पर्युषण पर्व का पहला दिन अहिंसा दिवस के रूप मंे मनाया

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Published on : 12 Sep, 23 23:09

पर्युषण महापर्व आत्मकल्याण का मार्गःसुकनमुनि

पर्युषण पर्व का पहला दिन अहिंसा दिवस के रूप मंे मनाया

उदयपुर। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की ओर से सिंधी बाजार स्थित पंचायती नोहरे में श्रमण संघीय प्रवर्तक सुकनमुनि महाराज के सानिध्य में पर्यूषण महापर्व प्रारंभ हुए। पर्यूषण महापर्व के प्रथम दिन अहिंसा दिवस मनाया गया। चातुर्मास संयोजक एडवोकेट रोशन लाल जैन ने बताया कि प्रथम दिन विभिन्न धार्मिक एवं मांगलिक आयोजन संपन्न हुए। जिसमें सैकड़ो समाज जनों ने धर्म लाभ लिया। वरुण मुनि जी ने आत्म कल्याणकारी अंतगढ महाग्रन्थ सूत्र का वाचन प्रारम्भ किया। अंतगढ महाग्रंथ सूत्र का वाचन करते हुए मुनि श्री ने इसके बारे में श्रावकों को विस्तार से समझाया। अंतगढ़ महा ग्रंथ सूत्र ऐसा ग्रंथ है जिसे सुनने मात्र से व्यक्ति का कल्याण हो जाता है। अंतगढ महा ग्रंथ सूत्र पपर्यूषण महापर्व के आठों दिन तक रोजाना प्रातः 8.30 बजे से वाचन किया जाएगा।
पर्यूषण महापर्व के प्रथम दिन सुकुन मुनि महाराज ने इस पर्व की महानता बताते हुए कहा कि वर्ष में एक बार आठ दिनों का यह महापर्व आता है, जिसमें सांसारिक सारे कामों से दूर होकर श्रावकों को धर्म लाभ लेना चाहिए। यह महापर्व हमें आत्म कल्याण का मार्ग बताते हैं। आत्मा को स्थापित करने वाले होते हैं पर्यूषण महापर्व। अनगढ़ महा ग्रंथ सूत्र में भगवान महावीर की वाणी है। जिन्होंने इस वाणी को ध्यान पूर्वक श्रवण किया और जीवन में उतारा वह मुक्ति पा गए। जैन धर्म में अहिंसा को महत्वपूर्ण माना गया है। अहिंसा और हिंसा के कई प्रकार होते हैं। हिंसा नहीं करना ही अहिंसा है। अहिंसा महावीर भगवान का सिद्धांत है। अहिंसा के मार्ग से भगवान महावीर ने घर-घर में दया का भाव जगाया। मन वचन और काय से भी हिंसा होती है। हमें हर हाल में अहिंसा का पालन करना चाहिए। जिन्होंने अहिंसा का पालन किया उनका उद्धार हो गया। पर्यूषण  महापर्व के आठ दिनों में सभी को धर्म आराधना करते हुए अपने जीवन को सुधारने का उपक्रम करना है।
मुनि श्री ने कहा कि अहिंसा जैन धर्म का आधारभूत तत्व है। साधना की कसौटी में पहला कदम अहिंसा का आता है जो व्यक्ति अहिंसा को अपनाता हैं वह व्यक्ति मोक्ष मार्ग को प्राप्त करता है। जीवन में अहिंसा का प्रभाव और दया का प्रभाव अगर हो तो जीवन सुखमयी और कल्याणकारी हो जाता है। उन्होंने कहा कि हम सभी महावीर के सच्चे सपूत और जिनवाणी के सच्चे सुपुत्र हैं। मुनि श्री ने कहा कि हमारी आत्मा के आवरण पर जो पाप कर्मों का मेल चढ़ा है उसे धोने का महापर्व होता है पर्युषण महापर्व।
मुनिश्री के साथ ही सभी संतो ने पर्यूषण महापर्व का महत्व बताते हुए कहा कि अहिंसा हमारे जीवन का प्राण है, यह हमारे धर्म का आधार है। सबके साथ हमारा सम भाव होना चाहिए। जीवन में अहिंसा का पालन करते हुए सभी कषायो को त्याग कर हमें आत्म कल्याण के मार्ग पर चलना है।। यह पर्युषण महापर्व मात्र एक पर्व नहीं बल्कि यह आठ दिनों तक लगने वाला धर्म का मेला है। सभी संतों ने श्रावको को प्रेरणा देते हुए कहा कि अपने कर्मों की निर्जरा करने के लिए, ऑठो दिन तक अहिंसा का पालन करते हुए, सभी कषायो को त्यागते हुए जियो और जीने दो के सिद्धांत का पालन करते हुए और अपने मन में दया भाव जागृत करते हुए पर्यूषण महापर्व के आठों दिनों तक धर्म आराधना करें। इसी में आत्म कल्याण है।


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