महात्मा गांधी की 150वीं जन्म जयंती पर विशेष :
महात्मा गांधी की बुनियादी शिक्षा भारत की राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का पहला ब्लू प्रिंट
- कौशल आधारित शिक्षा पर सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के बढ़ते कदम ।
- सुविवि के डिपार्टमेंट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी एवं डिजाइनिंग का स्कील डवलपमेंट पर फोकस
उदयपुर। आज विश्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की150वीं जन्म जयंती मना रहा है। उनका यह कथन सा विधा या विमुक्तये अर्थात शिक्षा ही हमें समस्त बंधनों से मुक्ति दिलाती है । गांधीजी ने बुनियादी शिक्षा पर बल देते हुए कहा कि शिक्षा ऐसी हो जो बच्चों को आधारभूत ज्ञान एंव कौशलता प्रदान करें, बच्चों को सामान्य जीवन के लिए तैयार करें । शिक्षा के आमूलचूल परिवर्तन के उद्देश्य को लेकर गांधीजी ने आधुनिक भारत के लिए शिक्षा की वर्धा योजना या अपनी बेसिक शिक्षा की योजना को प्रस्तुत की थी जिसे बोलचाल की भाषा में बुनियादी शिक्षा भी कहा जाता है। यदि इसे आधुनिक युग में भारत की राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का पहला ब्लू प्रिंट कहा जाए तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी।
इसी तर्ज पर मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.अमेरिका सिंह ने उच्च शिक्षा के साथ-साथ कौशल आधारित शिक्षा से आत्मनिर्भर नागरिक निर्माण को लेकर विश्वविद्यालय स्तर पर ब्लू प्रिंट न केवल तैयार किया हैं बल्कि उस पर अमल करना भी शुरू कर दिया है।
संस्थान में शिक्षित होकर तैयार किये उत्पाद से स्कूल-कॉलेज का निकले खर्च
महात्मा गांधी के शिक्षा को हस्त कौशल अथवा उद्योग पर केंद्रीत करने के पीछे कई कारण थे। इसमें पहला कि वें बच्चों को श्रम का महत्व बताना चाहते थे। दूसरा बच्चों को स्वावलंबी बनाकर उन्हें जीविकोपार्जन करने योग्य बनाना तथा तीसरा कारण शिक्षा को गांवों के जीवन से जोडऩा तथा चौथा ऐसी शिक्षा देना जो विद्यार्थी को आत्मनिर्भर बनाना। यहां तक कि उनकी सोच थी कि विद्यार्थियों द्वारा शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से तैयार किए गए उत्पाद की बिक्री से स्कूल-कॉलेज का खर्च निकाला । उदयपुर में विद्या भवन संस्थान में गांधीजी की बुनियादी शिक्षा पर आधारित विद्या भवन बुनियादी स्कूल आज भी संचालित है।
आत्मनिर्भर बन बेरोजगारी से हो मुक्त
महात्मा गांधी की शिक्षा के प्रति दूरदर्शिता इस बात को रेखाकिंत करती है कि शिक्षा ऐसी हो जो स्वरोजगार से जोडक़र अन्य को रोजगार देने की क्षमता रखे। गांधी जी के अनुसार शिक्षा ऐसी हो जो आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके, युवक-युवतियों को आत्मनिर्भर बनाकर बेरोजगारी से मुक्त करें।
हर घर का हिस्सा होता था चरखा
प्राचीन भारत में चरखा हर घर का हिस्सा होता था। मौर्य वंश और उसके बाद के शासन में भी खादी की परंपरा रही है। विदेशी पर्यटक मार्को पोलो ने 1228 में भारतीय कपड़ों की गुणवत्ता के बारे में लिखा था। वर्ष 1915 में महात्मा गांधी के भारत आने से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को धार मिली और जल्दी ही गांधीजी ने स्वयं को खादी के प्रबल समर्थक के तौर पर स्थापित किया।
फैशन-टैक्सटाइल डिजाइनिंग उद्यमिता के शिखर पर
फैशन डिजाइनिंग हो या टेक्सटाइल डिजानिंग आज ये विषय युवक-युवतियों में खास जगह बना चुके है। यह विषय न केवल उद्यमिता के शिखर पर जा पहुंचा है बल्कि स्वरोजगार से जोडऩे वाला विषय बन चुका है। यह हर्ष का विषय है कि सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय ग्रामीण,आदिवासी व शहरी मध्यम वर्गीय युवक-युवतियों के लिए उदयपुर संभाग का एक मात्र शिक्षण प्रदाता है जो मामूली फीस में कौशल आधारित शिक्षा प्रदान कर रहा है। यहां से फैशन मर्केंडाइजिंग और टेक्साइल डिजाइनिंग में डिप्लोमा कर कई युवक-युवतियों ने अपना व्यवसाय खोलकर न केवल अपनी आजिविका शुरू कर दी है बल्कि समाज के जरूरतमंद युवतियों और महिलाओं को रोजगार दिया है।
विद्यार्थियों ने लिखी आत्मनिर्भरता की कहानी
सरकार पर निर्भर न होकर स्वयं के कौशल से जो मार्ग उन्हें यहां मिला है यह उसी का परिणाम है कि गांधीजी की बुनियादी शिक्षा का स्वरूप आधुनिक शिक्षण स्तर पर देखा जाने लगा है। स्वयं के बुटिक शुरू कर आत्मनिर्भर की कहानी लिखने वाले युवक-युवतियां इस बात को स्वीकार करते हैं कि सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के फैशन टेक्नोलॉजी एंड डिजाइनिंग विभाग में जो व्यावसायिक शिक्षण और प्रशिक्षण प्राप्त किया है उसी की बदौलत वे एक नए मुकाम की ओर बढऩे में सफल रहे है।
