नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र संस्कारों का संचरण केन्द्र -आचार्य देवव्रत

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Published on : 26 Feb, 23 14:02

नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र संस्कारों का संचरण केन्द्र -आचार्य देवव्रत

उदयपुर। नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र संस्कारों का संचरण केन्द्र कहा जाये तो कोई अतिष्योक्ति नहीं होगी। ये विचार गुजरात के राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रत जी ने अपने उद्बोधन में कहे। वे गुलाब बाग स्थित नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र के नवप्रकल्पों के लोकार्पण समारोह के अवसर पर पधारे। उन्हांंने द्वीप प्रज्वलित कर सांस्कृतिक केन्द्र का लोकार्पण किया। इस अवसर पर सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मेरे लिए यह अत्यन्त सौभाग्य का विषय है कि महर्षि दयानन्द सरस्वती की पुण्य तपस्थली नवलखा महल में श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाष न्यास द्वारा नवनिर्मित नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र जनता को समर्पण के लिए तैयार किए नए प्रकल्प आर्यावर्त चित्रदीर्घा, मिनी थियेटर,वैदिक संस्कार वीथिका के लोकार्पण समरोह में आने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ। सर्वविदित है कि नवलखा महल वह पवित्र कर्मस्थली है जहां महर्षि दयानन्द मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा सज्जनसिंह जी के आमंत्रण पर आये और यहां लगभग साढ़े छह माह विराजकर सत्यार्थ प्रकाष का प्रणयन सम्पूर्ण किया था।
महर्षि दयानन्द ने वैदिक संस्कृति के पुनर्जागरण के लिए क्रान्तिकारी प्रयास किए। उनके क्रान्तिकारी प्रयासों ने तत्कालीन कुरीतियों यथा बाल विवाह,सती प्रथा, बालिका षिक्षा, विधवा विवाह, छूआछूत उन्मूलन इत्यादि सामाजिक कुरीतियों के निवारण को नई दिषा मिली। महर्षि दयानन्द के क्रान्तिकारी प्रयासों के अग्र प्रसारण में श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाष न्यास सतत् कार्यरत है। नवलखा महल 1993 में आर्य समाज को प्राप्त हुआ उससे पूर्व यहां राजस्थान सरकार के आबकारी विभाग का शराब का गोदाम था तथा जीर्ण-षीर्ण अवस्था में था। सार्वदेषिक सभा व राजस्थान आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रयासों से विष्वभर के आर्यां की भावना का सम्मान करते हुए राजस्थान सरकार ने 1993 में यह भवन आर्य समाज को सौंपा। इस जीर्ण-षीर्ण भवन को सुन्दर बनाने/पुनरुद्धार के लिए न्यास के संस्थापक व  आजीवन अध्यक्ष स्वामी तत्त्वबोध जी सरस्वती ने उस समय एक करोड़ रु. दान की आहुति दी, इसके लिए इतिहास में उनका नाम अमर हो गया है।  यहां भव्य यज्ञषाला का निर्माण किया गया। आर्य जगत् के भामाषाह माननीय महाषय धर्मपाल जी,एमडीएच मसाले वालों ने अपनी दान सरिता से माता लीलावन्ती वैदिक संस्कृति सभागार का निर्माण करवाया, इसके लिए मैं उनका हृदय से आभार प्रकट करता हूं।




नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र के माध्यम से नव प्रकल्पों यथा आर्यावर्त चित्रदीर्घा, सुरेष चन्द्र दीनदयाल मिनी थियेटर, दीनदयाल सुरेषचन्द संसकार वीथिका परिसर, मधु हरि वार्ष्णेय प्रेरणा कक्ष तथा विभन्न दानदाताओं के सौजन्य से संस्कार वीथिका का निर्माण किया गया इसके लिए भाई श्री सुरेष चन्द्र जी, बाबू दीनदयाल जी, श्री हरि वार्ष्णेय व श्रीमती मधु वार्ष्णेय जी, श्री वीरमदेव जी कृष्णावत एवं सभी दानदाताओं का भी मैं आभार प्रकट करता हूं जिनके प्रयासों से आज नवलखा महल को हम इस रूप में देख रहे हैं। यहां के प्रकल्पों के द्वारा आर्य समाज का मुख्य ध्येय यज्ञ एवं वेद की ज्योति जलती रहे, आर्य समाज अमर रहे, के ध्येय को साकार करने का कार्य न्यास के अध्यक्ष श्री अषोक जी आर्य के नेतृत्व में किया जा रहा है इसके लिए मैं उनको और उनकी टीम का साधुवाद प्रकट करता हूं।
नई पीढ़ी में संस्कारों का संचरण हो, इसके लिए 16 संस्कारों को जीवन्त रूप में प्रकट करने की जो परिकल्पना कर उसे साकार रूप में परिवर्तित किया गया उसके लिए भी श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाष न्यास बधाई का पात्र है। यह विष्व का प्रथम प्रकल्प बनकर तैयार हुआ है जिसके माध्यम से जनमानस विषेष रूप से विद्यार्थियों में वैदिक संस्कृति एंव षिक्षाओं का संचरण हो रहा है। वहीं स्वतंत्रता आन्दोलन में अपने प्राणों की आहुति देने वाले क्रान्तिकारी जो वास्तव में नींव के पत्थर हैं, उनकी आमजन में पहचान नहीं है उनको पहचान दिलाने का कार्य नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा राष्ट्र महानायक वीथिका का प्रकाषन किया जा रहा है।
आज नवलखा महल के प्रकल्पों के कारण इसे राजस्थान राज्य की पर्यटक स्थलों की सूची में विषेष स्थान प्राप्त है। यह आर्य समाज के लिए गौरव का विषय है। प्रतिवर्ष यहां लगभग 30 से 40 हजार पर्यटक शुल्क देकर नवलखा महल का दर्षन करते हैं और इसका प्रचार प्रसार देष विदेष में हो रहा है। यहां प्रतिदिन प्रातः एवं सायं यज्ञ का आयोजन किया जाता है वहीं वैदिक संस्कृति के प्रचार प्रसार हेतु मासिक पत्रिका सत्यार्थ सौरभ का प्रकाषन भी किया जा रहा है। सच्चे अर्थां में वैदिक संस्कृति एवं महर्षि दयानन्द सरस्वती के विचारों के अग्र प्रसारण के लिए श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाष न्यास निरन्तर कार्य कर रहा है तथा इसको अपने दान की आहुति देकर जो दानदाता अपने योगदान दे रहे हैं वे अपने दान का सही दिषा में उपयोग कर रहे हैं। मैं इस अवसर पर श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाष न्यास एवं उसके कार्यकर्ताओं तथा यहां दान देने वाले दानदाताओं का आभार प्रकट करता हूं तथा आषा करता हूं कि नवलखा महल की गतिविधियों को नित नये आयाम मिलते रहें और न्यास की आगामी योजनाएं भी शीघ्र पूरी हों ऐसी कामना करता हूं। इससे पूर्व माननीय राज्यपाल ने संस्कार वीथिका, सुरेष चन्द्र दीनदयाल गुप्त मिनी थियेटर का अवलोकन किया।
ग्वालियर से पधारे वैदिक विद्वान श्री चन्द्रषेखर शर्मा सत्यार्थ प्रकाष के 14 समुल्लासों को 14 रत्न बताते हुए कहा कि उदयपुर में सत्यार्थ प्रकाष का सूर्य सर्वप्रथम उदय हुआ जिसमें अंधकार को नाष कर ज्ञान का प्रकाष सम्पूर्ण भारतवर्ष में ही नहीं विष्व में फैलाया है। नवलखा महल इसका मुख्य केन्द्र था और रहेगा। स्वस्ति पंथा न्यास के आचार्य अग्निव्रत जी नेष्टिक ने वेद विज्ञान को आर्य समाज का मूल बताया जिससे शारीरिक आत्मिक एवं सामाजिक उन्नति निहित है। वेद विज्ञान से बौद्धिक स्वतंत्रता प्राप्त हेती है जिस पर महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपार बल दिया था।
