आध्यात्मिक लेखक व समाज सुधारक थे बावजी - प्रो. सारंगदेवोत

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Published on : 09 Feb, 24 13:02

सिद्ध पुरूष थे बावजी चतुर सिंह जी - बीएल गुर्जर

आध्यात्मिक लेखक व समाज सुधारक थे बावजी - प्रो. सारंगदेवोत

 
मानो या ना मानो, पण केणो मारो काम।
कीका डॉंगी रे ऑंगणे, मने रमता देख्या राम।

उदयपुर  जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के बावजी चतुर सिंह जी पीठ की ओर से शुक्रवार प्रताप नगर स्थित प्रशासनिक भवन में मेवाड़ के लोकसंत, कवि, दार्शनिक बावजी चतुर सिंह जी की 144वीं जयंती पर  आयोजित एक दिवसीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कुलपति कर्नल प्रो. शिवसिंह  सारंगदेवोत ने कहा कि मेवाड़ की धरती त्याग, तपस्या और बलिदान की रही है जहॉ मीरा बाई,  पन्नाध्याय, चतुर सिंह जी बावजी जैसे अनेक लोकसंत हुए है जिन्होंने जनमानस को जगाने का कार्य किया। उन्होंने कहा कि बावजी एक महान अध्यात्मिक लेखक व समाज सुधारक थे। उन्होंने अध्यात्मक शक्ति व आस्था को देश की धरोहर बताते हुए भारत की सांस्कृतिक व आध्यात्मिक विरासत को अपनाने पर बल दिया। साथ ही उन्होंने कहा कि संतों के पवित्र स्मरण से शरीर में नवीन उर्जा का संचार होता है। बावजी राजसी कुल से थे लेकिन उनकी सादगी के सभी लोग कायल थे। संत बनकर भले ही घर से निकल गये हों लेकिन संत कबीर की तरह पाखण्ड, आडम्बरों की जकड़ से कोसों दूर रहे। उनकी वाणी में भक्ति, प्रेम, वेैराग्य का मधुर रसायन था। विलक्षण प्रतिभा के धनी बावजी विरले संत, कवि, लेखक, समाज सुधारक और मेवाड़ी मार्तण्ड के रूप में आज भी जगत विख्यात है। 18 ग्रन्थो को उन्होंने मेवाड़ी भाषा में संजोया। बावजी चतुर सिंह प्रेरणा पुरूष थे वे कहते हैं ‘‘ कागद तो कहतो फिरे , हीये लिफाफो रा’’।





कुल प्रमुख भंवर लाल गुर्जर ने कहा कि बावजी चतुर सिंह जी एक सिद्ध पुरूष थे जिनका प्रमुख स्थान नउवा में  चतुर साधना धाम के नाम से प्रसिद्ध है। खानु मंगरी में बावजी की कोटडी स्थित है जिसे राजस्थान विद्यानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष एवं क्षेत्रीय विधायक स्व. निरंजननाथ आचार्य के द्वारा वित्तीय सहायता से कराया था। उन्होंने कहा कि  महिला सशक्तिकरण, शिक्षा व सर्वहारा वर्ग में चेतना का संचार करने में बावजी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। बावजी ऐसे संत थे जिन्हें आत्म साक्षात्कार हुआ था। बावजी आधुनिक राजस्थानी के महान लेखक थे। जिन्होंने संस्कृत के गंभीर ज्ञान को सरल राजस्थानी में अनुवाद करके आम जनता को उपलब्ध कराया। मेवाड़ में लोकप्रचलित दोहों के माध्यम से जनमानस की सोई ओर शिथिल पड़ी आत्मा को जगाने का श्रेय अगर किसी संत को जाता है तो वे बावजी चतुर सिंह जी ।

संगोष्ठी में डॉ. कौशल नागदा, समाजसेवी जगदीश पालीवाल,  प्रो. मंजू मांडोत, डॉ. भवानीपाल सिंह राठौड़, डॉ. रचना राठौड, डॉ. सुनिता मुर्डिया, डॉ. बबीता रसीद, डॉ. बलिदान जैन, डॉ. दिनेश श्रीमाली, डॉ. हीना खान, डॉ. नीरू राठौड़, डॉ. शिल्पा कंठालिया, डॉ. आशीष नंदवाना, भगवती लाल श्रीमाली, डॉ. चन्द्रेश छतलानी, डॉ. हेमंत साहू, डॉ. यज्ञ आमेटा, डॉ. ललित श्रीमाली, डॉ. संजय चौधरी, डॉ. हिम्मत सिंह चुण्डावत, विजयलक्ष्मी सोनी सहित  विद्यापीठ के डीन, डायरेक्टर, विभागाध्यक्ष एवं कार्यकर्ताओं ने बावजी चतुर सिंह को पुष्पांजलि अर्पित कर नमन किया।


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