वस्त्र उद्योग में भारत दूसरा बड़ा देश
भारतीय वस्त्र उद्योग चीन के बाद विश्व में दूसरा सबसे बड़ा विनिर्माता तथा निर्यातक है। यह उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भारतीय वस्त्र उद्योग में हरकरघा, हस्तशिल्प तथा लघु स्तरीय विद्युत करद्या इकाइयों का मुख्य योगदान है। ग्रामीण एवं उप शहरी क्षेत्रों में लाखों लोगों के लिए रोजगार को उपलब्ध कराने वाला वस्त्र उद्योग भारत के लिए वरदान है।
वस्त्र सांस्कृतिक धरोहर के वाहक
वस्त्रों का महत्व व्यक्ति के जन्म के साथ शुरू होकर मृत्यु पर्यन्त बना रहता है। वस्त्र सांस्कृतिक धरोहर के वाहक है, प्रत्येक त्यौहार और प्रत्येक उत्सव की रौनक को वस्त्र ही जीवंत करते है। वस्त्र परिधान उद्योग देश में रोजगार सृजन का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इस उद्योग से महिलाओं और ग्रामीण लोगों सहित प्रत्यक्ष रूप से 45 मिलियन से अधिक लोग तथा संबंधित क्षेत्रों में 6 करोड़ लोग रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। यह एक ऐसा क्षेत्र है जो पूर्णतया कौशल आधारित है। कौशल और प्रौद्योगिकी का
समन्वित उन्नयन शिक्षा के माध्यम से ही संभव है।
मेवाड़ की परंपरागत कला मन मोह लेती है
मेवाड़ क्षेत्र के जनजाति अंचल के लिए यह फैशन टेक्नोलॉजी एवं डिजाइनिंग विभाग पूर्ण निष्ठा के साथ कार्य कर रहा है और अब आधारभूत व उच्च श्रेणी की औद्योगिकी मशीनों के साथ शैक्षणिक कार्य और अच्छे से संपन्न हो पाएगा। विभाग की कंप्यूटर डिजाइनिंग लेब, ड्रेपिंग लेब, फैशन टेक्नोलॉजी लेब में विद्यार्थियों को नया ज्ञान नई तकनीक को सीखने व समझने का अवसर मिलेगा।
मेवाड़ क्षेत्र हस्तकला , कशीदाकारी के लिए बहुत प्रसिद्ध है। यहां की पगड़ी,लहरिया,गोटा-पत्ती का कार्य भी मन को आकर्षित करने वाला है। चर्मकला हो या डंके का कार्य मेवाड़ के कलाकार अपनी परंपरागत कलाओं से सभी का मन मोह लेते हैं। जहां इन पारंपरिक कलाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है ,वहीं इन कलाओं को तकनीक के साथ संवर्धित करने की जरूरत है। इन कलाओं के कारिगरों को औपचारिक शिक्षा देने की महत्ती आवश्यकता है।
नए फैशन के साथ नव सृजन करने का मौका
पारंपरिक कलाओं को, इनसे जुड़े कलाकारों को तथा इनके द्वारा तैयार उत्पादों को डिजीटल माध्यम से प्रमोट करने का कार्य विश्वविद्यालय स्तर पर अच्छे से किया जा सकता है। इससे नए छात्र-छात्राओं को जहां सीखने का अवसर मिलेगा वहीं हमारे आर्टिसंस को भी नए विचारों, नए फैशन के साथ नव सृजन करने का मौका मिलेगा। इसी के साथ ऐपेरल विनिर्माण उद्योग में तेजी लाने के लिए, महिलाओं के लिए अतिरिक्त रोजगार सृजन करने के लिए सभी स्टेकहोल्डर्स को सशक्त करना होगा। प्रमाणिकरण, लेबलिंग, ब्रांडिंग, औद्योगिक उत्पादन में अनुसंधान पर फोकस करते हुए विद्यार्थियों को रिच कल्चर की शिक्षा देनी होगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2021 के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सिलेबस को तैयार करना तथा ज्यादा से ज्यादा प्रायोगिक कक्षाओं पर फोकस करना विभाग की प्राथमिकता में शामिल है। विभिन्न हस्तकलाओं के ख्यातनाम आर्टिसंस को बुलाकर विद्यार्थियों से उनकों रू-ब-रू करवाकर शैक्षणिक गतिविधियों को ओर प्रभावी बनाया जा सकता है।
रोड मैप फ्रेम वर्क पर फोकस
विभाग एक रोड मैप-फ्रेम वर्क तैयार कर रहा है जिसमें वस्त्र उद्योगों को किस तरह की मेनपावर की जरूरत है, टेक्सटाइल इंडस्ट्री में एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए किस तरह की मार्केटिंग स्कील की आवश्यकता है । अपेरल इंडस्ट्री की क्वालिटी टेस्टिंग को कैसे बेहतर किया जा सकता है? आदि के बारे में कार्य योजना को तैयार किया जा रहा हैै। विश्वविद्यालय में डिपार्टमेंट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी एवं डिजाइनिंग न केवल आदिवासी अंचल के छात्र-छात्राओं को आत्मनिर्भर बनाने में अपनी महत्ती भूमिका का निर्वहन करेगा बल्कि कौशल आधारित स्कील को विद्यार्थियों में विकसित कर समाज को उन्नत दिशा कि ओर अग्रसित करेगा।
- डॉ. डॉली मोगरा ,
प्रभारी,अध्यक्ष, डिपार्टमेंट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी एवं डिजाइनिंग, सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय, मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय, उदयपुर