“वैदिक संस्कृति विश्व की प्रथम संस्कृति है तथा विश्व का कल्याण करने वाली हैः पं. सूरतराम शर्मा”

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Published on : 23 Oct, 21 11:10

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“वैदिक संस्कृति विश्व की प्रथम संस्कृति है तथा विश्व का कल्याण करने वाली हैः पं. सूरतराम शर्मा”

वैदिक साधन आश्रम तपोवन-देहरादून का दिनांक 20-10-2021 से पांच दिवसीय शरदुत्सव चल रहा है। उत्सव के आज चौथे दिन का प्रातःकालीन यज्ञ एवं सत्संग का आयोजन आश्रम की पर्वतीय इकाई तपोभूमि में किया गया। आश्रम की यह इकाई मुख्य आश्रम से तीन किमी. दूर पहाड़ियों पर स्थित है। इस स्थान पर बाहर व भीतर चारों ओर ऊंचे ऊंचे वृक्ष हैं। आसपास का स्थान निर्जन है। इस स्थान पर पैदल अथवा अपने वाहनों से ही जा सकते हैं। सार्वजनिक वाहन इस मार्ग पर उपलब्ध नहीं होता। प्रातः 7.00 बजे से यज्ञ आरम्भ होकर लगभग 8.00 बजे यज्ञ प्रार्थना एवं यजमानों को आशीर्वाद के साथ सम्पन्न हुआ। यज्ञ की समाप्ति के बाद आश्रम के सचिव श्री प्रेम प्रकाश शर्मा ने श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए इस स्थान के इतिहास एवं इसकी महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस स्थान के विकास व सुविधाओं के निर्माण में स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी का बहुत बड़ा योगदान है। वह यहां रहकर वर्षों तक मौन साधनाओं सहित चतुर्वेद पारायण यज्ञ एवं योग ध्यान शिविरों का आयोजन करते रहे हैं। होली से पूर्व फरवरी व मार्च महीनों के मध्य वर्तमान में भी प्रत्येक वर्ष चतुर्वेद पारायण यज्ञ एवं ध्यान योग शिविर आयोजित किया जाता है। शर्मा जी ने सभी श्रोताओं को समय समय पर अपने इष्ट मित्रों सहित इस स्थान व यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में पधारने की प्रेरणा की। शर्मा जी ने इस स्थान के सौन्दर्यीकरण एवं इसे और अधिक उपयोगी बनाने की योजनाओं  पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बाउण्ड्री वाल के अन्दर चारों ओर दिवार से मिली हुई लगभग 6 फीट चैड़ी पगडण्डी बनाने सहित बीच बीच में बैठने के लिए सुविधानक स्थान बनाने की भी योजना है। इसके लिए उन्होंने आर्थिक सहयोग की अपील की। श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने आश्रम में परिवार सहित चण्डीगढ़ से पधारे श्री सुशील भाटिया जी की सेवाओं का परिचय भी दिया। उन्होंने बताया कि आप 8 भाई बहिन हैं। सभी ने अपने देहदान देने की घोषणा की हुई है और इसके लिए आवश्यक लिखित अण्डरटेकिंग दी हुई है। आज के कार्यक्रम में श्री सुशील भाटिया जी की 92 वर्षीय बहिन की चार पीढ़िया, बहिन जी की पुत्री, पौत्री तथा प्रपौत्री एवं अन्य सदस्य भी विद्यमान थे। स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने परिवार के सभी सदस्यों के गले में ओ३म् के पटके पहनाये। श्री शर्मा जी ने कहा कि हमें ऐसे लोगों में वैदिक धर्म का प्रचार करना है जो वैदिक धर्म और आर्यसमाज से अपरिचित हैं। उन्होंने कहा कि लोग हमारे विचारों व सिद्धान्तों से कम अपितु हमारे चरित्र एवं आचरण से अधिक प्रेरणा लेते हैं। अतः हमारा जीवन और चरित्र आदर्श होना चाहिये। शर्मा जी ने कहा कि यज्ञ श्रेष्ठतम् कर्म है। उन्होंने श्रोताओं को कहा कि यदि आप दैनिक यज्ञ करेंगे तो परमात्मा आपको यज्ञ एवं जीवन की आवश्यक सब चीजें सुलभ करायेंगे। 

