वीगन को अपनानें वालों की प्रतिवर्ष बढ़ रही संख्या

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Published on : 10 Sep, 22 14:09

जानवर हमारंे इस्तेमाल के लिये नहीं बनें,उन्हें भी स्वतंत्र जीवन जीनें का अधिकार

वीगन को अपनानें वालों की प्रतिवर्ष बढ़ रही संख्या

उदयपुर। वीगन का चलन भले ही भारत से हुआ हो लेकिन आज विदेशों में शाकाहार यानि वीगन को अपनाने वालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है क्योंकि वे अपने स्वाथ्स्य को लेकर चिंतित है और वीगन उन्हें स्वस्थ जीवन अपनाने की ओर प्ररित करता है।  
यह कहना था वर्ल्ड वीगन आर्गेनाईजेशन के अध्यक्ष इण्डोनेशिया से आये डॉ. सुशियान्तो का। वे आज वर्ल्ड वीगन ओर्गेनाईजेशन की शहर मे ंचल रही तीन दिवसीय मिनी कॉन्फ्रेन्स के दूसरे दिन हिरणमगरी से. 11स्थित आलोक स्कूल एवं आरएनटी मेडिकल कॉलेज में विद्यार्थियों ,नर्सिग छात्रों व चिकित्सकों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गाय के दूध में हमें 11 प्रतिशत केल्शियम मिलता है और यदि हम उसका त्याग कर देते है तो न केवल हम स्वस्थ रहेंगे वरन् हमें उसके स्थान पर तिल का उपयोग करने पर दूध से कहीं अधिक केल्शियम अपने शरीर को मिलेगा।
इस अवसर पर टाटा इन्स्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस में कार्यरत परि सचदेवा ने बताया कि जानवर हमारें इस्तेमाल के लिये नहीं बनें है। उन्हें भी स्वतंत्र जीवन जीनें का अधिकार है। वीगन भारत का ही कन्सेप्ट है लेकिन आज उस कन्सेप्ट को विश्व बहुत तेजी से अपना रहा है। अहिंसा, करूणा का हमें जानवरों के प्रति उपयोग करना चाहिये। भारत में 38 प्रतिशत लोग शाकाहार है और वे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से वीगन को अपना रहे है।
उन्होंने कहा कि दूध बच्चें के लिये पूरी खुराक है। जो उसे अपनी मां से मिलता है लेकिन हम वयस्क होने के बावजूद गाय या भैंस के दूध का सेवन करते है। भारत विश्व में ब्लड प्रेशर व मधुमेह में नं. 1 है जिसके पीछे मुख्य कारण जावनरों से आये खाने का सेवन करना है। मांस व चमड़े की इन्डस्ट्री दूध के बल पर ही चलती है। हमें शुद्ध शाकाहारी बनना है तो हमें गाय-भैंस के दूध का सेवन बंद करना होगा। आलोक स्कूल में वाइस प्रिंसीपल शशंाक कुमावत व आरएनटी में अधीक्षक डॉ. आर.एल.सुमन ने भी कार्यक्रम संबोधित किया। कान्फ्रेन्स चेयरमैन भारत के आर.क.ेसिंह ने प्रारम्भ में मिनी कॉन्फ्रेन्स की जानकारी दी।  


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