“यज्ञ करने वाले मनुष्य के जीवन में धन-सम्पत्ति का अभाव नहीं होता: स्वामी मुक्तानन्द जी”

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Published on : 25 Oct, 21 04:10

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“यज्ञ करने वाले मनुष्य के जीवन में धन-सम्पत्ति  का अभाव नहीं होता: स्वामी मुक्तानन्द जी”

वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून का दिनांक 20 अक्टूबर, 2021 से चल रहा पांच दिवसीय शरदुत्सव आज दिनांक 24-10-2021 को सोल्लास सम्पन्न हो गया। आज प्रातःकाल उत्सव में पधारे लोगों ने प्रातः योगासन एवं ध्यान की क्रियायें सीखी। इसके बाद प्रातः 7.00 बजे से अथर्ववेद के मन्त्रों से विगत चार दिनों से जारी वृहद वेद पारायण यज्ञ हुआ जिसकी आज पूर्णाहुति सम्पन्न की गई। कार्यक्रम में स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती, स्वामी मुक्तानन्द जी, साध्वी प्रज्ञा जी, पं. सूरतराम जी सहित प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री दिनेश पथिक जी अमृतसर, श्री रमेश चन्द्र स्नेही एवं कार्यक्रम के संचालक श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी उपस्थित थे। यज्ञ की एक विशेषता यह थी कि पूर्णाहुति से पूर्व कुछ सूक्तों की समाप्ति पर मुख्य यजमानों के अतिरिक्त यज्ञकर्ताओं के साथ आयोजन में उपस्थित अन्य सभी लोगों को भी यज्ञ में आहुतियां देने का सुअवसर प्रदान किया गया। यज्ञ की पूर्णाहुति के पश्चात यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी मुक्तानन्द सरस्वती जी ने यज्ञशाला में उपस्थित यज्ञ में सम्मिलित सभी ऋषिभक्तों पर जल की छींटे देकर आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद देते समय गुरुकुल के ब्रह्मचारी मन्त्रोच्चार कर रहे थे। यह दृश्य अत्यन्त दुर्लभ एवं मनोहर था। इस क्रिया व घटना को देखकर अत्यन्त आनन्द की अनुभूति हुई और ऐसा लगा कि इस स्थान पर उपस्थित सभी व्यक्ति भाग्यशाली हैं तभी उन्हें इस श्रेष्ठतम कर्म में उपस्थित होने का परमात्मा की कृपा से अवसर मिला है। यज्ञकर्ताओं को आशीर्वाद के बाद पं. दिनेश पथिक जी ने यज्ञ प्रार्थना कराई और उसके बाद पंडित सत्यपाल पथिक द्वारा रचित एक प्रसिद्ध भजन सुनाया। भजन था ‘हे ज्ञानरूप भगवन् हमको भी ज्ञान दे दो। करूणा के चार छींटे करूणानिधान दे दो।।’ पथिक जी ने बताया कि उनका गाया यह भजन यूट्यूब पर 4 करोड़ लोग देख व सुन चुके हैं। भजन के बाद अपनी टिप्पणी में कार्यक्रम के संचालक श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने बुद्धि की महत्ता बताते हुए कहा कि यदि मुनष्य के पास बुद्धि है तो वह बुद्धि से सब अप्राप्य साधनों को प्राप्त कर सकता है। यदि बुद्धि नहीं है तो वह उपलब्ध साधनों का भी सदुपयोग नहीं कर सकता। इसके बाद यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी मुक्तानन्द सरस्वती जी का उपदेश हुआ। 

    स्वामी मुक्तानन्द सरस्वती, रोजड़ ने कहा कि हम जो यज्ञ करते हैं वह एक उपलक्षण है। इस यज्ञ के द्वारा हमें किसी दूसरे यज्ञ तक पहुंचना है। स्वामी जी ने देवयाजी व आत्मयाजी यज्ञों की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि हर मुनष्य चाहता है कि उसे सुख प्राप्त हों और उसके सभी दुःख दूर हों जायें। स्वामी जी ने कहा कि हम कोई भी कार्य करते हैं तो उसके लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। गलत कामों का कारण व्यक्ति का अज्ञान होता है। जैसा ज्ञान होता है वैसे ही मनुष्य के कर्म, उसकी भक्ति व प्रार्थना होती है। स्वामी जी ने कहा कि बाह्य यज्ञ की भांति हमारे भीतर भी एक आध्यात्मिक यज्ञ चलना चाहिये। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में संन्यासी को यज्ञ करने की इसलिए छूट है क्योंकि उसका जीवन ही यज्ञमय होता है। स्वामी मुक्तानन्द जी ने कहा कि हमें जीवन को यज्ञ व परोपकारमय बनाने के लिए शास्त्रों की आज्ञानुसार दैनिक यज्ञ करना चाहिये। 

