सी. टी. ए. ई. में एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन

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Published on : 02 Jul, 21 07:07

"30% घर्षण कम करके कम किया जा सकता है 150 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन "

सी. टी. ए. ई. में एक दिवसीय राष्ट्रीय  वेबीनार का आयोजन

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के तकनीकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय में यांत्रिकी अभियांत्रिकी विभाग द्वारा एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार "ट्राइबोलॉजी एवं उसके आधुनिक अभियांत्रिकी में अनुप्रयोग" का आयोजन दिनांक 1 जुलाई 2021 को किया गया।
कार्यक्रम के आरंभ में आयोजन सचिव डॉक्टर चितरंजन अग्रवाल ने सभी गणमान्य अतिथियो एवं प्रतिभागियों का स्वागत किया एवं कार्यक्रम की रुपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि इस राष्ट्रीय वेबीनार में 400 से ज्यादा प्रतिभागियों ने भारत के विभिन्न राज्यों से आवेदन किया था।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि माननीय कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर, प्रोफेसर नरेंद्र सिंह राठौड़ ने ट्राईबोलॉजी एवं उसके उपयोग पर विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि ट्राइबोलोजी का कृषि, नवीनीकरण ऊर्जा एवं आधुनिक अभियंत्रिकी में बहुत महत्व है। प्रोफेसर राठौड़ ने बताया कि एक अनुसंधान द्वारा यह पाया गया कि घर्षण तथा वियर के कारण होने वाला ऊर्जा हास देश के सकल घरेलू उत्पाद का 1.2 से 1.3 प्रतिशत होता है, जिसे कम करने की जरूरत आज सभी क्षेत्रों में है। प्रोफेसर राठौड़ ने 3 इ "एनर्जी, इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट" में परस्पर संबंध स्थापित करते हुए एक दूसरे की पूरकता पर चर्चा की तथा वातावरण अनुकूल लुब्रिकेंट का प्रयोग करने पर जोर दिया।
राष्ट्रीय वेबीनार के मुख्य वक्ता डुकॉम कंपनी, बेंगलुरु के डॉक्टर देबदत्त पात्रों ने अभियांत्रिकी में ट्राइबोलोजी के महत्व को विस्तार से समझाया तथा ट्राइबोलोजी का उर्जा एवं तत्व संरक्षण पर संबंध स्थापित किया। उन्होंने बताया कि कैसे लुब्रिकेंट के प्रयोग से घर्षण तथा वियर को कम करके ऊर्जा तथा तत्व का संरक्षण किया जा सकता है। डॉक्टर देवदत्त ने कम श्यानता वाले लुब्रिकेशन का प्रयोग करके वियर तथा घर्षण को कम करने पर विस्तृत चर्चा की। उनके अनुसार अकेले ऑटोमोबाइल ट्रांसपोर्टेशन, माइनिंग व पावर प्लांट में 30% घर्षण को कम करके लगभग 150 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। उत्पादन में प्रयोग होने वाले कच्चा माल तथा धातुओं की सीमित उपलब्धता व उनके लुप्त होने की दशा पर गंभीरता दर्शाते हुए बताया कि कैसे लिथियम और कोबाल्ट कुछ समय बाद समाप्त हो सकते हैं। अतः समुचित उपयोग के तरीके जैसे वेस्ट को कम करके, धातुओं को रीसायकल करके,  पुनरुपयोग करके और वियर को कम करके कैसे मटेरियल को संरक्षित कर सकते हैं।
महाविद्यालय के अधिष्ठाता  प्रोफ़ेसर पी. के. सिंह ने सभी माननीय सदस्यों का स्वागत करते हुए। ट्राईबोलोजी के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी एवं घर्षण तथा वियर पर लुब्रिकेशन के प्रभावों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि बायो सेंसर, माइक्रो मशीनिंग, नैनो सेंसर तथा अन्य सभी गतिशील वस्तुओं में घर्षण और वियर को कम करके किसी भी मशीन के कार्यकाल को 50 वर्ष तक बढ़ा सकते हैं।
विभागाध्यक्ष प्रोफेसर एम. ए. सलोदा ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया तथा ट्राइबोलोजी की यांत्रिकी अभियांत्रिकी में उपयोगिता के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। अंत में प्रोफेसर बीएल सालवी ने  माननीय कुलपति महोदय, अधिष्ठाता महोदय, विभागाध्यक्ष, संचालक महोदय, तकनीकी सहायकों एवं समस्त विभाग के सदस्यों तथा प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया और भविष्य में होने वाली वेबगोष्ठी के लिए सादर आमंत्रित किया। वेबीनार का संचालन आयोजन सचिव डॉक्टर चितरंजन अग्रवाल ने किया।
 


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