‘‘आर्य समाज एक अद्वितीय संस्था हैः आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ’’

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Published on : 14 May, 22 04:05

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

‘‘आर्य समाज एक अद्वितीय संस्था हैः आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ’’

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून के शरदुत्सव का आज तीसरा दिन था। प्रातः यज्ञशाला में चार यज्ञकुण्डों में आंशिक अथर्ववेद पारायण यज्ञ किया गया। यज्ञ में अथर्ववेद के मन्त्रों से घृत एवं हवन सामग्री की आहुतियां दी गईं। आहुतियां देते हुए सूक्त समाप्त होने पर दूसरे सूक्त का आरम्भ करने के बीच यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी सूक्त में आये मन्त्र के आधार पर मन्त्रों के अर्थों पर प्रकाश डालते हैं। ऐसे ही एक सूक्त की समाप्ति के बाद सम्बोधन करते हुए स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कर्म करने में सब जीव वा मनुष्य स्वतन्त्र हैं। हमें दुगुर्णों एवं शत्रुओं से अपनी रक्षा करनी चाहिये। परमात्मा हमारा परम रक्षक है। स्वामी जी ने कहा कि जो लोग परमात्मा का सहारा लेकर काम करते हैं वह लम्बा जीवन जीते हैं। उन्होंने कहा कि हम सबको अपनी सामर्थ्य के अनुसार निर्धनों व निराश्रितों में अन्न व धन आदि का वितरण करना चाहिये और उनके जीवन के दुःखों को कम करना चाहिये। स्वामी जी ने कहा कि अच्छा मनुष्य वह होता है जो अपना भी भला करता है और दूसरों का भी भला करता है। भगवान हर प्रकार से हमारा मंगल करते हैं। इसके बाद अथर्ववेद के अन्य कई सूक्तों से आहुतियां दी गईं। सभी यज्ञप्रेमियों को यज्ञ में आहुतियां प्रदान करने का अवसर भी दिया गया। यज्ञ में मन्त्रोच्चार गुरुकुल पौंधा देहरादून के दो युवा ब्रह्मचारियों ने किया। व्याख्यान वेदी का मंच आज अनेक शीर्ष विद्वानों व ऋषिभक्तों से शोभायमान हो रहा था। मंच पर आचार्य वागीष आर्य, एटा, स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, पं. उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ, स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती, साध्वी प्रज्ञा जी, पं. सूरतराम शर्मा जी, भजनोपदेशक पं. कुलदीप आर्य जी, भजनोपदेशक श्री रुवेल सिंह आर्य, श्री शैलेशमुति सत्यार्थी, आश्रम के यशस्वी प्रधान श्री विजय आर्य जी उपस्थित थे। वृहद यज्ञ का हाल भी यज्ञ प्रेमी स्त्री व पुरुषों सहित आश्रम द्वारा संचालित तपोवन विद्या निकेतन विद्यालय के बच्चों से भरा हुआ था। 

