उदयपुर मेवाड़ राजघराने के लोकसंत बावजी चतुरसिंहजी ने आमजन को मेवाड़ का इतिहास व संस्कृति को समझने के लिए संक्षिप्त में साहित्य की रचना की जो आज इतिहास के शोधार्थियों के लिए इतिहास लेखन में उपयोगी सिद्ध है ही साथ ही उनका साहित्य मेवाड़ की सांस्कृतिक परंपरा को समृद्ध करने की दृष्टि से ऐतिहासिक विरासत है।
उक्त विचार मेवाड़ इतिहास परिषद के अध्यक्ष प्रो. गिरीश नाथ माथुर ने बावजी चतुरसिंहजी की 143 वीं जयंती के उपलक्ष में मेवाड़ इतिहास परिषद द्वारा यहां परिषद कार्यालय पर आयोजित " बावजी चतुरसिंह जी के साहित्य में मेवाड़ का इतिहास"विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए।
परिषद के महासचिव डॉ. मनोज भटनागर ने बावजी चतुरसिंह जी की 'अमरबावनी','चतुरचिंतामणि', 'अलखपच्चीसी' इत्यादि मेवाड़ के विरासत ग्रंथों में उदयपुर के इतिहास की महत्वपूर्ण जानकारी को बताते हुए उनके साहित्य की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी संयोजक शिरीष नाथ माथुर ने बावजी चतुरसिंहजी के जीवन वृतांत को बताते हुए उन्हें मेवाड़ का पूज्यनीय संत बताया। राजस्थान आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी संघ के पूर्व अध्यक्ष डॉ गुणवान सिंह देवड़ा,डॉ.संगीता भटनागर,अनुराधा माथुर, डॉ. कैलाश जोशी, डॉ.अजय ने भी बावजी चतुरसिंहजी के जीवन आदर्शों पर प्रकाश डालते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।