परमात्मा के चैत्यवन्दन विधि में मुद्रा त्रिक करें : साध्वी वैराग्यपूर्णाश्री

( 1895 बार पढ़ी गयी)
Published on : 24 Nov, 23 08:11

परमात्मा के चैत्यवन्दन विधि में मुद्रा त्रिक करें : साध्वी वैराग्यपूर्णाश्री

उदयपुर । श्री जैन श्वेताम्बर महासभा के तत्वावधान में तपागच्छ की उद्गम स्थली आयड़ तीर्थ पर बरखेड़ा तीर्थ द्वारिका शासन दीपिका महत्ता गुरू माता सुमंगलाश्री की शिष्या साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री एवं वैराग्य पूर्णाश्री आदि साध्वियों के सानिध्य में गुरुवार को चातुर्मासिक मांगलिक प्रवचन हुए। महासभा के महामंत्री कुलदीप नाहर ने बताया कि आयड़ तीर्थ के आत्म वल्लभ सभागार में सुबह 7 बजे दोनों साध्वियों के सानिध्य में ज्ञान भक्ति एवं ज्ञान पूजा, अष्ट प्रकार की पूजा-अर्चना की गई।   जैन श्वेताम्बर महासभा के अध्यक्ष तेजसिंह बोल्या ने बताया कि प्रवचनों की श्रृंखला में प्रात: 9.15 बजे साध्वी प्रफुल्लप्रभाश्री व वैराग्यपूर्णा ने परमात्म दर्शन चैत्यवंदन विधि के क्रम का विवेचन करते हुए मुद्रा त्रिक के विषय में बताया कि मुद्राओं का शरीर के ऊपर बहुत ही प्रभाव पड़ता है। पद्मासन की सुद्धा में बैग हुमा व्यक्ति कभी भी किसी की हत्या नहीं कर सकता।  यदि किसी को महकार जगा हो, तब किसी पूज्य की प्रतिकृति के सामने दो हाथ जोड़ कर मस्तक झुकाकर खडे रहने पर महंकार दूर हो जायेगा। काउसगा मुद्रा में खड़े रहने से क्रोध शान्त हो जायेगा। मुद्राओं का ऐसा मनुपम महत्व को जानने के बाद चैत्यनंदन की निधि में हमें इस प्रकार की तीन मुद्राओं को करना है। प्रथम योग मुडा यानी दो हाथ जोड़, हाथ की कोहनी पेट पर रखे जुड़े हुए हाथो की अंगुलियाँ एक दूसरे में क्रमश: गुंची हुई हो और हथेली को आकार कोश के डोडे मानी- अविकसित कमल की तरह बनाना और इस मुडा से परमात्मा की स्तुति, इरियावहियं, चैत्यवंदन, नमुत्पुर्ण, स्तवन मौर अरिहंत चेइ आणं आदि सत्र चोले। दूसरी मुक्ता शुक्ति मुद्धा: यानी दोनों हाथ जोड़कर देखें अंगुलियों को एक दूसरे के सामने रखकर होनों हथेलियों का मध्यभाग खोटनला रहे-सीप के आकार की तरह बनाना और इस मुडा से जावति, जावत और जयवीयराय सूत्र बोलना। तीसरी जिन मुद्रा यानी कायोत्सर्गमुडा सीधे खड़े रखकर दोनों पैरों के बीच आगे की ओर चार अंगुली जितना अंतर रखकर और पीछे की मोर चार अंगुली से कम अंतर रखकर दोनों हाथ सीधे लटकते हुए रखते हुए काउंसिग करना। इस मुह से नवकार और लोगस्स का उच्चारण करते है। चातुर्मास संयोजक अशोक जैन ने बताया कि आयड़ जैन तीर्थ पर प्रतिदिन सुबह 9.15 बजे से चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में धर्म ज्ञान गंगा अनवरत बह रही है।   


साभार :


© CopyRight Pressnote.in | A Avid Web Solutions Venture.