सिरोही महाराव पद्मश्री रघुवीर सिंह सिरोही को साहित्य चूड़ामणि सम्मान से नवाजा

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Published on : 06 Feb, 24 12:02

सिरोही महाराव पद्मश्री रघुवीर सिंह सिरोही को साहित्य चूड़ामणि सम्मान से नवाजा

उदयपुर / जर्नादन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय) की ओर से मंगलवार को केसर विलास सिरोही महल में सिरोही महाराव पद्मश्री रघुवीर सिंह सिरोही को उनके द्वारा किए गए निरंतर साहित्यिक गतिविधियों से समाज के उत्कर्ष एवं मानवीय मूल्यों के लिए उनके अवदान हेतु साहित्य चूड़ामणि अलंकरण से नवाजा गया। जिसके तहत उन्हे अलंकरण, प्रशस्तिका, स्मृति चिन्ह, शॉल भेंट की गई। समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति कर्नल प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत  ने कहा कि पूर्व में यह सम्मान डॉ. कर्ण सिंह कश्मीर, रामधारी सिंह दिनकर, नरेन्द्र भाई दवे, सोहन लाल द्विवेदी, मोती लाल मेनारिया को भी प्रदान किया गया था। एक साहित्यकार समाज की वास्तविक तस्वीर को सदैव अपने साहित्य में उतारता रहा है। साहित्य द्वारा मानव जीवन के उत्थान व चारित्रिक विकास के सफल प्रयासों के साथ-साथ पद्मश्री रघुवीर सिंह के विशारद होने का एक प्रमाण यह भी है कि उन्हें विगत हजारों वर्षों के इतिहास सहित भारतीय संस्कृति व धर्म के तत्व जुबानी याद हैं। यदि हम इतिहास के पृष्ठों को पलट कर देखें तो हम पाते हैं कि साहित्यकार के क्रांतिकारी विचारों ने राजाओं-महाराजाओं को बड़ी-बड़ी विजय दिलवाई है। जब हमारा देश अंग्रेजी सत्ता का गुलाम था तब साहित्यकारों की लेखनी की ओजस्विता राष्ट्र के पूर्व गौरव और वर्तमान दुर्दशा पर केंद्रित थी। इस दृष्टि से साहित्य का महत्व वर्तमान में भी बना हुआ है। आज के साहित्यकार वर्तमान भारत की समस्याओं को अपनी रचनाओं में पर्याप्त स्थान दे रहे हैं।

साहित्य चूड़ामणि सम्मान से नवाजे जाने के बाद 81 वर्षीय महाराव रघुवीर सिंह सिरोही ने  कहा कि यह सम्मान मेरे व मेरे राजपरिवार के लिए गर्व की बात है। विद्यापीठ की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि  आजादी के 10 वर्ष पूर्व वंचित वर्ग तक शिक्षा पहुंचाने व हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए विद्यापीठ की स्थापना हुई। ऐसी संस्थाओं को विशेष दर्जा मिलना चाहिए, क्योंकि इन संस्थाओं ने समाज को विशेष अवदान दिया है। सिरोही राज्य की स्थापना 1260 ई. में हुई थी, तब से यह रियासत देश सेवा में तत्पर है। यहाँ की तलवार विश्वप्रसिद्द है। साहित्य में वह कला होनी चाहिए जिससे वह अपना आवश्यक प्रभाव पाठक पर छोड़ सके। लेखक और कवि को अँधेरे और उजाले में अंतर करना आना चाहिए ताकि वह सत्य को सामने रख सके। साहित्य में सत्य की अभिव्यक्ति बहुत आवश्यक है, साहित्य पहले पाठक को भीतर से तोडता है फिर उसे जोड़ता है। हिंदी भाषा साहित्य में बोलियों के शब्दों कम होते जा रहे हैं, यह रचनाकारों का दायित्व है कि अपनी इस अमूल्य धरोहर को बचा कर रखे। शब्द सिर्फ शब्द नही एक संस्कृति है, हमे इसे सुरक्षित रखना होगा। भाषा हमारी मूर्ति है जिसे हम हटा रहे हैं और विदेशी भाषा की ओर आकर्षित हो रहे हैं। अंग्रेजी गुलामी की प्रतीक है और हमे हिंदी को रोजगारपरक बनाना होगा । इसके लिए एक अभियान आवश्यक है।

इस अवसर पर महाराज कुमार इन्द्रेश्वर सिंह सिरोही, भरत बानु सिंह देवड़ा,  शिवदान सिंह देवड़ा, दुल्हेसिंह, शूरवीर सिंह, गोपाल सिंह तितरडी, दुर्गासिंह, बलवंत सिंह, किशन सिंह, भेरुलाल व्यास, निजी सचिव कृष्णकांत कुमावत सहित शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।


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