राजधर्म में समाए हैं सारे धर्म - प्रो . सत्यप्रकाश शर्मा

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Published on : 05 Feb, 23 13:02

राजधर्म में समाए हैं सारे धर्म - प्रो . सत्यप्रकाश शर्मा

अखिल भारतीय माघ महोत्सव के अंतर्गत कला संस्कृति मंत्रालय राजस्थान सरकार - राजस्थान संस्कृत अकादमी सुविवि  संस्कृत विभाग और देव एसबीएन ट्रस्ट के तत्वावधान में संस्कृत वाङ्‌मय में राजधर्म और सुशासन पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की शुरुआत हुई  और विद्वानों ने भारतीय चिन्तन परम्परा में राजधर्म और सुशासन के अनेक आयामों पर मन्थन किया ।
 संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह के मुख्यअतिथि राजस्थान उच्चतर शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष प्रो. दरियाव सिंह चुण्डावत ने भारतीय परम्परा के अनुसार  धर्म और कर्म की एकरूपता और  कर्तव्य के रूप में उसका वर्णन किया। संगोष्ठी निदेशक सुविवि संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. नीरज शर्मा ने  विषय प्रवर्तन किया तथा सारस्वत अतिथि एएमयू अलीगढ के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. सत्यप्रकाश शर्मा ने वैदिक साहित्य और स्मृति साहित्य के सन्दर्भ में  राष्ट्र और राजधर्म के विविध आयामों पर अपनी बात रखी और कहा कि राजधर्म के भीतर सारे धर्म समाए हुए हैं। राजधर्म का मजबूती से परिपालन होने  पर  प्रजा के धर्म अर्थ काम मोक्ष सारे पुरुषार्थ सिद्ध होते हैं। पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ के वैदिक विद्वान् प्रो. वीरेन्द्र कुमार अलंकार ने अनेक  वैदिक मंत्रों में वर्णित राजव्यवस्था  और प्रगतिशील प्रशासन के मूल्यों की व्याख्या की । राजस्थान संस्कृत अकादमी की अध्यक्षा डॉ. सरोज कोचर ने प्राचीन सुशासन के शास्त्रीय संदर्भों की चर्चा की। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो. प्रदीप त्रिखा ने की तथा डॉ जीएल पाटीदार ने आभार ज्ञापित किया । सत्र संयोजन डॉ. मुरलीधर पालीवाल ने किया । 
 विचार सत्र में  पं. जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी के सचिव राजेन्द्र मोहन शर्मा ने महात्मा विदुर के  विचार दर्शन और सुशासन के लिए  के आचरण की पवित्रता पर बल दिया।  लोकप्रशासन की विदुषी डॉ देवकान्ता शर्मा ने लोकतांत्रिक और पारदर्शी प्रशासनिक व्यवस्था के लिए कौटिल्य अर्थशास्त्र के मानदण्ड तथा निर्देशों  के अनुपालन और प्रासंगिकता पर व्याख्यान दिया।  वैज्ञानिक डॉ. चन्द्रगुप्त वर्णेकर ने प्रज्ञाभारती साहित्य, शिवराज्योदय महाकाव्य और ग्रामगीता काव्यों  में वर्णित  राजधर्म और सुशासन के तत्वों का प्रस्तुतीकरण किया । जेएनयू नई दिल्ली के संस्कृत और भारतविद्या के संकाय प्रमुख प्रो. सुधीर आर्य ने महर्षि दयानन्द के वेदभाष्य और पुरुष और देवीसूक्तों   के आधार पर समतामूलक समाज और सभा- समिति और शासन व्यवस्था पर व्याख्यान दिया। 
भारतीय चरित्र निर्माण संस्था नई दिल्ली के रामकृष्ण गोस्वामी ने  मानवाधिकारों की रक्षा, न्याय व्यवस्था और  अपराधमुक्त समाज के लिए श्रीमद्भगवद्गीता सन्दर्भ में राजधर्म  सुशासन पर व्याख्यान दिया।  समाजविज्ञान संकायाध्यक्ष  प्रो. सुरेन्द्र कटारिया ने यूरोपीय और भारतीय प्रशासनिक चिन्तन के इतिहास की तुलना की और लोक कल्याणकारी  शासन के लिए नैतिकता और संवेदनशीलता की अनिवार्यता पर विचार रखे।  संगोष्ठी में अनेक राज्यों से 70 प्रतिभागी  ऑनलाइन जुड़े रहे तथा आज आयोजित  ऑफ लाईन  तकनीकी सत्रों में 28 प्रतिभागियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए ।  कल विचार सत्र में सूरत के प्रो. सतीश पटेल, दर्शन शास्त्री प्रो. एस.आर. व्यास और चन्द्रगुप्त वर्णेकर के व्याख्यान होंगे तथा ऑनलाईन सत्र में 30 प्रतिभागी अपने शोधपत्र  प्रस्तुत करेंगे ।

 


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