    समर्पण प्रार्थना कराते हुए स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के मुखारविन्द से निकले कुछ शब्दों को हमने नोट किया। उन्होंने कहा कि परमात्मा करुणानिधान एवं दयासिन्धु हैं। हमारा यह यज्ञ ईश्वर के अर्पण हैं। ईश्वर उदार हैं, वह कृपा करके हमें भी उदार बनायें। परमात्मा ने कृपा करके हम सब जीवों के लिए इस विशाल ब्रह्माण्ड की रचना की है तथा इसका पालन कर रहे हैं। हम परमात्मा का धन्यवाद करते हैं कि उन्होंने हमें ऋषियों के इस देश आर्यावर्त-भारत में जन्म दिया जहां हमें वेद एवं वैदिक विद्वान प्राप्त हैं और हमें दैनिक यज्ञों सहित वृहद यज्ञों को करने का सुअवसर भी प्राप्त होता रहता है। सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा ने हमें वेदों का ज्ञान दिया जिससे सबका कल्याण होता है। महाभारत के बाद हमसे वेद छूट गये। इससे संसार में कितने ही पाखण्ड फैले हैं। हमारा देश विशाल देश था जो समय समय पर खण्डित होता गया। स्वामी जी महाराज ने ऋषि दयानन्द जी के आविर्भाव की चर्चा की और कहा कि उन्होंने वेदों का पुनरुद्धार किया। स्वामी जी ने परमात्मा से प्रार्थना की कि वह ऋषि आत्माओं को हमारे देश में जन्म दें जिससे यहां वैदिक काल का सा दृश्य व वातावरण उपस्थित हो जाये। स्वामी जी ने कहा कि हम सब एक दूसरे के प्रति अच्छा व्यवहार करने वाले बने। स्वामी जी ने देश व समाज में प्रचलित पाखण्डों की चर्चा भी की और कहा कि परमात्मा संसार से सभी पाखण्डों को दूर कर दें। यज्ञ की समाप्ति के बाद भजनोपदेशक पं. कुलदीप आर्य जी ने सामूहिक यज्ञ प्रार्थना कराई। इसकी एक रिकार्डेड वीडियों हमने फेसबुक तथा व्हटशप के कुछ ग्रुपों तथा हमारे व्हटशप मित्रों से साझा की है। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती द्वारा मन्त्रोच्चार के साथ सभी यजमानों तथा यज्ञशाला में उपस्थित लोगों को जल छिड़क कर आशीर्वाद दिया गया। यह सभी को आनन्दित करने वाला अवर्णनीय दृश्य था। यज्ञ की समाप्ति के बाद प्रसिद्ध आर्य भजनोपदेशक पं. कुलदीप आर्य जी का भजन हुआ। उनके गाये भजन के बोल थे ‘आया शरण ठोकरें जग की खा के, हटूंगा प्रभु जी तेरी दया दृष्टि पाके।।’ भजन बहुत ही मधुर स्वर से गाया गया जिसे सुन कर श्रोता भावविभोर हो गये। 

    भजन के बाद आगरा से पधारे वैदिक विद्वान आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा कि यज्ञ को समझने से पहले देवताओं को समझना पड़ेगा। संसार में जड़ व चेतन दो प्रकार के देवता हैं। दिव्य गुणों से युक्त पदार्थ जो उन गुणों का मनुष्य आदि प्राणियों को दान करते हैं, देवता कहलाते हैं। विद्वान वक्ता श्री कुलश्रेष्ठ जी ने देवता तथा ईश्वर में अन्तर पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द ने सन्ध्या व यज्ञ की उपासना पूजा पद्धतियों को हमें वैदिक वांग्मय का सूक्ष्म अध्ययन कर बना कर दिया है। परमात्मा अनादि व नित्य सूक्ष्म प्रकृति से सृष्टि का निर्माण करते हैं तथा इसका पालन व यथासमय प्रलय भी करते हैं। सभी देवता मरणधर्मा हैं। ईश्वर अनादि व नित्य है। ईश्वर अज वा अजन्मा है। सभी मौलिक जड़ देवताओं की रचना परमात्मा ने की है। मनुष्य सूर्य, वायु, जल, अग्नि, आकाश एवं पृथिवी आदि देवताओं को नहीं बना सकता। देश में पूजा उन देवताओं की चल रही है जिन देवताओं को मनुष्य बनाता है। आचार्य जी ने कहा कि यदि हम ईश्वर के बनाये पदार्थों व देवताओं की वैदिक विधि से पूजा करेंगे तो सब मनुष्य सुखी होंगे। आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि वैदिक पूजा सार्वदेशिक है। जो मनुष्य वायु को गन्दा करते हैं उन सबका कर्तव्य हैं कि वह यज्ञ करके वायु को शुद्ध करें अन्यथा वह पाप के भागी बनते हैं। जल, वायु, अग्नि, वनस्पति, अन्न की सबको आवश्यकता है। यज्ञ की आवश्यकता भी सबको समान रूप से हैं।

