“गोरक्षा आन्दोलन को सफल करने के लिए हमें अपनी शक्ति बढ़ानी होगी: डा. रघुवीर वेदालंकार”

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Published on : 17 Jul, 21 06:07

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

“गोरक्षा आन्दोलन को सफल करने के लिए हमें  अपनी शक्ति बढ़ानी होगी: डा. रघुवीर वेदालंकार”

ओ३म्
[निवेदनः आज हम लगभग चार वर्ष पूर्व दिनांक 2 जून, 2017 को देहरादून स्थित गुरुकूल पौंधा में वार्षिकोत्सव के अवसर पर आयोजित गोरक्षा सम्मेलन में इसके अध्यक्ष डा. रघुवीर वेदालंकार जी का सम्बोधन प्रेषित कर रहे हैं। सम्मेलन को आर्य वेद विदुषी डा. सूयादेवी चतुर्वेदा जी ने भी सम्बोधित किया था। उनका उपयोगी एवं सारगर्भित ज्ञानवर्धक सम्बोधन भी साथ में प्रस्तुत है। हम आशा करते है कि पाठक इस लेख की सामग्री को पसन्द करेंगे। निवेदकः मनमोहन आर्य]

    आर्ष गुरुकल पौंधा, देहरादून में 2 जून, 2017 को आयोजित गोरक्षा सम्मेलन के अध्यक्ष डा. रघुवीर वेदालंकार ने अपने व्याख्यान में कहा कि तीन बातें हैं जिनके होने से गोरक्षा आन्दोलन सफल हो सकता है। प्रथम यह की राज्य शक्ति गोरक्षा के पक्ष में हो और गोरक्षा विषयक कठोर कानून बनाये। दूसरी बात जनशक्ति व जनसमर्थन की है। उन्होंने कहा कि जनशक्ति के सामने राज्य शक्ति झुकती है। तीसरी बात यह है कि गोरक्षा को व्यवहारिक रूप में अपनाने की है। आचार्य रघुवीर जी ने कहा कि गोमांस का निर्यात बढ़ रहा है। इसमें कमी आनी चाहिये। विद्वान वक्ता ने कहा कि आर्यसमाजी गोरक्षा आन्दोलन करते हैं तो सनातनी भाई हमारा साथ देते हैं। आचार्य जी ने एक पूर्व न्यायाधीश के बयान की चर्चा की जिसने कहा था कि वह गोमांस खाता है और वह गोमांस खाने को अच्छा मानता हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में कैसे गोरक्षा हो सकती है? आचार्य जी ने कहा कि हमें जनशक्ति को जागृत करना व उसे बढ़ाना चाहिये। लेखन द्वारा व मौखिक प्रचार द्वारा गोरक्षा व गोहत्या बन्दी का प्रचार करना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि हम गोरक्षा सम्मेलन करते हैं। यह गोरक्षा आन्दोलन की इतिश्री नहीं है। उन्होंने कहा कि गोरक्षक व गोपालक गोभक्षकों को गोहत्या विषयक साहित्य को दिखायें। आचार्य जी ने अपना अनुभव सुनाते हुए कहा कि हमारे गांव के हिन्दू लोग कसाईयों को अपनी बूढ़ी गाय व बछड़े तथा अन्य पशु बेचा करते थे। उन्होंने कहा कि हमारे अन्दर यह मिथ्या धारणा आ गई है कि भैंस का दूध अधिक शक्ति देता है। डा. रघुवीर वेदालंकार जी ने गाय को राष्ट्रीय पशु के रूप में प्रस्तुत करने व उसे राष्ट्रीय पशु की मान्यता दिलाने की बात कही। 

