“हमें वेदों का स्वाध्याय कर उसे आचरण में लाना चाहियेः डा. योगेश शास्त्री”

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Published on : 31 Jul, 23 04:07

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“हमें वेदों का स्वाध्याय कर उसे आचरण में लाना चाहियेः डा. योगेश शास्त्री”

    आर्यसमाज धामावाला-देहरादून का आज रविवार दिनांक 30-7-2023 का साप्ताहिक सत्संग सोल्लास सम्पन्न हुआ। सत्संग के आरम्भ में समाज की यज्ञशाला में यज्ञ हुआ जिसे आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी के पौरोहित्य में सम्पन्न किया गया। यज्ञ में आर्यसमाज के कुछ सदस्य एवं स्वामी श्रद्धानन्द बालवनिता आश्रम के बच्चे उपस्थित थे। यज्ञ के बाद आर्यसमाज के सभागार में सत्संग आरम्भ हुआ। प्रथम स्वामी श्रद्धानन्द बालवनिता आश्रम की तीन छोटी बालिकाओं द्वारा एक-एक करके एक-एक कविता की कुछ पंक्तियों का पाठ किया गया। ये बालिकायें पांच वर्ष से कम आयु की थी और पहली बार मंच से प्रस्तुति दे रही थीं। इसके बाद आश्रम की ही पांच बालिकाओं ने मिलकर दो भजन प्रस्तुत किये। प्रथम भजन के बोल थे ‘मालिक सम्भाल लेना हमको सम्भाल लेना, हिम्मत हमें तो देना।’ दूसरे भजन के बोल थे ‘जब-जब ये मन घबराये तुम प्रार्थना करो’। सत्संग मंय सामूहिक प्रार्थना आश्रम की दो बालिकाओं निहारिका एवं निशा में प्रस्तुत की। सामूहिक प्रार्थना के पश्चात समाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने यजुर्वेद मंत्र संख्या 19.40 का पाठ एवं उसका आचार्य रामप्रसाद वेदालंकार जी द्वारा किया गया भावार्थ पुस्तक से पढ़कर श्रोताओं को सुनाया। 

    आज सत्संग में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आचार्य डा. योगेश शास्त्री जी आमंत्रित थे। आचार्य जी ने एक वेदमन्त्र के आधार पर तीन देवियों ईडा, सरस्वती तथा मही की चर्चा की। आचार्य जी ने लोकमान्य बालबंगाधर जी की पुस्तक गीता रहस्य का उल्लेख किया। उन्होंने कहा जिन दिनों वह माण्डवी जेल में गीता रहस्य पुस्तक का प्रणयन कर रहे थे उन्हीं दिनों उनकी पत्नी सत्यभामा जी का देहान्त हो गया था। जेलर को प्राप्त टेलीग्राम को पढ़कर उसने वह सन्देश तिलक जी को पहुंचाया। जेलर तिलक जी पर श्रद्धावान था। वह यह देखकर आश्चर्य में पड़ गया कि तिलक जी ने उस टेलीग्राम को पढ़ा और एक तरफ रख दिया। उनकी आंखों में दुःख के आंसु नहीं आये। जेलर हैरान था। उसने तिलक जी से इसका कारण पूछा तो वह बोले कि वह अपने सारे आंसु भारत माता की वर्तमान पराधीनता की दशा पर बहा चुके हैं। उनके पास अपनी पत्नी के लिए कोई आंसु बचा नहीं है। आचार्य जी ने कहा कि यह तिलक जी की देशभक्ति एवं बलिदान की भावनाओं से युक्त इतिहास का एक अद्वितीय उदाहरण है। आचार्य जी ने वेदमन्त्रों के आधार पर नारी के उच्च भावों का चित्रण किया। उन्होंने कहा कि हमें वेदों का स्वाध्याय कर वेद की शिक्षाओं से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिये। 

