कृषि में मूल्य संवर्धन हेतु इन्क्यूबेशन केन्द्र एक जरूरी आवश्यकता- डाॅ. राठौड़

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Published on : 19 Jun, 21 14:06

कृषि में मूल्य संवर्धन हेतु इन्क्यूबेशन केन्द्र एक जरूरी आवश्यकता- डाॅ. राठौड़

 उदयपुर - प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा दिनांक 19 जून 2021 को कृषक महिलाओं हेतु एक आॅनलाईन व्याख्यान एवं परिचर्चा कार्यक्रम कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के मुख्य आतिथ्य में आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम द्वारा किसानों, किसान महिलाओं एवं गामीण नवयुवकों को कृषि में मूल्य संवर्धन एवं तकनीकी इन्क्यूबेशन केन्द्र की उपयोगिता पर विश्वविद्यालय के विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा नवीनतम जानकारियां प्रदान की गई। आज प्रमुख रूप से किसान महिलाओं एवं किसान भाईयों हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर चलाए जा रहे वाटिका कार्यक्रम पर व्याख्यान एवं परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम का मुख्य उद्वेश्य किसानों, किसान महिलाओं को इस कार्यक्रम के बारे में जानकारी प्रदान करना था। यह कार्यक्रम कृषि में मूल्य संवर्धन एवं तकनीकी इन्क्यूबेशन केन्द्रों से किसानों को जोड़ने के लिए आयोजित किया गया।

 


कार्यक्रम के आरम्भ में निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर, डाॅ. सम्पत लाल मून्दड़ा ने मुख्य अतिथि डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, कुलपति, मप्रकृप्रौविवि, उदयपुर, विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारी परिषद् के सभी निदेशकों एवं अधिष्ठाताओं एवं कार्यक्रम से जुड़ने वाले सभी कृषक एवं कृषक महिलाओं का स्वागत किया। साथ ही उन्होनें अपने उद्बोधन में कहा कि किसानों को आज के आर्थिक युग में खेती को व्यवसाय के नजरिये से देखने की जरूरत है। इसके लिए किसानों को अपनी सोच, नजरिया एंव मानसिकता को समय के अनुरूप बदलने की सख्त आवश्यकता है। उन्होनें कहा कि किसान अपने खेतों से उत्पादित खाद्यान्नों, दलहनों, तिलहनों, मसालों, फल, फूल, सब्जियों, दूध, मछली, मांस, मशरूम, शहद आदि उत्पादों का प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन द्वारा अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। उन्होनें कहा कि आज प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन उद्योगों की मांग तेजी से बढ़ रही है क्योंकि आज हर व्यक्ति की आय में अच्छी खासी वृद्धि हुई है।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाॅ. नरेन्द्र सिंह राठौड़, कुलपति, मप्रकृप्रौविवि, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने वाटिका कार्यक्रम की शुरूआत की है ताकि किसानों एवं किसान महिलाओं को खाद्य प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन के क्षेत्र में प्रायोगिक एवं सैद्धांतिक जानकारी प्रदान की जा सके जिससे वे अपने उत्पादों का सही प्रसंस्करण कर अच्छा मुनाफा कमा सके। उन्होनें बताया कि वाटिका कार्यक्रम का सबसे प्रथम उद्वेश्य किसानों के हितांे की रक्षा करना है और उन्हें कृषि में व्यवसायिकीकरण हेतु प्रेरित करना है। अब समय आ गया है कि किसानों को अपने उत्पाद का प्रसंस्करण कर मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देना चाहिए। डाॅ. राठौड़ ने बताया कि आज फल, सब्जियों, दूध, अनाज, अण्डे, मांस आदि में प्रसंस्करण की अपार संभावनाएं है। कम उपयोग में आने वाले फल जैसे कैर, सांगरी, कटहल, जामुन आदि में मूल्य संवर्धन की भी बहुत गुंजाईश है। कोविड काल में जब हर व्यक्ति बहुत सजग हो गया है, होम गार्डनिंग एवं किचन गार्डनिंग अच्छे विकल्प है।

कुलपति  यह भी कहा देश के कुल जी.डी.पी. में कृषि का योगदान करीब 19.6 प्रतिशत है जबकि कुल निर्यात में कृषि का योगदान केवल 12 प्रतिशत है। उन्होनें कहा कि आज हम केवल 3 प्रतिशत की दर से ही मूल्य संवर्धन कर पा रहे है। जबकि विदेशों में यह दस 10 प्रतिशत से भी अधिक है। किसानों को उद्यमिता की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित करना होगा, ताकि उनकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि हो सके। उन्होनें बताया कि आज भारत अकेला ही विश्व का 31 प्रतिशत काजू, 52 प्रतिशत आम और 27 प्रतिशत केला पैदा कर रहा है। इसके अलावा अनार, चीकू, आंवला, टमाटर, मटर, गोभी आदि का भी अच्छा उत्पादन कर रहा है। इन फसलों के प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन पर बल देना चाहिए। डाॅ. राठौड़ ने किसानों को आह्वान करते हुए कहा कि किसानों को अब परम्परागत मार्केटिंग से हट कर नये बाजारों का चयन करना चाहिए।