    आचार्य कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि परमात्मा सृष्टि उत्पत्ति, पालन, प्रलय रूपी यज्ञ कर रहे हैं। सूर्य में होने वाला यज्ञ वर्षा, अन्न आदि की उत्पत्ति कर रहा है। आचार्य जी ने कहा कि यज्ञ सृष्टि के आरम्भ से चला आ रहा है। यज्ञ की अग्नि मनुष्य को सुख प्रदान करती है। यज्ञ यदि पूरे विश्व में प्रचलित हो जाये तो सब मनुष्यों का कल्याण ही कल्याण होगा। आचार्य उमेशचन्द्र जी ने प्रश्न किया कि क्या मनुष्य द्वारा बनाई गई मूर्ति देवता हो सकती है? हमारे हार्थों से बनायी गयी मूर्ति आदि वस्तुयें क्या हमारा कल्याण कर सकती हैं? उन्होंने इसका उत्तर दिया कि मनुष्यों के द्वारा निर्मित मूर्तियां चेतन देवता नहीं हो सकती और न ही इनसे हमारा कल्याण हो सकता हैं। कल्याण तो सच्चिदानन्दस्वरूप, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ तथा सर्वव्यापक परमात्मा के द्वारा ही होता है। आचार्य जी ने कहा कि हम यज्ञ में जो आहुति देते हैं उसे ईश्वरेतर सभी देवता ग्रहण करते हैं। अग्नि हमारी दी गई आहुतियों को सूक्ष्म करके इतर सब देवताओं को पहुंचाते हैं। आचार्य कुलश्रेष्ठ जी ने आगे कहा कि मनुष्य को शरीर देने वाला परमात्मा है। संसार के सब पदार्थ परमात्मा के बनाये हुए हैं। संसार में हम मनुष्यों का अपना कुछ नहीं है। आचार्य जी ने बताया कि अग्नि में घृत आदि पदार्थों की आहुति देने पर वह जल कर सूक्ष्म हो जाती हैं और वह सूक्ष्म हुई आहुतियां हमारे शरीर के भीतर पहुंचकर शरीर को स्वस्थ व निरोग करती व रखती है। विद्व़ान आचार्य जी ने कहा कि महाभारत के बाद उत्पन्न विकृतियों से समाज आज उलझा हुआ है। आज विकृतियों को ही धर्म माना जा रहा है। 

    आर्यसमाज के विख्यात आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने आगे कहा कि आर्यसमाज विश्व की एक अद्वितीय संस्था है। हमारे द्वारा पूर्व किये हुए सात्विक पुण्य कर्म उदय हुए हैं जिससे हम वैदिक साधन आश्रम तपोवन तथा आर्यसमाज से जुड़े हैं। वैदिक साधन आश्रम के प्रधान श्री विजय आर्य जी ने आश्रम में पधारे और भजन व प्रवचनों से अपनी सेवायें दे रहे सभी विद्वानों की प्रशंसा की और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने श्री कुलश्रेष्ठ जी की सरलता एवं विद्वता की भी प्रशंसा की। आर्यसमाज के प्रसिद्ध विद्वान श्री वागीश आर्य जी के मुम्बई से आश्रम पधारने पर भी प्रधान जी ने हर्ष व्यक्त किया और उनका धन्यवाद किया। प्रधान जी ने सभी श्रोताओं को भी धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि हरिद्वार में गंगा नदी और आश्रम में ज्ञान गंगा बह रही है। उन्होंने कहा कि आप लोग ज्ञान-गंगा में जितनी डुबकियां लगाना चाहें लगायें और ज्ञानगंगा का आनन्द लें। प्रधान जी ने पुनः आश्रम में पधारे हुए सभी विद्वानों एवं श्रोताओं का हृदय से धन्यवाद किया। इसके बाद आश्रम में महिला सम्मेलन का आयोजन हुआ और अपरान्ह 3.30 बजे यज्ञ, भजन एवं व्याख्यान का कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम आगामी रविवार 15 मई, 2022 को यज्ञ की पूर्णाहुति सहित अनेक आयोजनों के साथ सम्पन्न होगा। कार्यक्रम का संचालन हरिद्वार से पधारे वैदिक विद्वान श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने बहुत ही उत्तमता से किया। ओ३म् शम्। 
-मनमोहन कुमार आर्य
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