महाराणा शंभुसिंह की १७५वीं जयन्ती मनाई

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Published on : 10 Dec, 22 04:12

महाराणा शंभुसिंह की १७५वीं जयन्ती मनाई

उदयपुर | मेवाड के ७१वें एकलिंग दीवान महाराणा शंभुसिंह जी की १७५वीं जयंती महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर की ओर से मनाई गई। महाराणा शंभुसिंह का जन्म वि.सं.१९०४, पौष कृष्ण एकम (वर्ष १८४७) को हुआ था। सिटी पेलेस म्यूजियम स्थित राय आंगन में उनके चित्र पर माल्यार्पण व पूजा-अर्चना कर मंत्रोच्चारण के साथ दीप प्रज्जवलित किया गया तथा आने वाले पर्यटकों के लिए उनकी ऐतिहासिक जानकारी प्रदर्शित की गई। 
महाराणा मेवाड चेरिटेबल फाउण्डेशन, उदयपुर के प्रशासनिक अधिकारी भूपेन्द्र सिंह आउवा ने बताया कि १४ वर्ष की आयु में कार्तिक पूर्णिमा संवत् १९१८, १७ नवम्बर १८६१ को महाराणा शंभुसिंह जी की गद्दीनशीनी सम्पन्न हुई। महाराणा का व्यक्तित्व मृदुभाषी, विद्यानुरागी, बुद्धिमान, सुधारप्रिय, प्रजारंजक और मिलनसार था। महाराणा के मृदु व्यवहार और शासन सुधार के प्रति दृष्टिकोण को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने महाराणा को ग्राण्ड कमाण्डर ऑफ दी स्टार ऑफ इण्डिया (ळण्ब्ण्ैण्प्ण्) का बडा खिताब दिया।
महाराणा ने राज्य में सर्वप्रथम सन् १८६३ ई. में राजकीय विद्यालय उदयपुर में ’’शम्भुरत्न पाठशाला‘‘ की स्थापना। उसी स्थान पर वर्तमान में राजकीय कन्या सी.से. स्कूल जगदीश चौक है। इस सरकारी पाठशाला की स्थापना से पूर्व राज्य में निजी पाठशालाएं हुआ करती थी इन शिक्षा संस्थानों में भाषा और गणित का सामान्य ज्ञान कराया जाता था, साथ ही धार्मिक विषयों पर चर्चा और अध्यापन भी होता था। उदयपुर में ही सन् १८६६ ई. में एक कन्या पाठशाला भी प्रारम्भ की गई। यह पाठशाला शम्भु रत्न पाठशाला की शाखा मानी जाती थी जिसमें प्रारम्भ में ५१ छात्राएं व २ अध्यापक थे। इस प्रकार वर्तमान में प्रचलित शिक्षा पद्धति के विद्यालयों का मेवाड में शुभारम्भ करने का श्रेय वास्तव में महाराणा शंभु सिंह को जाता है। महाराणा के समय में वर्ष १८६२ *. में उदयपुर में पहली डिस्पेंसरी प्रारम्भ की ग*। 
महाराणा ने अपने शासनकाल में दिलखुश महल, जगनिवास में शंभुप्रकाश महल, शंभुरत्न पाठशाला, सूरजपोल तथा हाथीपोल दरवाजों के बाहर सराय, मेयो कॉलेज में पढने वाले उदयपुर निवासी विद्यार्थियों के रहने के लिए अजमेर में ’उदयपुर हाउस‘ आबू और नीमच में बंगले, उदयपुर से देसूरी तक सडक, नीमच-नसीराबाद सडक का मेवाड राज्य का भाग, उदयपुर से खेरवाडा तक सडक, उदयपुर से चित्तौड तक की सडक तथा डाक-बंगले बनवाये। उन्होंने कई महलों, मकानों, तालाबों आदि की मरम्मत भी करवाई। जिसमें करीब २२ लाख रुपया का अनुमानित खर्च हुआ। महाराणा की औरस माता (बागोर के कुंवर शार्दूलसिंह की पत्नी) नंदकुंवर ने बडीपोल के बाहर ठाकुर जी गोकुल चन्द्रमा जी का मन्दिर बनवाया।

 


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