तड़पता मन
खाने को रोटी नहीं
पीने को पानी नहीं
तड़प उठा है उस बालक का मन
जो भीख मांगने को है मजबूर
दुनियादारी के इस खेल में
ना कोई उसके संग
तन का कपड़ा चिथड़ा चिथड़ा हो गया है
तड़प उठा है उस बालक का मन
चौराहे पर चलती गाड़ी को रोककर
भीख मांगने को है वह मजबूर
तड़प उठा है उस बालक का मन
ग्रीष्म की तपिश में नंगे पैर
भीख मांगने को मजबूर
तड़प उठा है उस बालक का मन
सर्द हवाओं में कपकपी झेलता
पेट की भूख को शांत करने के लिए
भीख मांगने को मजबूर
तड़प उठा है उस बालक का मन
मैं पूछती हूं
आखिर कब तक
प्रशासन मौन रहेगा?
देश की व्यवस्था में कब होगा सुधार?
जहां कोई भी बालक रोटी के लिए
भीख मांगने को ना होगा मजबूर
तड़प उठा है उस बालक का मन