करामाती खड्डाखोर

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Published on : 05 Aug, 22 01:08

- डॉ. दीपक आचार्य

करामाती खड्डाखोर

इसे साहस कह लें या दुस्साहस। मगर सच यही है कि लोग कहीं भी, कुछ भी कर गुजरने में पीछे नहीं रहते। ख़ासकर तब जबकि बुरे और निन्दित कर्म करने हों और अपने किसी न किसी छोटे-मोटे स्वार्थ की पूर्ति होने की उम्मीद हो।

लोगो की दो किस्में हुआ करती है। एक वे हैं जो वे ही काम करते है जो उनके लिए निर्धारित होता है या जो अच्छे इंसान के रूप में उन्हें करना चाहिए। दूसरी किस्म में वे लोग आते हैं जो अपने लिए निर्धारित कोई सा काम नहीं करते, बल्कि वे सारे ही काम करने के आदी हो जाते हैं जो काम उन्हें कभी नहीं करने चाहिएं। यो कहें कि इस किस्म के लोग वे सारे उल्टे-सीधे काम करते हैं जो न उनके लिए अच्छे हैं, न औरों के लिए।

बल्कि इन सभी लोगो को ताजिन्दगी वे ही काम रास आते हैं जो औरो को दुःखी करने के लिए ही होते हैं। आजकल कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जहाँ ऐसे मनहूस, छिद्रान्वेषी और नकारात्मक लोगों का जमावड़ा न हो। एकाध तो हर जगह मिल ही जाएगा जो पूरे संस्थान और परिसर-परिवेश में गंदगी फैलाने में दिन-रात जुटा ही रहता है।

अपनी ड्यूटी, फर्ज और घर-परिवार तथा समाज एवं क्षेत्र के लिए निभाये जाने वाले कार्यों को एक तरफ रखकर ये लोग औरों की जिन्दगी में झाँकने, अपने हक में दूसरों का पूरी बेशर्मी के साथ शोषण की हद तक इस्तेमाल करने, अपने नाजायज काम में मदद नहीं करने वाले तथा परोपकारी गतिविधियों में समर्पित भाव से जुटे हुए लोगों के लिए कई तरह की बाधाएँ पहुँचाने में अपने आपको महान एवं समर्थ महसूस करते हुए अपने विध्नसंतोषी और छिद्रान्वेषी कार्यों पर जिन्दगी भर आत्म गौरव एवं गर्व का अहसास करते रहते हैं।

अपने आस-पास की बात हो या पूरे इलाके की, या फिर देश के किसी भी क्षेत्र की, हर जगह ऐसे महान और स्वनाम धन्य लोगों का बाहुल्य है जो औरों के लिए खड्डे खोदने में इतने माहिर हैं कि इनके हुनर को देख कर वह हर आदमी सलाम करने को मजबूर हो ही जाता है जो उनके क्षेत्र का अनुभवी और पुराना हो।

औरों के लिए जब चाहे जहाँ चाहे, वहाँ ये लोग खड्डे खोदने में इतनी महारत रखते हैं कि खदान श्रमिक तक इनके आगे पानी ही भरने लगें।।

ये लोग यदि खड्डा खोदने वाली कंपनी में होते तो इन्हें अपने इस अकेले हुनर के बूते नोबेल पुरस्कार का ही हकदार मान लिया जाता। खड्डा खोदने वाले इन खड्डूओं के लिए उन्हीं की तरह के दूसरे खड्डूजी हर कहीं मिल ही जाते हैं जो उन्ही की तर्ज पर काम करते हुए औरों के लिए खड्डे खोदने में ही लगे रहते है और अपने इसी नायाब हुनर से ताजिन्दगी आनंद का पान करते रहते हैं।

लगातार नकारात्मक और विध्वंसकारी गतिविधियों में रमे हुए इन लोगों का काम सड़कों के सदाबहार पेचवर्क की तरह सालों और दशकों तक चलता रहता है। खड्डे ही खड्डे खोदते रहने की इस लम्बी जीवन यात्रा में इनके लिए न कोई अपना है न पराया। इनके अपने और परायों की परिभाषाएं देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप बदलती ही रहती हैं।

खड्डाखोदी लोगों के लिए वे ही लोग अपने हैं जो उनके गैर जरूरी अथवा नाजायज कामों में सहयोग देने वाले हैं अथवा इनके काले कारनामों और करतूतों के प्रति जानकार लोग सब कुछ जानते-बूझते हुए भी आँखे मूँदे बैठे रहें।