उन्होनें इस अवसर पर बताया कि कृषक उत्पादक संगठन ऐसे संगठन है जो अनेकों गतिविधियों का संचालन करते है जिसमें सस्ती दर पर सफाई, छटाई, ग्रेडिंग, पैकिंग और

कृषि प्रसंस्करण के अलावा मूल्य सवर्धन, भंडारण और परिवहन सुविधाएँ आदि उपलब्ध कराना शामिल है। इसके अलावा बीज उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मशरूम की खेती जैसी उच्च आय पैदा करने वाली गतिविधियाँ संचालित करना एवं किसान सदस्यों की छोटी उपज का एकत्रीकरण और अधिक बिक्री योग्य बनाने के लिए मूल्य संवर्धन करना भी इसके प्रमुख कार्य है। ऐसे दस हजार कृषक उत्पादक संगठन गठित किए जाने है।

आज की वार्ता की तकनीकी विशेषज्ञ श्रीमती ममता तिवारी, निदेशक, मानव संसाधन विकास, कृषि विश्वविद्यालय, कोटा ने इस आॅनलाईन व्याख्यान के दौरान कृषि में मूल्य संवर्धन एवं तकनीकी इन्क्यूबेशन केन्द्र के महत्व, संरचना एवं उद्देश्यों पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। उन्होनें अपने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र, खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के द्वारा संचालित “संपदा योजना” तथा कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा संचालित “राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के माध्यम से वाटिका कार्यक्रम के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त करते है। उत्साही युवकों का चयन कर उन्हें व्यावहारिक कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है जिससे कि वे अपने गांव के स्तर पर अपना उद्यम स्थापित कर सके। उन्होनंे किसानों से कहा कि उन्हें अपने उत्पादों को विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा करने योग्य बनाना होगा। इसके लिए प्रसंस्कृत उत्पादों की लेबलिंग, गुणवत्ता, रंग, डिजाईन आदि को सुधारना होगा। किसी भी प्रसंस्कृत उत्पाद का सही मूल्य तभी मिलेगा जब वह बाजार में टिकेगा। उन्होनंे कहा कि देश में रिकार्ड उत्पादन के बावजूद कटाई उपरान्त प्रबंधन के अभाव में उत्पादों की बर्बादी के कारण किसानों को अत्यधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। इस नुकसान से बचने का सबसे प्रभावी तरीका खाद्य प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन है। प्रसंस्करण से होने वाले लाभ को ध्यान में रखते हुए ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने वाटिका नामक कार्यक्रम की शुरूआत की है। इसका मुख्य उद्देश्य व्यावसायिक रूप से टिकाऊ माॅडल के माध्यम से कटाई उपरान्त प्रबंधन प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना है ताकि उत्पादों की बर्बादी कम हो और किसानों को अधिक लाभ प्राप्त हो सके।

व्याख्यान के दौरान डाॅ एन.के. जैन, अधिष्ठाता, दुग्ध एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, उदयपुर ने भी अपने विचार रखें। उन्होनें बताया कि आज कृषि में मशीनीकरण का बहुत तेजी से विकास हुआ है। अब फसलांे, सब्जियों, फलों, दूध, मांस आदि के अनेकों उत्पादों के प्रसंस्करण हेतु अनेकों प्रकार की छोटी-बड़ी मशीनें उपलब्ध है जिनके माध्यम से किसान अपने घर पर छोटे-छोटे उद्यमों की स्थापना करके खाद्य प्रसंस्करण के माध्यम से इन उत्पादों का मूल्य संवर्धन कर सकते है। उन्होंने लहसुन छीलने की मशीन, लहसुन का पाउडर बनाने की मशीन, ग्वार पाठा का रस निकालने की मशीन, टमाटर का रस निकालने की मशीन, आलु, अदरक एवं हल्दी छीलने की मशीन, दाल मिल आदि की जानकारी प्रदान की तथा इनके सम्भावित विभिन्न उत्पादों पर विस्तृत चर्चा की।

डाॅ. एस.के. शर्मा, निदेशक अनुसंधान, एवं डाॅ. मीनू श्रीवास्तव, अधिष्ठाता, सामुदायिक एवं व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अपने विचार रखते हुए मूल्य संवर्धन के बारे में अनेकों जानकारियां प्रदान की। कार्यक्रम के अन्त में कृषि विज्ञान केन्द्र, बासंवाडा की तकनीकी सहायक श्रीमती रश्मी दवे ने मुख्य अतिथि, मुख्य वक्ता, वैज्ञानिकों एवं किसान महिलाओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. लतिका व्यास, प्रोफेसर, प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर ने किया एवं बताया कि उक्त कार्यक्रम में लगभग 200 कृषक महिलाओं एवं वैज्ञानिकों ने आॅनलाईन एवं यू-ट्यूब के माध्यम से भाग लिया।


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