कायाकल्प करता है पंचकर्म

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Published on : 03 Dec, 22 11:12

- डॉ. दीपक आचार्य

कायाकल्प करता है पंचकर्म

आयुर्वेद चिकित्सा ने सारे विश्व में अपना अलग ही विलक्षण वजूद बना रखा है। आयुर्वेद आज की नहीं बल्कि पौराणिक काल से चली आ रही सहज व सरल परंपरागत चिकित्सा प्रणाली है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से न केवल सामान्य, मौसमी और असाध्य रोगांे का ही इलाज संभव है बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता में अभिवृद्धि, सेहत व स्वास्थ्य रक्षा के तमाम आयामों में आयुर्वेद लाभकारी है।

आयुर्वेदीय चिकित्सा विधान में पंचकर्म पद्धति अर्वाचीन काल से प्रचलित रही है जिसमें प्रकृति के सान्निध्य का लाभ लेते हुए रोगों से मुक्ति के साथ ही सम्पूर्ण शरीर का कायाकल्प हो जाता है तथा शारीरिक सौष्ठव में प्रभावी निखार आता है।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम देखें तो विश्व में आयुर्वेद एवं उसकी शाखाओं के प्रति लोगों  की जिज्ञासा व सोच में सकारात्मक परिवर्तन आ रहे हैं। आयुर्वेद की पंचकर्म पद्धति ने अन्य चिकित्सा पद्धतियों के साथ ही दुनिया भर के लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। पिछले दशक में देखें  तो विश्व भर में कितने ही आयुर्वेद के पंचकर्म पद्धति के चिकित्सा केन्द्र खुले हैं।

आयुर्वेद में पंचकर्म चिकित्सा अद्भुत एवं बेजोड़, सुकूनदायी चिकित्सा पद्धति है। यह पंचकर्म चिकित्सा पद्धति शरीर के दोषों को दूर कर शरीर का कायाकल्प कर देती है। यह दोषों को शरीर में दबाती नहीं बल्कि शारीरिक शुद्धिकरण की यह पद्धति स्वास्थ्य को बरकरार रखने  में उपयोगी है।

इसमें प्यूरीफिकेशन (शुद्धिकरण) के पश्चात रिजुविनेशन के परिणाम अच्छे प्राप्त होते हैं। इसी कारण शारीरिक शुद्धिकरण की इस पद्धति ने विश्व के वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। एक ओर मनुष्य आधुनिकता (मोर्डनाइजेशन) को एन्जॉय कर रहा है किन्तु दूसरी ओर इसकी कीमत भी चुका रहा है।

भोजन संबंधी प्रिज़रवेटिव्स, टॉक्सिन, कलरिंग, हाइब्रिड फूड़, फ्रोजन फूड़, फूड़ हैबिट्स में बदलाव, स्ट्रेस (तनाव) प्रदूषण आदि के कारण वेस्ट प्रोडक्ट हमारे शरीर में रोजाना इक्टठा होते रहे हैं, जिसके कारण अर्ली एजिंग (शीघ्र बुढ़ापा), डिसेबिलिटी (शारीरिक दौर्बल्य), लोस ऑफ इम्युनिटी (बीमारियों से लड़ने की क्षमता का अभाव) जैसी शारीरिक विषमताएं उत्पन हो रही हैं। इसके परिणामस्वरुप कई शारीरिक बीमीरियाँ जैसे क्रोनिक फेटुगो, सिन्ड्रोम, मल्टीपल एक्लेरोसिस, इन्सोमेनिया, डिप्रेशन अन्य कई क्रोनिक बीमारियां देखने को मिल रही हैं। इन पर अधिकतर मेडिसिन्स बेअसर हो रही हैं और अपने साइड इफेक्ट दे रही हैं।

इन सारे हालातों में पंचकर्म लाभकारी एवं पूरी तरह निरापद सिद्ध हो रहा है, क्योंकि यह शरीर के रोगजनित एवं रोगकारक अंगों को बिना दूषित किये, बिना नुकसान पहुँचाए शरीर से निकालकर बीमारी को ठीक करता है।

पंचकर्म पद्धति की प्रमुख पांच क्रियाएं

भारतीय चिकित्सा विज्ञान में पंचकर्म चिकित्सा पद्धति मूल रूप से पाँच प्रमुख क्रियाओं पर टिकी हुई है जिनके माध्यम से शरीर का सम्पूर्ण शुद्धिकरण होता है। इनमें वमन-(एनेसिस), नस्य(नेजल-मेडिकेशन), विरेचन(परगेशन), वस्ति (मेडिकेटेट एनिमा), रक्त मोक्षण(ब्लडलेटिंग) क्रियाओं का प्रयोग कर शरीर के दोषों को दूर किया जाता है।