    स्वामी मुक्तानन्द जी ने मनुष्यों द्वारा किए जाने वाले पाप व पुण्य कर्मों की चर्चा भी की। उन्होंने कहा कि पापकर्म सदैव व सर्वथा बुरे होते हैं। पुण्य कर्म सकाम तथा निष्काम दोनों श्रेणी के होते हैं।  स्वामी जी ने सकाम तथा निष्काम कर्मों के अनेक उदाहरण भी दिए। स्वामी जी ने कहा कि जो मनुष्य ईश्वर की आज्ञा का पालन करने सहित यज्ञ कर्म को भी करता है, उसके जीवन में किसी वस्तु वा पदार्थ का अभाव नहीं होता। आर्यसमाज के प्रसिद्ध संन्यासी स्वामी मुक्तानन्द जी ने आगे कहा कि जो काम हम अपने हित के लिए करते हैं वह सब सकाम कर्म होते हैं। हमारे जिन कर्मों से दूसरों का हित होता है वह निष्काम कर्म होते हैे। जो मनुष्य सत्य बोलता है उसका सर्वत्र यश फैलता है। सत्य व यश से युक्त जीवन वाले व्यक्ति को सम्पत्ति की प्राप्ति होती है। स्वामी जी ने यजमानों को बोले जाने वाले आशीवर्चनों को बोलकर उनकी हिन्दी में व्याख्या करके अपने कथन की पुष्टि की। कार्यक्रम का संचालन कर रहे विद्वान श्री शैलेश मुनि सत्यार्थ जी ने श्रोताओं को स्वामी मुक्तानन्द जी के अन्तरंग जीवन की चर्चा करते हुए बताया कि स्वामी मुक्तानन्द जी अधिकांशतः साधना में लीन रहते हैं और जीवन में सभी वैदिक नियमों का पालन करते हैं।  

    आश्रम के  यशस्वी प्रधान श्री विजय कुमार आर्य जी, कीरतपुर-बिजनौर ने श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि उत्सव का कार्य बहुत ही सफलतापूर्वक सम्पन्न हो रहा है। उन्होंने उत्सव की सफलता के लिए स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी, स्वामी मुक्तानन्द जी, साध्वी प्रज्ञा जी सहित सभी विद्वानों का धन्यवाद किया। प्रधान जी ने ईश्वर से प्रार्थना की कि हमारा आर्यसमाज सभी क्षेत्रों में आगे बढ़े। देश देशान्तर में वेदों तथा वैदिक शिक्षाओं का प्रचार हो। श्री विजय कुमार आर्य जी ने उत्सव में दूर दूर से पधारे सभी आर्यजनों व ऋषिभक्तों का हृदय से आभार व्यक्त करने के साथ उनका धन्यवाद किया। प्रधान जी ने उत्सव में पधारे सभी विद्वानों के गुणों का उल्लेख कर उनका व्यक्तिगतरूप से एवं आश्रम की ओर से धन्यवाद किया। 

    यज्ञ का संचालन कर रहे ऋषिभक्त विद्वान आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने आर्य समाज के सिद्धान्तों के अनुसार जीवन जीने की सबको प्रेरणा की। आचार्य जी ने आर्यसमाज क कीर्तिशेष विद्वान महात्मा आर्यभिक्षु जी के अनेक प्रेरणादायक प्रसंगों को सुनाया। उन्होंने कहा कि हम सूर्य, चन्द्र भले ही न बन सकें, परन्तु हमें तारों की तरह टिमटिमाने का प्रयत्न तो करना ही चाहिये। इसी के साथ अथर्ववेद के मन्त्रों से किया गया वेदपारायण यज्ञ सम्पन्न व समाप्त हुआ। इसके बाद लोगों ने आर्यसमाज के विद्वानों से आशीर्वाद लिया। पश्चात सबने मिलकर प्रातराश लिया। अगला सत्र प्रातः दस बजे से आश्रम के भव्य एवं विशाल सभागार में हुआ। इसका वर्णन हम एक पृथक लेख द्वारा करेंगे। ओ३म् शम्। 
-मनमोहन कुमार आर्य
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देहरादून-248001
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