    आचार्य डा. योगेश शास्त्री जी ने संस्कार विधि में ऋषि दयानन्द जी द्वारा दिये गये विधानों का उल्लेख कर उन्हें पढ़ने तथा यज्ञ करने की प्रेरणा श्रोताओं को दी। उन्होंने कह कि यदि हम यज्ञ करते हुए वेदमन्त्रों की शिक्षाओं एवं प्रेरणाओं को आत्मसात नहीं करते तो हमें यज्ञ करने का अधिक लाभ प्राप्त नहीं होता। ऐसे यज्ञ से भौतिक लाभ तो होते हैं परन्तु आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती। आचार्य जी ने अपने सम्बोधन में बच्चों द्वारा मोबाइल फोन के प्रयोग की बढ़ती प्रवृत्ति और इससे होने वाली हानियों की चर्चा की और उदाहरण देकर श्रोताओं को अपने परिवार के बच्चों को मोबाइल के प्रयोग से दूर रखने की प्रेरणा एवं चेतावनी दी। आचार्य जी ने आगे कहा कि हम इस देश की नींव को कमजोर व खण्डित होने से बचाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि आज परिस्थितियां गम्भीर बन गई हैं। आचार्य जी ने वेदमन्त्र में ईडा, सरस्वती तथा मही देवियों का उल्लेख कर इन्हें जानने व समझने को कहा और इसके अनुसार देश व समाज का निर्माण करने का आह्वान किया। 

    आचार्य डा. योगेश शास्त्री जी ने कहा कि पूरे विश्व में संस्कृति एक ही है और वह वैदिक संस्कृति है। उन्होंने कहा कि वेदों के अनुसार भूमि हम सबकी माता है और हम सब भूमि माता के पुत्र एवं पुत्रियां हैं। आचार्य जी ने वैदिक संस्कृति पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि हम जो परोपकार के कार्य करते हैं वह पुण्य बन कर परजन्म में हमारी आत्मा के साथ जाते हैं और इससे हमें परजन्म में अच्छी योनि में जन्म एवं सुख मिलते हैं। सत्यार्थप्रकाश का उल्लेख कर आचार्य जी ने कहा कि यह यह ऐसा ग्रन्थ है कि इसे जितनी बार भी पढ़ा जाये इसे पढ़ने से हर बार नई-नई प्रेरणायें, ज्ञान व रहस्यों का पता चलता है। आर्यसमाज के उच्च कोटि के विद्वान आचार्य योगेश शास्त्री जी ने कहा कि हमें वेदों का स्वाध्याय कर उसे आचरण में लाना चाहिये। वैदिक संस्कृति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में हमारी संस्कृति सुरक्षित रही है, इसका कारण हमारे पूर्वज ऋषियों का तप है। उन्होंने कहा कि हमें वैदिक संस्कृति का रक्षक बनना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि वेद के अनुकूल चलने पर ही मनुष्य को सुख मिलता है। सरस्वती देवी की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि मातृ-भाषा वा वाणी को सरस्वती कहते हैं। 

    वैदिक विद्वान योगेश शास्त्री जी ने कहा कि आज का भारत पाश्चात्य संस्कारों में ढलता जा रहा है। उन्होंने कहा कि मही मातृभूमि को कहते हैं। उन्होंने बाल्मीकि रामायण की चर्चा कर राम से जुड़े उस प्रसंग को उद्धृत किया जिसमें वह कहते हैं कि लंका यद्यपि सोने की है परन्तु इससे वह आकर्षित नहीं होते। वह कहते हैं कि जन्मदात्री मां और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होते हैं और यह दोनों उन्हें प्राणों से भी प्रिय हैं। अपने सम्बोधन को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि हम वेद और वेद की शिक्षाओं से जुड़े। ऐसा करने से ही हमारा और हमारे देश भारत का कल्याण हो सकता है। 

    आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने शास्त्री जी का इस ज्ञानवर्धन एवं रोचक सम्बोघन के लिए धन्यवाद किया। कार्यक्रम का संचालन आर्यसमाज के युवामंत्री श्री नवीन भट्ट जी ने बहुत योग्यतापूर्वक किया। शान्तिपाठ से पूर्व आर्यसमाज के दस नियमों को पढ़ा व सुना गया। आज के सत्संग में स्थानीय विद्वान डा. नवदीप कुमार जी, श्री एन.एन. गोयल जी एवं श्री देवकी नन्दन शर्मा जी आदि भी पधारे थे। सत्संग में बड़ी संख्या में स्त्री-पुरुष उपस्थित थे। सत्संग की समाप्ति के बाद सभी आपस में मिले और अपने विचारों का आदान-प्रदान किया। ओ३म् शम्।     
-मनमोहन कुमार आर्य
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