    कार्यक्रम का संचालन आर्य विद्वान श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने उत्तमता से किया।  सत्यार्थी जी ने सभी श्रोताओं को आश्रम को दान देने की प्रेरणा की। उन्होंने दान देने से मिलने वाले सम्मान एवं अन्य लाभों को उदाहरणों सहित लोगों को हृदयंगम कराया। उन्होंने कहा कि पत्नी उसे कहते हैं जो अपने पति को पतित होने से रोके। सत्यार्थी जी ने श्री सुशील भाटिया जी के टंकारा ऋषि जन्म भूमि, तपोवन, रोहतक के आश्रमों तथा चंडीगढ़ की आर्यसमाज में सेवाकार्यों का उल्लेख करते हुए भाटिया जी की प्रशंसा की। उन्होंने भाटिया जी के जीवन से प्रेरणा ग्रहण करने को कहा। सत्यार्थी जी ने श्रोताओं को आश्रम के उत्सव एवं गतिविधियों के विषय में अनेक जानकारियां भी दीं। इसके बाद श्री रमेश चन्द्र स्नेही का ईश्वरभक्ति विषयक एक प्रभावशाली भजन हुआ। भजन के बोल थे ‘सारी सृष्टि दुल्हन की तरह सजी है, क्या अनोखी कारीगरी है।। आग सूरज में जो जल रही है, क्या गजब है कि बुझती नहीं है। चांदनी में ठण्ड की ताजगी है, क्या प्रभु की अनोखी कारीगरी है।।’ पं. स्नेही जी के बाद कार्यक्रम में उपस्थित आर्यसमाज के प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री आर्यमुनि पूर्व नाम श्री रूवेल सिंह जी का एक भजन हुआ। भजन से पूर्व उन्होंने कहा कि परमात्मा से सबसे बड़ी मांग यह हो सकती है कि हम उससे उसी को मांग लें। ऐसा करने पर हमें सब चीजें अपने आप ही मिल जायेंगी। उनके द्वारा गाये गये भजन के शब्द थे ‘प्रभु पूछ मुझसे मैं क्या चाहता हूं? मैं तुझसे तुम्हें मांगना चाहता हूं। हर एक शय में तेरा चमत्कार देखा, बहुत बार जन्म लेकर बार-2 देखा।। रचाया हुआ तेरा संसार देखा, अब तुझको ही देखना चाहता हूं।। मैं तुझसे तुम्हें मांगना चाहता हूं।।’

