महाराणा जयसिंह की ३६९वीं जयन्ती मनाई

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Published on : 20 Dec, 22 05:12

महाराणा जयसिंह की ३६९वीं जयन्ती मनाई

उदयपुर । मेवाड के ५९वें एकलिंग दीवान महाराणा जयसिंह जी की ३६९वीं जयंती महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मनाई गई। महाराणा का जन्म पौष कृष्ण एकादशी, विक्रम संवत १७१० (वर्ष १६५३ ई.) को हुआ था।
महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि महाराणा जयसिंह बहुत ही शान्तिप्रिय, दानी, धर्मनिष्ठ और उदारवादी थे। 
प्रमुख निर्माण कार्यों में महाराणा ने देवाली गांव के पास एक तालाब बनवाया। लेकिन बांध अधिक ऊंचा न होने तथा जल स्रोत कम होने के कारण उसका जल दूर-दूर तक नहीं फैल सकता था। जिस पर महाराणा फतहसिंह ने सुदृढ ऊँचा बाँध बँधवाया जिसका नाम फतहसागर रखा। महाराणा जयसिंह ने दूसरा तालाब थूर गांव के पास बनवाया। जो थूर तालाब कहलाता है। इन तालाबों की प्रतिष्ठा वि.सं. १७४४ में हुई थी। 
महाराणा जयसिंह ने उदयपुर से ३२ मील दक्षिण-पूर्व में विश्व विख्यात मानव निर्मित मीठे पानी की जयसमुद्र नामक झील का निर्माण वि.सं. १७४८ (ई.स. १६८७-१६९१) म करवाया। जिसमें गोमती, झामरी, रूपारेल और बगार नामक चार छोटी नदियों का जल एकत्र होकर दो पहाडों के बीच ढेबर नामक नाके में होकर निकलता है, जहां बांध बांधने के कारण लोक उसको ढेबर का तालाब भी कहते है।
इस झील के भरने पर इसकी लम्बाई ९ मील से ज्यादा और चौडाई ६ मील से अधिक है। इसका बांध दो पहाडों के बीच संगमरमर का बना हुआ है, जो १००० फुट लम्बा और ९५ फुट ऊंचा है। इसके पीछे एक समानान्तर दूसरा बांध भी बना है जो १३०० फुट लम्बा है। बांध पर ६ सुन्दर छतरियां बनी हुई है तथा छतरियों के नीचे एक ही पत्थर के बने ६ सुन्दर हाथी स्थापित किये गये हैं। वि.सं. १७४८ ज्येष्ठ सुदी पंचमी (ई.स. १६९१, २२ मई) को महाराणा जयसिंह जी ने तालाब की प्रतिष्ठा करवाई और स्वर्ण का तुलादान किया, इस बांध पर महाराणा जयसिंह जी का ही बनवाया हुआ संगमरमर का नर्मदेश्वर नामक शिवालय भी है, यह शिवालय उनके समय पूरा न हो सका था। वि.सं. १९३२ (ई.स. १८७५) की अतिवृष्टि को देखकर महाराणा सज्जनसिंह जी ने दोनों बांधों के बीच के विस्तृत खड्डे का २/३ हिस्सा पत्थर, मिट्टी और चूने से भरवा दिया। बांध की दक्षिणी पहाडी पर महाराणा जयसिंह जी के महल है यह झील बहुत ही सुन्दर, रमणीय एवं विशाल है।
 


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