*विशेष प्रसन्नता की साधना आत्मसात हो- आचार्य महाश्रमण*

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Published on : 21 Jul, 21 07:07

 *पूज्य प्रवर ने दी सहनशील बनने की प्रेरणा*

 *विशेष प्रसन्नता की साधना आत्मसात हो- आचार्य महाश्रमण*

तेरापंथ नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान*तीर्थंकर के प्रतिनिधि, दिव्य दृष्टा आचार्य श्री महाश्रमण जी पांव पांव चलकर सुदूर देशों की यात्रा सम्पन्न कर वस्त्र नगरी भीलवाडा  में पधार गए है। तेरापंथ नगर, आदित्य विहार में आज शांतिदूत के पावन प्रवास का तृतीय दिवस है। श्रद्धा, भक्ति और आस्था के  भाव से जन-जन के हृदय आनन्दित, प्रफुल्लित है। गुरुवर के दर्शन से हर व्यक्ति असीम शांति का अनुभव कर रहा है। भीलवाड़ा का विशिष्ट सौभाग्य है कि आप जैसे आचार्य प्रवर का चातुर्मास मिला है। आचार्यश्री की  वर्चुअल धर्म देशना का लाइव प्रसारण पूरे विश्व का मार्ग प्रशस्त कर रहा है।

सकल आध्यात्मिक संपदाओं से संपन्न आचार्य प्रवर ने अपने मंगल उद्बोधन में फरमाया कि - प्रसन्नता दो तरह की होती है, एक जो बाहरी निमित्तों से खंडित हो जाए  वह सामान्य प्रसन्नता और जो बाहरी परिस्थिति से प्रभावित न हो वह विशेष प्रसन्नता होती है। सुख -दुख, लाभ -अलाभ निंदा-प्रशंसा, मान -अपमान हर परिस्थिति में विशेष प्रसन्नता के भाव रहे ऐसी समता की साधना को आत्मसात करना चाहिए। व्यक्ति में अनुकूल प्रतिकूल हर स्थिति में सहज संतोष की प्रवृति नित बनी रहे।

 

आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि पुरुषार्थ अपने हाथ में होता है, फल की प्राप्ति अपने हाथ में हो संभव नही। जो मिला वो भी ठीक, जो न मिला वो भी ठीक। साधु को समताधारी कहा गया है। कभी स्थान सही हो तो तो कभी प्रतिकूल भी मिल सकता है। गोचरी में भी कभी आहार पर्याप्त मिला तो संयमी शरीर का पोषण और न मिला तो आत्मा का संपोषण यह चिंतन हो तो फिर समता की साधना साध जाती है। इस चिंतन का आलंबन साथ रहे तो तपस्या में अभिवृद्धि के साथ कर्म निर्जरा का लाभ भी हो सकता है। इसलिए परिस्थिति और निमित्त कैसे भी हो उपाय और बचाव कर सकते है पर मन को उद्विग्न नहीं बनाना चाहिए। आलोचना और निंदा करने वालो को जवाब जबान से देने के बजाय अपने अच्छे कार्यों से देंगे  तो प्रतिकूल लोग भी अनुकूल बन सकते है। आलोचकों की अच्छी चीज ग्रहण कर बेकार की चीज को छोड़ देना चाहिए। अपने मन को प्रशिक्षित और चिंतन को प्रशस्त रखते हुए व्यक्ति विशेष प्रसन्नता की अनुभूति कर सकता है।

 

कार्यक्रम में   बहिर्विहार से समागत मुनि श्री आनंद कुमार, मुनि श्री निकुंज, मुनि श्री मार्दव मुनि, मुनि श्री दर्शन कुमार ने लंबे समय पश्चात आचार्य प्रवर के दर्शन करने पर अपनी भावनाएं व्यक्त की।

 

किशोर मंडल की ओर से ऋषि दुगड़ ने विचार व्यक्त किए।


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