स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए श्री सुरेष चन्द्र आर्य, प्रधान सार्वदेषिक आर्य प्रतिनिधि सभा ने बताया कि नवलखा महल के माध्यम से सामाजिक,षैक्षिक एवं सांस्कृतिक उन्नयन के लिए निरन्तर कार्यरत है। यहां से देष विदेष में वैदिक संस्कृति के प्रचार प्रसार किये जा रहे कार्यां क फलस्वरूप दानदाताओं के सहयोग से न्यास की गतिविधियां संचालित हो रही हैं। निरन्तर नित-नये प्रकल्पों को प्रारम्भ किया जा रहा है। यहां की संस्कार वीथिका, आर्यवर्त चित्रदीर्घा जैसे प्रकल्प अतुलनीय हैं।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए जेवीएम ग्रुप के चेयरमेन एवं प्रसिद्ध दानवीर उद्योगपति श्री एस.के. आर्य ने बताया कि श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाष न्यास द्वारा नवलखा महल में किए गए कार्यां का अवलोकन करने के पष्चात् यह लगता है कि भारत पुनः विष्व गुरु बन सकता है। यहां संस्कार वीथिका, चित्रदीर्घा, सुरेषचन्द्र दीनदयाल गुप्त मल्टीमीडिया सेन्टर की परिकल्पना कर उसको साकार रूप में परिवर्तित करना आर्य समाज ही नहीं हमारे देष के लिए भी गौरव की बात है। यहां की भव्य यज्ञषाला प्राचीन वैदिक सभ्यता को पुनजाग्रत करती है।
बागपत के सांसद डॉ. सत्यपाल सिंह ने कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने जीवनकाल में 30 ग्रन्थों की रचना की। उसमें से उनकी सबसे महत्वपूर्ण कृति सत्यार्थ प्रकाष की रचना नवलखा महल में की। हमारा सौभाग्य का विषय है कि सत्यार्थ प्रकाष की इस रचना स्थली के माध्यम से भारत के गौरव का दर्षन हो रहा है।
श्रीमद् दयानन्द सत्यार्थ प्रकाष न्यास के अध्यक्ष श्री अषोक आर्य ने बताया कि दिनांक 12 फरवरी 2023 को यषस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200 वीं जयन्ती पर विष्वव्यापी आर्य महासम्मेलन और आयोजनों का शुभारम्भ दिल्ली से किया। इसी श्रंखला में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम महासम्मेलन दिनांक 26 एवं 27 फरवरी 2023 को नवलखा महल सांस्कृतिक केन्द्र के नव प्रकल्पों का लोकार्पण समारोह के अवसर पर आयोजित किया जा रहा है। महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200 वीं जयन्ती के उपलक्ष्य में 2 वर्ष तक निरन्तर कार्यक्रमों का आयोजन आर्य संस्थाओं के द्वारा किया जायेगा। मंच का संचालन डॉ. भूपेन्द्र शर्मा ने किया।
यज्ञ का आयोजनः- इससे पूर्व लोकार्पण समारोह का प्रारम्भ नवलखा महल स्थित भव्य यज्ञषाला में प्रातःकालीन यज्ञ से हुआ। यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य वेद्रप्रिय शास्त्री ने वेद मंत्रों की ऋचाओं से यज्ञ सम्पन्न कराया। मुख्य यजनमान श्री दीनदयाल गुप्त, चेयर मेन डालर ग्रुप सपत्नीक रहे। पूर्व लोकायुक्त श्री सज्जनसिंह कोठारी, श्री कुलभूषण शर्मा, दिल्ली, वासुदेव जी परोपकारिणी सभा अजमेर सपत्नीकी सहयोगी यजमान रहे। शास्त्रीय भजनोपदेषक श्री इन्द्रदेव पीयूष ने सुमधुर भजन प्रस्तुत किए। यज्ञ के आचार्य ने कहा कि मनुष्य ईष्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है लेकिन संस्कारों के बिना मनुष्य देवत्व को प्राप्त नहीं होता है। नवलखा महल के इस सांस्कृतिक केन्द्र के माध्यम से जन-जन तक संस्कारों को पहुंचाने का नवीन एवं सार्थक प्रकल्प तैयार किया गया है। राग व द्वेष की भावना से ऊपर उठकर बौद्धिक सम्पदा संसकार संरक्षक एनएमसीसी के माध्यम से अवष्य होता रहेगा। यज्ञ का संयोजन पुरोहित श्री इन्द्रप्रकाष यादव ने किया।
ध्वजारोहणः-यज्ञ के पष्चात् मुख्य कार्यक्रम का शुभारम्भ ध्वजारोहण से किया गया। ध्वजारोहण श्री दीनदयाल जी गुप्त, साध्वी उत्तमायति जी, तपस्वी जी, स्वामी सदानन्द जी, अग्निव्रत जी नेष्टिक, सूर्या देवी जी एवं धारण जी ने किया। ध्वजगान षिवंगज गुरुकुल की कन्याओं ने किया।


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