पुरातन ग्रन्थों का मूल ज्ञान संस्कृत में विद्यमान - कुलपति सारंगदेवोत

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Published on : 04 Sep, 23 10:09

पुरातन ग्रन्थों का मूल ज्ञान संस्कृत में विद्यमान - कुलपति सारंगदेवोत

उदयपुर। पुरातन ग्रन्थों का मूल ज्ञान संस्कृत में विद्यमान है, जिसे शोध के माध्यम से समाज के बीच लाने की आवश्यकता है। 

यह बात जनार्दन राय नगर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो एसएस सारंगदेवोत ने रविवार को संस्कृत सप्ताह के तहत आयोजित संगोष्ठी में कही। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत से परंपराओं का पोषण एवं भारतीय संस्कृति चरितार्थ होती है। कौटिल्य शास्त्र में आठवीं अनुसूची में संस्कृत का महत्व अत्यधिक बताया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में संस्कृत के प्रचार प्रसार एवं संस्कृति को स्थान मिला है, जो गर्व की अनुभूति कराता है। नासा ने भी संस्कृत के महत्व को स्वीकार कर वैज्ञानिक रीति-नीति से यह प्रमाणित किया है। संस्कृत संपूर्ण भारतीय भाषा परिवार की जननी है। संस्कृत और संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन से ही राष्ट्र विश्व गुरु बन सकता है।

संस्कृत भारती द्वारा संस्कृत दिवस रक्षाबंधन से शुरू हुए संस्कृत सप्ताह के अंतर्गत रविवार को जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ एवं संस्कृतभारती के संयुक्त तत्वावधान में 'भारतीय संस्कृतौ वर्तमान परिवेशे च संस्कृतम्' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का प्रारंभ डॉ रेणु पालीवाल द्वारा दीप प्रज्वलन एवं रेखा सिसोदिया द्वारा ध्येय मंत्र से हुआ। 

मुख्य वक्ता संस्कृत भारती के क्षेत्र संगठन मंत्री हुल्लास चंद्र, मुख्य अतिथि राजस्थान संस्कृत अकादमी जयपुर के निदेशक राजकुमार जोशी,  विशिष्ट अतिथि पूर्व संभागीय संस्कृत शिक्षा अधिकारी डॉ भगवती शंकर व्यास, सुविवि के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो नीरज शर्मा थे।   अध्यक्षता जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो कर्नल शिव सिंह सारंगदेवोत ने की।

मुख्य वक्ता हुल्लास चंद्र ने कहा कि भारतीय संस्कृति के विविध उपक्रम, षोडश संस्कार आदि  प्राचीन ग्रंथों में संस्कृत में उल्लेखित हैं। उन्होंने वेदों में उपलब्ध ज्ञान परंपरा एवं ऋषि मुनियों द्वारा प्रदत्त प्राचीन परंपराओं का निर्वहन करने के साथ-साथ मूल्यों को व्यवहारिकता में लाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि प्राचीन ग्रन्थों में मातृवत परदारेषु, आत्मवत सर्व भूतेषु को महत्व दिया गया है, ताकि सभी में अपनत्व हो और अपराध न हो। उन्होंने चाणक्य, विश्वामित्र जैसे गुरुओं की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि उनकी तरह आज शिक्षकों को शिष्यों के प्रति अपना दायित्व निर्वहन करते हुए उन्हें समाज में उत्कृष्ट स्थान पर लाने की भूमिका में आना होगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा के उत्थान व संरक्षण में सभी समाज बंधुओं एवं छात्रों को प्रेरित करने का दायित्व आचार्य व शिक्षकों का है।

इस अवसर पर अतिथि प्रोफेसर नीरज शर्मा डॉक्टर भगवती शंकर व्यास आदि ने भी विचार रखे। 

संस्कृत भारती के विभाग सहसंयोजक नरेंद्र शर्मा ने कार्यक्रम का संस्कृत में संचालन किया एवं डॉ यज्ञ आमेटा ने अतिथि परिचय व स्वागत कराया। अंत में आभार राजस्थान विद्यापीठ के तकनीकी समन्वयक डॉ चंद्रेश कुमार छतलानी ने व्यक्त किया।


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