    प्रातराश से पूर्व आश्रम के धर्माधिकारी एवं पुरोहित पं. सूरतराम शर्मा जी का सम्बोधन हुआ।  पं. सूरतराम जी को व्याख्यान के लिए आमंत्रित करते हुए श्री शैलेश मुनि जी ने कहा कि आर्यसमाज के पुरोहित आर्यसमाज की रीढ़ होते हैं। अपने व्याख्यान में श्री सूरत राम जी ने ऋग्वेद के एक मंत्र का उल्लेख कर उसकी व्याख्या की। शर्मा जी ने कहा कि मंत्र में इडा, सरस्वती तथा मही तीन देवियों का वर्णन है। ये तीनों देवियां सदा सुख देने वाली हैं। ये सबका कल्याण व मंगल करने वाली हैं। हमारे हृदय में सदा इन तीन देवियों का वास रहना चाहिये। हमारे मन में इनके प्रति सदा प्रीति बनी रहे। पं. सूरतराम जी ने कहा कि जहां इन देवियों के प्रति श्रद्धा नहीं होती वह देश अखण्ड नहीं रह सकता। विद्वान वक्ता ने कहा कि आज हमारे देश का भी अखण्ड एवं स्वतन्त्र रहना कठिन होता जा रहा है। पंडित जी ने कहा कि इडा मातृ संस्कृति है। सरस्वती भी हमारी संस्कृति है। मही देवी मातृ भाषा को कहते हैं। पंडित जी ने कहा कि इन देवियों के प्रति देशवासियों में प्रेम व श्रद्धा होनी चाहिये। ऐसा होने पर ही हम सुख व सौभाग्य को प्राप्त होंगे। इडा का उल्लेख कर पंडित जी ने वेदाविर्भाव की चर्चा की और इस पर विस्तार से प्रकाश डाला। पं. सूरत राम जी ने कहा कि सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा ने अमैथुनी सृष्टि में चार ऋषियों को उत्पन्न कर उन्हें वेदों का ज्ञान दिया था। उन्होंने कहा कि वैदिक संस्कृति विश्व की प्रथम संस्कृति है और विश्व का कल्याण करने वाली है। आचार्य सूरतराम जी ने मनु महाराज के शब्दों को प्रस्तुत कर कहा कि भारत विश्व का सबसे प्राचीन देश है जो विद्वानों को उत्पन्न करता था तथा विश्व के लोग यहां आकर चरित्र व ज्ञान की शिक्षा लेकर अपने आपको धन्य करते थे। पंडित जी ने कहा कि शिक्षा व आचार का प्रचार सबसे पहले इसी देश से विश्व में गया है। उन्होंने कहा कि वैदिक संस्कृति में मानव मूल्यों का समावेश है। 

    पंडित सूरत राम जी ने कहा कि हमारी संस्कृति हमें सिखाती है कि हमें प्रातःकाल उषा वेला में उठकर परमात्मा के उपकारों का स्मरण करते हुए उसके स्वरूप का ध्यान करना है। पंडित जी ने रामायण से राम, भरत आदि के चरित्र विषयक घटनाओं व आचरणों को प्रस्तुत किया। पंडित जी ने राम वन गमन पर हुए राम, लक्ष्मण, कौशल्या तथा भरत आदि के संवादों को भी प्रस्तुत किया। पंडित जी ने कहा कि हमें अपनी वैदिक संस्कृति से प्रेम होना चाहिये। सरस्वती वेदवाणी और परमात्मा का नाम भी है। हमें वेदवाणी का अध्ययन तथा आचरण करके वेदों का सम्मान करना चाहिये। ऐसा किए बिना हमारा कल्याण नहीं हो सकता। पंडित जी ने अंग्रेजों के उन कार्यों पर भी प्रकाश डाला जो उन्होंने वैदिक भारतीय धर्म एवं संस्कृति को विकृत व नष्ट करने के लिए किए थे। विद्वान वक्ता ने अंग्रेजों के अंग्रेजी क प्रसार तथा धर्म परिवर्तन आदि कार्यों पर भी प्रकाश डाला। पं. सूरत राम शर्मा जी ने देश के लोकप्रिय एवं यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व व कार्यों की भी प्रशंसा की। उन्होंने देश में हिन्दुओं की घट रही जनसंख्या और उसके दुष्परिणामों पर भी चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हम आर्यों व हिन्दुओं को सजग होने की आवश्यकता है। आचार्य सूरत राम जी ने आर्य एवं हिन्दू शब्दों की भी चर्चा की और आर्य शब्द के महत्व व गौरव को श्रोताओं को बताया। इसके बाद शान्ति पाठ कर प्रातः सत्र को विराम दिया गया। इसके बाद सभी यजमानों एवं श्रोताओं ने प्रातःराश लिया। इसके बाद भजन एवं उपदेशों का कार्यक्रम पुनः आरम्भ हुआ जो लगभग 1.00 बजे तक चला। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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