सुहागिनों ने मंदिरों में किये दर्शन, रात में चंद्र देवता को दिया अ‌र्घ्य

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Published on : 25 Oct, 21 05:10

के डी अब्बासी

सुहागिनों ने मंदिरों में किये दर्शन, रात में चंद्र देवता को दिया अ‌र्घ्य

सनातन हिंदू महिलाओं का सुहाग पर करवा चौथ को पारंपरिक तरीके से मनाया गया। सुहागिन महिलाओं ने करवा चौथ का व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना की। इस दौरान महिलाओं ने जहां दिन में मंदिरों में चौथ माता और अन्य देवी देवताओं के दर्शन किए, वही रात में चंद्र देवता को अ‌र्घ्य देने के बाद अपना व्रत पूरा किया। महिलाओं ने पहले अपने पति के हाथ से पानी ग्रहण किया। उसके बाद अपना व्रत खोला।

 

करवा चौथ को लेकर कोटा के सभी मंदिरों में दिन भर सुहागिन महिलाओं के आने और भगवान के दर्शन करने का सिलसिला चलता रहा। कोटडी नहर के पास स्थित नाग नागिन मंदिर में सुहागिन महिलाओं ने अपने पति के साथ आकर चौथ माता के दर्शन किए और चौथ माता की पूजा अर्चना कर अपने पति की लंबी कामना की प्रार्थना की। मंदिर में बड़ी संख्या में युवा जोड़ों ने भी चौथ माता के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लिया। मंदिरों में दर्शन के साथ ही सुहागिन महिलाओं ने दिन भर बिना जल और बिना भोजन के रह कर अपने सुहाग की दीर्घायु के लिए करवा चौथ व्रत की पालना की और रात्रि में करवा चौथ माता की पूजा अर्चना और चंद्र देवताओं को अ‌र्घ्य देने के बाद अपने व्रत को पूरा किया सुहागिन महिलाओं ने पहले अपने पति के हाथ से पानी पिया और उसके बाद अपने व्रत को खोला। कई सुहागिन महिलाओं ने करवा चौथ का उद्यापन भी किया।

 

  करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाने वाला पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह पर्व सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है।

 

ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवा चौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन करना चाहिए। पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव ज्यादातर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।

 

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी (करवा-चौथ) व्रत करने का विधान है। इस व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। स्त्री किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की हो, सबको इस व्रत को करने का अधिकार है। जो सौभाग्यवती (सुहागिन) स्त्रियाँ अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करती हैं वे यह व्रत रखती हैं।

 

यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक लगातार हर वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।


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