इतिहासविद महेश्वरी का निधन स्मृति शेष लेख

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Published on : 18 Oct, 21 06:10

महेश्वरी की इतिहास रूपी महक अमर रहेगी -लक्ष्मीनारायण खत्री

इतिहासविद महेश्वरी का निधन स्मृति शेष लेख

जो मनुष्य इस संसार में आया है उसे एक न एक दिन इस दुनिया को छोड़कर जाना ही है, यानी की मृत्यु तो होनी ही है लेकिन कुछ ही लोग अपने उच्च कर्मो एवं जनहित के योगदान के लिए याद किए जाते हैं। श्री हरि वल्लभ माहेश्वरी महान प्रतिभा थे इन्होंने जैसलमेर के ही नहीं देश के इतिहास एवं लोक संस्कृति तथा विरासत क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य किए जिसे सदैव याद किया जाएगा दुख का विषय है की महेश्वरी का पिछले शनिवार को स्वर्गवास हो गया है 75 वर्ष की अवस्था में।

प्रतिभा के धनी हरिवल्लभ माहेश्वरी का जन्म जैसलमेर में वर्ष 1947 में सेठ गोविंद लाल बीसानी के यहां हुआ। बाद में बीसानी परिवार काम धंधे के लिए ग्वालियर चला गया। ग्वालियर में रहते हुए महेश्वरी ने जैसलमेर के इतिहास, संस्कृति, कला, लोकगीत, इतिहास, पुरातत्व, शिलालेखो पर अपना शोध अध्ययन एवं लेखन जारी रखा। श्री माहेश्वरी ने अपनी रूचि के अनुरूप शिक्षा अर्जित की, एम.ए इतिहास, एल.एल.बी, पी.एच.डी जैसलमेर राज्य का मध्यकालीन इतिहास में करने के बाद डि.लीट तक उच्च शिक्षा प्राप्त की तथा वह अपने रुचि के विषय मैं समर्पित रहे। 

मेरी इतिहास कला एवं संस्कृति तथा विरासत में गहन रुचि रही है और श्री माहेश्वरी जी इस विषय के प्रकांड विद्वान शोधार्थी थे। वे मिलनसार, हंसमुख तथा दाता किस्म के विद्वान थे उन्हें दूसरों को सिखाने एवं विचार विमर्श में आनंद आता था। मैं वर्ष 1997 से उनके संपर्क में लगातार था। वह मेरी पुस्तक के लोकार्पण समारोह में आए थे। उसके बाद महेश्वरी जी से पत्र व्यवहार चलता रहा। मैंने उन के बहुत सारे पत्र संभाल कर के रखे हैं। इन पत्रों में श्री महेश्वरी जी का मरुभूमि के प्रति विशेष लगाव की झलक पढ़ने को मिलती है। 

हरिवल्लभ माहेश्वरी ने इतिहास एवं विरासत तथा सिक्कों के सरंक्षण क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया। वे जीवन भर शोध कार्य में व्यस्त मस्त रहें। जैसलमेर पर आपकी दो पुस्तकें चर्चित रही पहली "जैसलमेर राज्य का मध्यकालीन इतिहास" व दूसरी "जैसलमेर का इतिहास" यह पुस्तकें विश्वविद्यालय में छात्रों द्वारा अध्ययन की जाती है। आपने जैसलमेर के इतिहास एवं संस्कृति को शोध में पेश किया है जिसका विभिन्न विश्वविद्यालयों में स्वागत हुआ है। 

श्री महेश्वरी जी जीवन भर इतिहास एवं संस्कृति के क्षेत्र में सक्रिय रहे तथा उनका जीवन प्रेरणादाई है। यह उनकी प्रतिभा का परिचायक है कि उन्हें मध्यप्रदेश राज्य का भारतीय सांस्कृतिक नीधी (इंटेक) का संयोजक नियुक्त किया गया था। इंटेक में रहते हुए आपने अनेक परियोजनाओं का सफल संचालन किया। श्री महेश्वरी जी हेरिटेज फाउंडेशन के निर्देशक ग्वालियर फोटोग्राफी क्लब एवं पर्यटन टुडे अखबार के संस्थापक थे। माहेश्वरी ने बुलंद खंड एवं पश्चिमी राजस्थान के भित्ति चित्रों के संरक्षण एवं दस्तावेजीकरण का कार्य भी खूब लगन से पूर्ण किया था। आपने देश के जनजातीय एवं आदिवासी लोगों के लोक संस्कृति पर भी खूब अध्ययन एवं शोध कार्य किया तथा प्रकाशित भी हुआ। 

श्री माहेश्वरी जी को भारतीय सिक्कों पर विशेष अध्ययन का लगाव था।जैसलमेर के सिक्कों पर भी खूब शोध की तथा आप सिक्कों के ज्ञाता थे। मुझे जब भी सिक्को के बारे में जानकारी की जरूरत होती थी महेश्वरी जी मेरे सामने एक खुली पुस्तक के रूप में दिखते थे ।बड़ा गर्व होता है की महेश्वरी ने इतिहास, कला, संस्कृति, डाक टिकट, पर्यावरण जैन धर्म, स्थापत्य कला, लोकगीत संगीत, आदि विषयों पर एक सौ से अधिक शोध पत्रों का राज्य एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वाचन कर चुके हैं। आपको जैसल पुरस्कार द्वारा सम्मानित जैसलमेर के राजघराने द्वारा किया गया था। भारत सरकार द्वारा आपको कई दफा फिलोसोफी प्रदान की गई। श्री महेश्वरी जुनून के जुगनू थे वह धुन के धनी थे। जैसलमेर के इतिहास एवं संस्कृति से उन्हें जीवन भर लगाव रहा आपसे जब भी बात होती थी आपकी मुख से जैसलमेर की विरासत एवं सौंदर्य प्रकट होता था। वे नियमित जैसलमेर आते थे तथा दूरस्थ गांव में तथा प्राचीन बस्तियों में शोध कार्य के लिए शिलालेखों को पढ़ने के लिए जाते थे। मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे भी वे अपने साथ एक सहायक के रूप में ले जाते थे। महेश्वरी को जैसलमेर के प्राचीन शिलालेखों की भाषा पढ़ने में विशेषता हासिल थी जैसलमेर की इस महान प्रतिभा को नमन।
 


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