हर इलाके में बिराजमान और स्थापित इस किस्म के लोग समाज-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी टांग फंसाने के आदी होते हैं। इनके आस-पास के, सम्पर्कित तथा इनके अपने इलाके या इनके कार्यक्षेत्र के कोई भी लोग इनकी नापाक और विध्वंसक गतिविधियों से शायद ही बच पाते हैं क्योंकि ये लोग पहला हमला उन्हीं लोगों पर बोलते हैं जो उनके करीबी और परिचित हुआ करते हैं।

इसका मूल कारण यह है कि इनकी कारगुजारियों का पता लग पाने तक भी करीबी लोग इन्हें अपने होने का भ्रम पाले रहते हैं। अपने करीबियों के प्रति भ्रम का माहौल बनाने में माहिर ये लोग दो तरफा काम करते हैं। चूहों की तरह घुसपैठ कर सुरंग बनाने से लेकर औरों के लिए बडे़-बड़े खड्डे खोदने तक में ये कुशल शिल्पी की भूमिका अदा करते हैं।

अपने पूरे जीवन में ये लोग कोई रचनात्मक कार्य कर पाएं या न नहीं, मगर औरों के लिए खड्डे खोदने का काम बखूबी करते ही रहते हैं जैसे कि यही उनके जीवन का सर्वोपरि लक्ष्य हो।

एक सीमा तक ये अपने इन लक्ष्यों में कुछ आयु वर्ष तक सफल रहते हैं लेकिन जब सभी जगह इनकी कलई खुल जाती है तब इनका खड्डू कर्म दूसरा रास्ता पकड़ लेते हैं। जीवन के अंतिम पड़ाव तक पहुँचते-पहुँचते इनकी पूरी जिन्दगी खुद ही खड्डेदार हो जाती है।

इस अवस्था में उन्हें अपने कुकर्मों का अहसास भले न हो पाए, मगर इनका पूरा परिवेश धुंधला होना शुरू हो जाता है और ऐसे में इनके पुण्यों का क्षय इतना अधिक हो जाता है कि नियति व ईश्वर भी इन किस्म के लोगों से किनारा करने लगते हैं। औरों के लिए खड्डे खोदने वाले लोगों के लिए एक समय आ ही जाता है जब उनके लिए भी खड्डा आकार लेने लगता है।

इस स्थिति में ऐसे लोगों को संरक्षण देने तथा इनकी वाहवाही करने वाले लोगों को भी विवश होकर इनसे किनारा कर ही लेना पड़ता है। इसके साथ ही वे लोग भी इनके लिए बन जाने वाले खड्डों के किनारे यह सोचकर जमा हो ही जाते हैं कि अंतिम भावांजलि देने के बाद इनसे हमेशा-हमेशा के लिए बरी होना ही है।

खड्डू लोगों के लिए जीवन का सर्वाधिक विषादग्रस्त समय यही होता है जब उनके लिए जगह-जगह कई ऐसे खड्डों का यकायक जन्म हो जाता है और ऐसे में इन खड्डूओं को भी पता नहीं रहता कि उनके भाग्य में कौनसा गड्ढ़ा निर्धारित है।

दूसरों के लिए खड्डे खोदने वाले इन अजीब किस्म के लोगों को जीवन के इस मोड़ पर आने के बाद यह ज्ञान अच्छी तरह हो जाता है कि उनके जीवन भर के कामों के नकद भुगतान का समय अब आ चुका है। पर इस प्रतिफल का वक्त आसन्न हो जाने पर ये कुछ नहीं कर पाते और अन्ततः खड्डों की स्मृति को साथ लेकर वहाँ पहुँच जाते हैं जहाँ से आये हुए होते हैं।

वहाँ भी विधाता ऐसे खड्डूओं की प्रतीक्षा मे बेसब्र होता है भूत-प्रेत या पशु-पक्षियों की योनि देने के लिए। इसीलिए कहा गया है कि अपनी कब्र को न्यौता देते हैं औरों के लिए खड्डे खोदने वाले। बहुत जरूरी हो चला है कि इन खड्डाखोरों को खड्डों के पास पहुँचाकर जमींदोज कर देना ताकि धरती की शुचिता और वैभव बरकरार रहे।


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