    आचार्य डा. रघुवीर वेदालंकार ने कहा कि गाय से होने वाले आर्थिक लाभों की चर्चा करें व लोगों को उसका महत्व बतायें। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार के सामने वेद का वह महत्व नहीं है जो कि कुरान का है। आचार्य जी ने शाहबानों के केस की चर्चा की और कहा कि प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संविधान संशोधन कर न्यायालय का फैसला ही बदल दिया था। आचार्य जी ने सरकार द्वारा वेद की अप्रतिष्ठा के उदाहरण भी दिये। उन्होंने कहा कि देश में चारों ओर गोरक्षा की विरोधी शक्तियां खड़ी हैं। गोरक्षा आन्दोलन को सफल करने के लिए हमें अपनी शक्ति बढ़ानी होगी। आचार्य जी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री बी.डी. झा के लेख Beef Eating in the Vedas की चर्चा की। उन्होंने कहा कि वह उनके पास गये और उनसे प्रमाण मांगा। उन्होंने बताया कि वह सायण को प्रमाण मानते हैं। आचार्य जी ने कहा कि हमें वेद के लिए बहुत कुछ करना है। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज अपने घरों तक ही सीमित हो गया है। शास्त्रार्थ की परम्परा समाप्त हो गई है। उन्होंने कहा कि बिना शास्त्रार्थ के किसी से सत्य बात नहीं मनवाई जा सकती। आचार्य रघुवीर वेदालंकार जी ने दुःख के साथ कहा कि यह देश का दुर्भाग्य है कि देश मांसाहारी हो रहा है। उन्होंने गोमांसाहारियों को गोमांस खाना बन्द करने के लिए समझाने को कहा। उन्होंने कहा कि हम गाय का घी खायें, वह कभी नुकसान नहीं करता। आचार्य जी ने आर्यसमाज को गाय से होने वाले आर्थिक लाभों का प्रचार करने की भी सलाह दी। गाय से जुड़े सभी तथ्यों को हमें प्रचारित करना चाहिये। आचार्य जी ने गोरक्षा को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की सलाह दी। आचार्य जी ने गोमांस भक्षकों को शास्त्रार्थ की चुनौती देने की भी सलाह दी। उन्होंने कहा कि अकबर को गोहत्या बन्द करने संबंधी जन भावनाओं व जनशक्ति के सामने झुकना पड़ा था। हमें देश में गोहत्या के पक्ष में जनशक्ति को बनाना व बढ़ाना होगा। हमें जनशक्ति को बनाकर राज्य शक्ति को झुकाना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि प्रसिद्ध आयुर्वेद के ज्ञाता स्वामी ओमानन्द जी के अनुसार सौ वर्ष पुराने गोधृत को सूंघने से मृगी का रोग ठीक हो जाता है। आचार्य जी ने कहा कि देशी गाय ही असली गाय है। मिक्स गाय गाय नहीं है। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए उन्होंने श्रोताओं को गोरक्षा व गोपालन करने का आह्वान किया। 

    वेद विदुषी डा. सूर्यादेवी जी ने भी गोरक्षा सम्मेलन को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि हमें गोपालन की आवश्यकता पर विचार करना चाहिये। गो पृथिवी, पशु, सूर्य व इसकी रस्मियों को कहते हैं। जो चरती हैं वह गऊ हैं। जो गो को ढूढंने के लिए जाते हैं उनके लिए गवेषणा शब्द का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि वेद को भी गऊ कहते हैं। आचार्या जी ने गो से होने वाले लाभों से संबंधित एक वेदमंत्र का पाठ किया व उसका अर्थ बताया। उन्होंने कहा कि पहले सभी के घरों में गोशाला होती थी। अब लोगों ने घरों में गोशाला रखना छोड़ दिया है। वेद विदुषी डा. सूर्यादेवी चतुर्वेदा जी कहा कि यदि हम गोपालन नहीं करेंगे तो गोरक्षा नहीं होगी। यज्ञ अग्निहोत्र करने के लिए हमें गोघृत चाहिये। यदि हम चाहते हैं कि हमारा अग्निहोत्र कभी बन्द न हो तो हमें गोरक्षा करनी ही होगी। आचार्या जी ने स्वास्थ्य विषयक एक रहस्य की बात बताते हुए कहा कि गोमांस खाने वाली माता से उत्पन्न बच्चे के शरीर के अंग तिरछे हो जाते हैं। गोदुग्ध व इससे बने पदार्थों के सेवन से मनुष्य को अनेकानेक लाभ होते हैं और हानि कोई नहीं होती। आचार्या जी ने गोघृत पीने, उसे शरीर पर लगाने व घावों में भी लगाने से होने वाले लाभों को बताया। उन्होंने ‘गो मात्रा न विद्यते’ का उल्लेख कर कहा कि गो से होने वाले लाभों की गणना नहीं की जा सकती। आचार्या सूर्यादेवी जी ने कहा कि गो दुग्ध पीने से अन्न कम खाया जाता है। गोदुग्ध पीने से मनुष्य में मल भी कम बनता है व वह कम दुर्गन्धयुक्त होता है। गोदुग्ध पीने से मल कम बनने से प्रदुषण कम होता है तथा रोग नहीं होते। इसके साथ ही डा. सूर्यादेवी जी का व्याख्यान समाप्त हो गया। 

    गुरुकुल के पूर्व ब्रह्मचारी आचार्य डा. रवीन्द्र कुमार आर्य ने गोरक्षा सम्मेलन का कुशल संचालन किया। सायंकालीन सन्ध्या और शान्ति पाठ के साथ गोरक्षा सम्मेलन का सत्र समाप्त हुआ। 
-मनमोहन कुमार आर्य
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