हमेशा तन्दुरुस्त बनाए रखने की कला है पंचकर्म

आयुर्वेद का प्रमुख सिद्धान्त है -स्वस्थ व्यक्ति हमेशा स्वस्थ बना रहे। इसके लिए व्यक्ति अपनी दिनचर्या, रात्रि चर्या एवं ऋतु चर्या को संतुलित रखे और आयुर्वेद के सिद्धान्तों का पूरी तरह परिपालन करता रहे तो यह कोई मुश्किल नहीं है। ऐसे में समय-समय पर स्वस्थ व्यक्ति द्वारा भी उपयुक्त तरीके से पंचकर्म विधि अपनाई जाए तो रोगोत्पत्ति की संभावना बिलकुल क्षीण हो जाती है।

 इसके साथ ही पंचकर्म की विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से रोगों का निदान किया जा सकता है। जैसे अस्थमा, एलर्जी, श्वास रोग, खाँसी, कफ आदि दोष से संबंधी बीमारियों में पूर्ण लाभ होता है। प्रत्येक ऋतु के अनुसार भी पंचकर्म की विधियां हैं जिनका ऋतु विशेष में प्रयोग करने पर आशातीत लाभ प्राप्त होता है।

जैसे कि बसन्त ऋतु में वमन क्रिया करने से रोगी को लाभ मिलता है। इसी प्रकार शरद ऋतु में होने वाली पित्त दोष से जुड़ी, रक्त विकार, त्वचा विकार, एसिडिटी, गैस संबंधी बीमारियों में विरेचन क्रिया कराने पर लाभ होता है। वर्षा ऋतु में होने वाली वात दोष संबंधी बीमारियों में सन्धिवात, आमवात, कोई भी शारीरिक शूल जैसी बीमारियों में बस्ति  क्रिया करने से आराम मिलता है तथा इन दिनों में जोड़ों के दर्द के लिए बस्तिकर्म अत्यधिक लाभप्रद है।

बस्तिकर्म लेने से शरद ऋतु के आगमन पर जोड़ों के दर्द में शूल की तीव्रता में कमी आती है। इस समस्त पंचकर्म की प्रक्रिया के माध्यम से एक स्वस्थ व्यक्ति ऋतु के अनुसार अपने शरीर में इकट्ठे हो रहे कुपित दोषों को निकालकर स्वस्थ बना रह सकता है। इस प्रक्रिया से रोगोत्पादन के मूल कारणों को बाहर निकालने की यह सबसे सस्ती व सुलभ क्रिया है।

पंचकर्म की इन क्रियाओं को करने से व्याधि की पुनः उत्पत्ति नहीं होती। इन क्रियाओं के करने से अस्थमा, एलर्जी, जोड़ों का दर्द, मोटापा, साइनस, साइटिका, तनाव, माइग्रेन, अनिद्रा आदि कई व्याधियों में लाभ होने के साथ-साथ पंचकर्म से जठराग्नि प्रदीप्त होती है, व्याधि के शमन के साथ ही उत्तम स्वास्थ्य हमेशा बना रहता है। इससे इन्द्रियां, मन, बुद्धि अपने स्व कार्य बेहतर तरीके से करती है, जिससे वर्ण एवं बल का प्रसादन होता है, शरीर पुष्ट रहता है, वृद्धावस्था देर से आती है, सौन्दर्य में निखार आता है और व्यक्ति रोगरहित होकर दीर्घायु प्राप्त करता है।

स्वास्थ्य के लिए निरापद चिकित्सा पद्धति के रूप में पंचकर्म का प्रसार हिन्दुस्तान में अब आम हो चला है। दक्षिण भारत में तो इसके बड़े-बड़े संस्थान स्थापित हैं। अब उत्तर भारत में भी इसे अपनाया जा रहा है। आयुर्वेद विभाग और आयुर्वेद से जुड़े संस्थान और आयुर्वेद चिकित्सकों का रुझान इस दिशा में बढ़ता जा रहा है।

स्वास्थ्य लाभ के माध्यम के साथ ही पंचकर्म के जरिये देश के उन विभिन्न हिस्सों में मेडिकल टूरिज्म को आजकल बढ़ावा मिल रहा है, जहां हर्बल गार्डन, जलाशय और नदी-नाले तथा प्राकृतिक वातावरण आदि भरपूर उपलब्ध हों।


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