आचार्यप्रवर ने बताए संगठन की महानता के सूत्र

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Published on : 26 Jul, 21 05:07

आचार्यप्रवर ने बताए संगठन की महानता के सूत्र

भीलवाड़ा, तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अनुशास्ता परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में गुरु पूर्णिमा के पुनीत अवसर पर 262 वां तेरापंथ स्थापना दिवस मनाया गया। तेरापंथ धर्मसंघ जो अपनी मर्यादाओं और अनुशासन के प्रति निष्ठा के कारण आध्यात्मिक जगत में ही नहीं अपितु विश्व में एक विशिष्ट पहचान रखता है। इसकी शुरुआत 262 वर्ष पूर्व तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु के द्वारा हुई। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी का 62 वां दीक्षा दिवस भी मनाया गया।

गुरु अज्ञान तिमिर को हटाकर ज्ञान का आलोक फैलाते हैं। गुरु पुर्णिमा के पावन दिन आचार्य प्रवर ने श्रावक समाज को गुरु धारणा करवाई एवं छोटे-छोटे बच्चों को भी मंत्र दीक्षा प्रदान की।

मंगल प्रवचन में आचार्य श्री ने 'प्रभो! यह तेरापंथ महान' गीत का संगान करते हुए कहा- तेरापंथ धर्मसंघ एक आध्यात्मिक संगठन है। यह धर्मसंघ धर्म पर आधारित है जहां आत्म कल्याण की बात होती है। आचार्य भिक्षु ने आज के दिन चारित्र ग्रहण किया और वही तेरापंथ का स्थापना दिन बन गया। किसी भी संगठन के लिए कुछ मायने होते हैं जो उसे महान बनाते हैं। जैसे देश संविधान के माध्यम से चलता है उसी प्रकार यह तेरापंथ धर्मसंघ आचार्य भिक्षु द्वारा लिखित संविधान की पालना करता है। जिस संगठन के सदस्यों में संविधान की चेतना कूट-कूट कर भरी होती है उस संविधान का महत्ता होती है। तेरापंथ के संविधान की धारा है की सर्व साधु-साध्वियां एक आचार्य की आज्ञा में रहे। आज भी इतने वर्षों बाद संघ में आचार्य एक ही होते हैं और सभी एक आचार्य के नेतृत्व में साधना करते हैं। तेरापंथ में साधु-साध्वियों की चातुर्मास भी आचार्य की आज्ञा से होते हैं, शिष्य भी केवल आचार्य के होते हैं कोई अपना अलग से शिष्य नहीं बना सकता। जहां पर संविधान की निष्ठा से पालना होती है वह संगठन महान बन सकता हैं। इन मायनों में हम तेरापंथ को महान कह सकते हैं।

आचार्य श्री ने आगे कहा कि यह तेरापंथ हम सबका तेरापंथ है। एक-एक साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका से यह संघ बना है। सदस्य महान बनते हैं तो संगठन भी महान बन जाता है। हम देखें जो हमारे धर्मसंघ में श्रुत का भी विकास है। कितने ही साधु-साध्वियों ने आगमों का, तत्वज्ञान, शास्त्रों का गहन अध्ययन किया है। साथ ही सभी में आचार में भी एक दृष्टि से उन्नता है। बड़ों के प्रति भी विनयशीलता है। संविधान के प्रति समर्पण, श्रुत, आचार, बुद्धि, विनयशीलता और सेवा ये गुण संगठन की महानता के लक्षण होते है। आज तेरापंथ स्थापना दिन पर मैं आचार्य भिक्षु का श्रद्धा-स्मरण करता हूँ। संघ के सभी सदस्य साधना, आचार के पथ पर और आगे बढ़े। संघ की महानता और बढ़े। 

साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी के दीक्षा दिवस के संदर्भ में गुरुदेव ने कहा- साध्वीप्रमुखा जी ने तीन-तीन आचार्यों की सेवा की है। इस उम्र में भी सक्रियता है, इतना श्रम करते है। साधना के क्षेत्र में आप और आगे बढ़ते रहे है। 
आचार्यप्रवर ने आज के दिन दीक्षित मुनि रविन्द्र कुमार जी,  साध्वी साधनाश्री जी आदि अन्य दीक्षितों का भी उल्लेख किया।

मंगल उद्बोधन में असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने कहा कि आज हर कोई आश्चर्य करता है कि तेरापंथ 262 वर्षों में कहां से कहां पहुंच गया है। तेरापंथ जैन समुदाय में सबसे नवीन संप्रदाय है फिर भी कम समय में इसने बहुत विकास किया है। इसका कारण है एक आचार्य का नेतृत्व। सभी एक छत्र अनुशासन में रहते हैं यह तेरापंथ की विलक्षणता है। आचार्य भिक्षु भावितात्मा अणगार थे। अपनी पावन प्रज्ञा, चिंतनशीलता से उन्होंने ऐसा संविधान बनाया जिस पर आज तेरापंथ आगे बढ़ रहा है। वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण की अनुशासना में यह धर्मसंघ नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है।

इस अवसर पर मुख्यमुनि महावीर कुमार जी, मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा जी एवं साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी का प्रेरक वक्तव्य हुआ। मुनि प्रसन्न कुमार ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।

प्रस्तुति के क्रम में तेयुप मंत्री पीयूष रांका ने अपने विचार रखे। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने गीतिका पर प्रस्तुति दी। 

इस दौरान जैन विश्व भारती, लाडनूं द्वारा नवीन प्रकाशित कृति 'रोशन से रविन्द्र' का जैविभा के अमरचंद लुंकड़, रमेशचंद बोहरा, मेवाड़ कॉन्फ्रेंस से राजकुमार फत्तावत, भूपेंद्र चोरडिया, बलवंत रांका, का रूपलाल भोलावत ने गुरुदेव के चरणों में विमोचन किया। निशांत गंग ने भी अपनी पुस्तक 'एपिसोडिक पोएट्री' गुरुवर के चरणों में भेंट की।
संघ गान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
 


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