लिट्रेचर फेस्टिवल   संस्कृति से जुड़े  साहित्यकार - जितेंद्र निर्मोही

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Published on : 22 Feb, 24 04:02

लिट्रेचर फेस्टिवल   संस्कृति से जुड़े  साहित्यकार - जितेंद्र निर्मोही

कोटा  कोटा के लिए यह पहला सार्थक प्रयास रहा है। अगले साल कोशिश रहेगी अधिक जन भागीदारी सुनिश्चित हो। मैं जब इन सत्रों का निर्धारण डॉ. दीपक श्रीवास्तव अधीक्षक मंडल पुस्तकालय कोटा के साथ कर रहा था तो एक बड़ा फलक सामने था। हर एक की प्रस्तुति संभव भी नहीं थी,फिर भी हर संभव प्रयास रहा अधिक से अधिक भागीदारी सुनिश्चित की जाए। 
    राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा द्वारा पांच दिवसीय साहित्य फेस्टिवल का आयोजन लगभग साहित्य की लगभग हर एक विधा और साहित्य की विविध भाषाओं के विद्वानों की सहभागिता से बहुमुखी प्रतिभा और व्यक्तित्व का विकास करने की दृष्टि से किया गया था। यहां खुलकर संवाद भी हुआ हम पुस्तक मेले के दौरान पुस्तक संस्कृति से जुड़े ,यह एक कोशिश थी एक पहल थी। 
     यहां कितनी ही उपलब्धियों के सोपान देखने को मिले यह संवाद का ही परिणाम रहा कि मेरी पुरस्कृत संस्मरण कृति" उजाले अपनी यादों के" के बाद डॉ अपर्णा पाण्डेय एवम्  श्यामा शर्मा की संस्मरण कृति" वै दन वै बातां" के साक्षात्कार के दौरान हुआ।
     बाल साहित्य पर केंद्रित विभिन्न सत्रों के साथ साथ बाल साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम के विचार समग्रता के साथ साथ सामने आये। काव्य के प्रमुख सत्रों में विशेष टिप्पणियां भी आई वो भी विचारणीय रही। कथा क्षेत्र में साक्षात्कार ही नहीं वरन एकल कहानी पाठ भी हुए। संस्मरण की तरह निबंध/ यात्रा वृत्तांत/ रिपोर्ताज का सत्र डॉ. कृष्णा कुमारी पर केंद्रित रहा वार्ताकार विजय जोशी भी शानदार रहा।
कोशिश यह की गई की हर भाषा पर बात हो उर्दू में चांद शेरी ,सलीम आफरीदी और ए जमील  की उपस्थिति ने चार चांद लगाए।
      सिंधी साहित्य में किशन रतनानी और संस्कृत साहित्य पर डॉ कपिल गौतम की प्रस्तुति लाजवाब रही। चाहे सत्र अधिकांशतः हिन्दी और राजस्थानी भाषा पर केंद्रित रहे हो पर अन्य भाषाओं की उपस्थिति ने नगीने जैसा काम किया है । शोध संदर्भ में डॉ.वीणा अग्रवाल और डॉ. आदित्य गुप्ता के साक्षात्कार ने शोध कार्य को खोलकर रख दिया। आशा है हम अगले वर्ष एक नई पहचान के साथ फिर से मिलेंगे।


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