंद आई है मैं तो या चुनरी ले जा सु।”
           सेठ धनपत मन ही मन विचार कर कहता है।
“बाई जी दे दो चांदी की अंगूठी।“
            सेठ धनपत बुद्धा को आवाज लगता है। “अरे बुद्धा इधर आ चांदी की अंगूठी ले जा और इसका वजन करा ला
कितने की है पूछ के आ जाना।“
            थोड़ी देर में बुद्धा आता है सेठ धनपत से कहता है।
“मालिक इस अंगूठी की कीमत पांच सौ बताइ है।”
            कांता काकी पांच सौ रोकड़ और चांदी की अंगूठी सेठ धनपत को देती है और कहती है। 
“या चुनरी हुई मारी लाडली छोरी कुंदन की।”


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